भारत का उनको नहीं है ख्याल
अपनी झोली की मालामाल
बैठे लगा कर धमा चौकड़ी
देश का करने हाल बेहाल
रेखा जोशी
भारत का उनको नहीं है ख्याल
अपनी झोली की मालामाल
बैठे लगा कर धमा चौकड़ी
देश का करने हाल बेहाल
रेखा जोशी
विडंबना
रमेश के बहनोई का अचानक अपने घर परिवार से दूर निधन के समाचार ने रमेश और उसकी पत्नी आशा को हिला कर रख दिया। दोनों ने जल्दी से समान बांधा, आशा ने अपने ऐ टी म कार्ड से दस हजार रूपये निकाले और वह दोनों अपने घर से बहनोई के अंतिम संस्कार के लिए रवाना हो गए, वहां पहुंचते ही आशा ने वो रूपये रमेश के हाथ में पकड़ाते हुए कहा, ''दीदी अपने घर से बहुत दूर है और इस समय इन्हें पैसे की सख्त जरूरत होगी आप यह उन्हें अपनी ओर से दे दो और मेरा ज़िक्र भी मत करना कहीं उनके आत्मसम्मान को ठेस न पहुंचे''।
अपनी बहन के विधवा होने पर रमेश बहुत भावुक हो रहा था, उसने भरी आँखों से चुपचाप वो रूपये अपनी बहन रीमा के हाथ में थमा दिए। देर रात को रमेश की सभी बहनें एक साथ एक कमरे में बैठ कर सुख दुःख बाँट रही थी तभी आशा ने उस कमरे के सामने से निकलते हुए उनकी बातें सुन ली, उसकी आँखों से आंसू छलक गए, जब उसकी नन्द रीमा के शब्द पिघलते सीसे से उसके कानो में पड़े, वह अपनी बहनों से कह रही थी, ''मेरा भाई तो मुझसे बहुत प्यार करता है, आज मुसीबत की इस घड़ी में पता नहीं उसे कैसे पता चल गया कि मुझे पैसे कि जरूरत है, यह तो मेरी भाभी है जिसने मेरे भाई को मुझ से से दूर कर रखा है।
रेखा जोशी
फूलों से लदे गुच्छे लहराते डार डार
है खिल खिल गए उपवन महकाते संसार
,
सज रही रँग बिरँगी पुष्पित सुंदर वाटिका
है भँवरें पुष्पों पर मंडराते बार बार
,
सुन्दर गुलाब खिले महकती है खुशी यहां
संग संग फूलों के यहां मिलते है खार
,
है मनाती उत्सव रंग बिरंगी तितलियां
चुरा कर रंग फूलों का कर रही सिंगार
,
अंबुआ की डाली पे कुहुकती कोयलिया
खिले जीवन यहां जैसे बगिया में बहार
रेखा जोशी