Thursday, 14 May 2020

बुझ गई प्यास जन्म जन्म की

अनुपम सौंदर्य 
अलौकिक छटा देख 
खुल गए द्वार अंतर्मन के 
झंकृत हुआ मन 
रूप नया देख 
मै इस पार तुम उस पार 
हो गए अब आर पार 
मिलन नही यह धरा गगन का 
आगोश में अब मै तेरे 
पा लिया अमृत घट 
सुधापान कर लिया मैने 
एकरस होकर  प्रभु अब 
समाया रोम रोम मेरा तुझमे 
बुझ गई प्यास जन्म जन्म की 
नेह तेरा पा के 
सम्पूर्ण हुआ जीवन मेरा 
द्वार आ के तेरे

रेखा जोशी

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना

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  2. सादर आभार आपका आदरणीय

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  3. बहुत बढ़िया

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    1. सादर आभार आपका 🙏

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