Wednesday, 26 February 2020

मुक्तक

भारत का उनको नहीं है ख्याल 

अपनी  झोली  की   मालामाल
बैठे   लगा  कर   धमा  चौकड़ी
देश   का   करने   हाल   बेहाल

रेखा जोशी

Saturday, 22 February 2020

विडंबना

विडंबना

रमेश  के बहनोई का अचानक अपने घर परिवार से दूर निधन के समाचार ने रमेश और उसकी पत्नी आशा को हिला कर रख दिया। दोनों ने जल्दी से समान बांधा, आशा ने अपने ऐ टी म कार्ड से दस हजार रूपये निकाले और वह दोनों अपने घर से बहनोई  के अंतिम संस्कार  के लिए रवाना हो गए, वहां पहुंचते ही आशा ने वो रूपये रमेश के हाथ में पकड़ाते हुए कहा, ''दीदी अपने घर से बहुत दूर है और इस समय इन्हें पैसे की सख्त जरूरत होगी आप यह उन्हें अपनी ओर से दे दो और मेरा ज़िक्र भी मत करना कहीं उनके आत्मसम्मान को ठेस न पहुंचे''।

अपनी बहन के विधवा होने पर रमेश  बहुत भावुक हो रहा था, उसने भरी आँखों से चुपचाप वो रूपये अपनी बहन रीमा  के हाथ में थमा दिए। देर रात को रमेश की सभी बहनें एक साथ एक कमरे में बैठ कर सुख दुःख बाँट रही थी तभी आशा ने उस कमरे के सामने से निकलते हुए उनकी बातें सुन ली, उसकी आँखों से आंसू छलक गए, जब उसकी नन्द रीमा के शब्द पिघलते सीसे से उसके कानो में पड़े, वह अपनी बहनों से कह रही थी, ''मेरा भाई तो मुझसे बहुत प्यार करता है,  आज मुसीबत की इस घड़ी में पता नहीं उसे कैसे पता चल गया कि मुझे पैसे कि जरूरत है, यह तो मेरी भाभी है जिसने मेरे भाई को मुझ से से दूर कर रखा है।

 रेखा जोशी 

Friday, 21 February 2020

महा शिवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं

वंदन  करें  तेरा सुन  प्रभु  पुकार हमारी
जयजयकार  करें हम सब   भोले भंडारी
दीन हीन दुखियों  के तुम ही हो रखवाले
भोले  भाले  बाबा  शिव  शंकर  त्रिपुरारी

 रेखा जोशी 

Thursday, 6 February 2020

लम्हा लम्हा जिंदगी का

छोटा सा जीवन मेरा
क्षण क्षण
फिसलता हाथों से
धीरे धीरे
हो रही खत्म कहानी
तेरे  मेरे प्यार  की
आज हूँ पास तेरे
न जाने कल क्या होगा
कहीं दूर सो जाऊँगा
आगोश में मौत के
या डूब जाऊँगा
यादों के समुंदर में
जब तुम न होगे पास मेरे
इससे पहले कि
बिछुड़ जाएँ हम दोनों
हर पल जी लें ज़िंदगी
जी भर के
लम्हा लम्हा
ज़िंदगी का पी लें
जी भर के

