वोह खौफ़नाक मंजर आते ही याद
केदारनाथ धाम की वोह शाम
थी भयानक काली रात
जब तबाही ही तबाही थी हर ओर
कांप उठती है रूह अभी भी
जब था दिखलाया महादेव नें
रौद्र रूप अपना
थे बिखर गए सब ताश के पत्तों से
भवन, पुल गाड़िया सब कुछ
उस महा जलप्रलय में
भयंकर गर्जना करती मन्दाकिनी
अपने प्रबल वेग से बहा ले गई संगअपने
सोते लोगों को पानी में
बह गए प्रवेग धारा में क्या बच्चे क्या बूढ़े
सब के सब लीन हुए जल समाधि में
मन्दाकिनी के भारी शोर में खामोश हुआ
चीखों का शोर
पत्नी का हाथ पति से छूटा
बिछड़ गए अपने अपनों से
परिवार के परिवार लुप्त हो गए
क्षण भर में विलिप्त हो गए
वक़्त वो तो गुजर गया
लेकिन कैसे भर पाएंगे
वो गहरे ज़ख्म, जो छोड़ गए
दुख भरी दास्तां पीछे अपने
रेखा जोशी
शानदार रचना
ReplyDeleteसादर आभार आपका 🙏🙏
Deleteसुन्दर | अब सब भूल चुके हैं |
ReplyDeleteसादर आभार आपका 🙏🙏
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteसादर आभार आपका 🙏🙏
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteसादर आभार आपका 🙏🙏
Deleteसादर आभार आपका 🙏🙏
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