अनुपम सौंदर्य
अलौकिक छटा देख
खुल गए द्वार अंतर्मन के
झंकृत हुआ मन
रूप नया देख
मै इस पार तुम उस पार
हो गए अब आर पार
मिलन नही यह धरा गगन का
आगोश में अब मै तेरे
पा लिया अमृत घट
सुधापान कर लिया मैने
एकरस होकर प्रभु अब
समाया रोम रोम मेरा तुझमे
बुझ गई प्यास जन्म जन्म की
नेह तेरा पा के
सम्पूर्ण हुआ जीवन मेरा
द्वार आ के तेरे
रेखा जोशी
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteसादर आभार आपका आदरणीय
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteसादर आभार आपका 🙏
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