रेखा जोशी

Sunday, 2 February 2020

लिखे जो खत तुझे

लिखे जो खत तुझे 

”सौ बार झूठ बोलने से झूठ सच नही हो जाता ”आँखों में आंसू लिए गीतू को अपने घर से बाहर जाते देख रीमा के होश उड़ गए ,भागी भागी वह अपनी नन्द गीतू के पीछे गई लेकिन वह जा चुकी थी ,तभी उसके कानों से राजू की कड़कती हुई आवाज़ टकराई ,”यह सब तुमारे कारण ही हुआ है जो मेरी बहन आज नाराज़ हो कर मेरे घर से चली गई ,मैने तुम्हे अपने माता पिता और गीतू के पास उसकी परीक्षा के कारण छोड़ा था ,ताकि तुम घर का काम काज संभाल लो और गीतू अपनी परीक्षा की तैयारी अच्छी तरह से कर सके , लेकिन तुम तो वहाँ रही ही नही ,अपने मायके जा कर बैठ गई ,यह सब मुझे आज गीतू से पता चला है |
रीमा की आँखों से आंसू बहने लगे ,उसने तो अपने ससुराल में पूरा काम सभाल लिया था और गीतू को उसकी परीक्षा की तैयारी करने के लिए पूरा समय दिया था ,फिर उसने यह सब ड्रामा क्यों किया ?”रीमा दुखी और अनमने मन से अपने घर की सफाई में जुट गई ताकि उसका ध्यान दूसरी तरफ हो जाए ,अलमारी साफ़ करते हुए चिठ्ठियों का एक बड़ा पैकेट उसके हाथों में आ गया ,यह वह खत थे जो उसने कभी राजू को लिखे थे वह उसे खोल कर अपने लिखे हुए राजू के नाम उन प्रेम पत्रों को पढ़ने लगी ,जो उसने उन दिनों लिखे थे जब वह ससुराल में गीतू की परीक्षा के दौरान रही थी ,अचानक उसकी नज़र उन पत्रों पर लिखी तारीख़ और उसके ऊपर लिखे ससुराल के पते पर पड़ी ,उसकी आँखे एक बार फिर से गीली हो गई ,उसने अपने सामने खड़े राजू के हाथ में वह सारी चिठ्ठिया थमा दी ,जो खामोशी से उसकी बेगुनाही ब्यान कर रही थी l

रेखा जोशी
फरीदाबाद 

Saturday, 1 February 2020

आया बसंत

खिला खिला उपवन ,पवन चले शीतल
भँवरे करें गुँजन ,  बगिया  बहार पे
फूलों पर मंडराये तितली चुराये  रँग
कुहुकती कोयलिया ,अम्बुआ  डार  पे
गीत मधुर गा  रही  ,डाली डाली झूम रही 
हौले हौले से चलती मदमस्त   हवा
चूम रही  फूल फूल ,लहर लहर  जाये
है रँगीन छटा छाई ,नज़ारे निखार पे

रेखा जोशी 

उड़ें गी उमंगे छू लेंगी आसमान

उड़ायें गे पतंग लिये हाथ में डोर
मुस्कुराया बसन्त गली गली में शोर
उड़ें गी उमंगे  छू लेंगी आसमान 
लहरायें गगन में बंधन सारे तोड़ 

रेखा जोशी

खिले जीवन यहां जैसे बगिया में बहार

 
फूलों  से  लदे  गुच्छे   लहराते  डार   डार
है खिल खिल गए उपवन  महकाते संसार
,
सज रही रँग बिरँगी पुष्पित सुंदर  वाटिका
है  भँवरें   पुष्पों  पर   मंडराते    बार  बार
,
सुन्दर गुलाब खिले महकती है खुशी यहां
संग  संग  फूलों  के  यहां  मिलते  है खार
,
है   मनाती   उत्सव  रंग  बिरंगी  तितलियां
चुरा  कर रंग   फूलों  का  कर  रही  सिंगार
,
अंबुआ  की  डाली  पे  कुहुकती कोयलिया
खिले  जीवन  यहां जैसे  बगिया  में  बहार

रेखा जोशी

जागो भारत के वीर सपूतो

जागो भारत के वीर सपूतो
है डूब रहा यह देश हमारा
……………………
है लूट रहे इसे तेरे कई भाई
खनकते पैसों से ये पगलाये
है भर रहे सब अपना ही घर
तार तार कर माँ का आंचल
………………………
धधकती लालच की ज्वाला
पर पनप रहा है भ्रष्टाचार
माँ के कपूत ही नोच खा रहे
जकड़ के अनेक घोटालों में
……………………….
याद करो अमर शहीदों को
मर मिटे भारत की खातिर
दो बूंद आँखों में भर कर
मुक्त करो माँ को गद्दारों से
……………………….
जागो भारत के वीर सपूतो
है डूब रहा यह देश हमारा

रेखा जोशी

तिरंगे का करें सम्मान आँखों

रहेगी देश की अब शान आँखों पे
तिरंगे का करें सम्मान आँखों पे
जहाँ में देश चमकेगा सदा भारत
ज़ुबा पर अब रहेगा नाम आँखों पे
करें हम नमन भारत के जवानों को
शहीदों का रखेंगे मान आँखों पे
….
करेंगे खत्म घोटाले सभी मिल कर
रखेंगे देश का अभिमान आँखों पे
मिला कर कदम चलते ही रहेंगे हम
रखेंगे देश की अब आन आँखों पे
रेखा जोशी