Monday, 22 February 2021

बाय बाय,टाटा जिंदगी

जन्म और मरण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जिसने जन्म लिया एक दिन उसे मरना ही है, हम कहाँ से आए कुछ पता नहीं, हम मर कर कहाँ जाएंगे कुछ पता नहीं और जीवन है कि पल पल गुजरता जा रहा है, समय कब रेत सा हाथ से फिसलता जा रहा है मालूम ही नहीं होता, कल, आज और कल के चलते कब अंतिम पड़ाव आ जाता है पता ही नहीं चलता और उम्र तो केवल एक संख्या है, अरे भाई जब जागो तभी सवेरा, पचास का इंतज़ार क्यूँ, जब इक दिन यह संसार छोड़ना ही है तो किस बात का इंतज़ार,, ईश्वर ने हमें इस दुनिया में भेजा है तो अच्छे कर्म करते जाओ और प्रभु के गुण गाते जाओ और दुनिया दारी के कीचड़ में कमल की भांति जिंदगी जियो l आपसे एक सवाल पूछ रही हूँ, "किस बात की तैयारी करनी है?" मौत तो कभी भी पूछ कर नहीं आती, जब आएगी तो आ ही जायेगी, इसलिए हर वक्त जाने को तैयार रहो लेकिन ऐसे जाओ कि कभी किसी बात का पछतावा न रहे, जिंदगी को बाय बाय,टाटा करने से पहले शुभ कर्म करते हुए भरपूर जीवन जियो ताकि हम शांति से उस पार जा सकें l

रेखा जोशी

Saturday, 20 February 2021

सुख दुख

कोई ऐसा नहीं
जो खुश हो इस जग में
पूर्णतया
मिलते हैं सुख दुख
जीवन में सबको
माना कि लम्बी हो जाती 
हैं  घड़ियां दुख की
न मिले दिन को चैन
न रातों को आराम
लेकिन न छोड़ना कभी 
आस तुम 
आज दुख है तो 
कल सुख भी आएगा 

रेखा जोशी 

Sunday, 14 February 2021

यहां सुख दुःख से है भरी जिंदगी

यहां सुख दुःख से है भरी जिंदगी

हर वक्त इम्तिहान लेती जिंदगी

जीत मिलती कभी मिलती यहां हार

हमारी धूप छांव जैसी जिंदगी

..

रुकता नहीं वक्त किसी के. वास्ते

लम्हा लम्हा हाथों से फिसलती जिंदगी

..

हैं खुशियाँ कहीं सन्नाटा मौत का

आँसू बहाती कहीं हँसती जिंदगी

..

दो दिन का मेला जीवन इक खेला

न ग़म कर फूल सी महकती जिंदगी

रेखा जोशी

Monday, 8 February 2021

ज्योति प्रेम की

जला कर ज्योति प्रेम की पार हुए भव सागर से 
तर गए संत फकीर छलकाए प्रेमरस गागर से 
प्रेम पूजा प्रेम शिव सबसे प्रेम कर ले तू 
बरसा अमृत की बूँदे अथाह प्रेम सागर से 

रेखा जोशी

Sunday, 7 February 2021

कोरोना का कहर

कोरोना का कहर 
न जाने कितने दिनों से नीलू की आँखे दरवाज़े पर ही टिकी हुई थी , कोरोना काल में पता नहीं कितने मील दूर पैदल चल कर उसकी आँखों का तारा, उसका प्यारा बेटा अमर घर वापिस आ रहा था, चिट्ठी में तो यही लिखा था कि वह जल्दी ही घर आने वाला है, लेकिन कब? "हे प्रभु मेरे बेटे की रक्षा करना, न जाने वह किस हाल में होगा, उसकी अपनी बस्ती में ही अनगिनत परिवार कोरोना की भेंट चढ़ चुके थे और कई लोग इस खतरनाक बीमारी से ग्रस्त हो रहे हैं,आज महामारी के इस दौर में, जब लाखों की संख्या में लोग काल का ग्रास बन रहे हैं, भगवान से प्रार्थना करने के सिवा वह कर भी क्या सकती है l " मन ही मन नीलू ईश्वर से अमर की सलामती की प्रार्थना करने लगीl.

मई का गर्म महीना, टीन की टूटी फूटी छत पर उसने चादर डाल दी थी ताकि झोंपड़ी में झाँकती तेज़ धूप से कुछ राहत मिल सके l गर्मी की इस भरी दोपहर में पूरी बस्ती सुनसान पड़ी थी, कोरोना के कहर के कारण कोई भी घर से बाहर नहीं निकल रहा था l जिंदगी जैसे थम सी गई थी, न जानें कितने दिनों से अनगिनत घरों के चूल्हे ठंडे पड़े हुए थे , ऊपर से पैसों की किल्लत, घर में राशन के नाम पर दो तीन मुट्ठी चावल ही बचे थे, क्या बना कर खिलाए गी अमर को, उसे कुछ भी सूझ ही नहीं रहा था l 

सूरज की तपिश से टीन की छत आग बरसा रही थी,गर्मी और घबराहट के कारण उसका गला सूख रहा था, झोंपड़ी के कोने में रखे घड़े से पानी पी कर उसने अपने गले को थोड़ा सा तर किया, पसीने से तरबतर नीलू एक ठंडी साँस ले कर दरवाज़े पर खड़ी हो गई ताकि बाहर से कुछ ठंडक मिल सके, तभी उसे दूर से कुछ लोग आते दिखाईं दिए, उसकी धुंधली थकी आँखों में कुछ चमक आ गई, शायद इनके साथ अमर भी हो, अमर के पिता के गुजरने के बाद उसने कितनी मुश्किलों का सामना करते हुए अमर को पाल पोस कर बड़ा किया था, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उसे घर से दूर रहना पड़ा था l 

आते हुए लोगों का काफिला दूर वहीं पर रुक गया था, तभी उसे वहाँ से पड़ोसी कालू आता नज़र आया, "अरे काकी अमर का रास्ता देख रही हो क्या?" कालू ने नीलू से पूछा l"हाँ बेटा उसी की राह देख रही हूँ,, उसकी चिट्ठी आई थी, आज कल में पहुंच जाएगा " नीलू ने एक ही साँस में ज़वाब दिया l" काकी, खुश हो जा, अमर आ गया है, गांव के बहुत से लोगों का जत्था अभी अभी पहुँचा है लेकिन उन सब को क्वारनटाईन सेंटर में पन्द्रह दिन के लिए भेज रहे हैं ताकि गाँव में कोरोना फैल न पाए, हाँ तुम उसे दूर से देख सकती हो," कालू ने नीलू को बताया l

नीलू ने झटपट अपनी टूटी हुई चप्पल पहनी और अमर से मिलने क्वारनटाईन सेंटर की तरफ निकल पड़ी l

रेखा जोशी 

Friday, 5 February 2021

सपनों का संसार

रेनू ,सीमा के बचपन की सखी ,एक अत्यंत सरल स्वभाव और सात्विक विचारों वाली प्यारी सी लडकी थी । सीमा को बहुत ही आश्चर्य होता था जब भी रेनू कोई भी सपना देखती थी वह सदा सच हो जाता था ।आने वाली घटनाएं कैसे रेनू को सपनो में ही अनूभूति हो जाती थी ? ऐसे देखा गया है कि पूर्वाभास कई लोगों को हो जाता है परन्तु कितनी विचित्र बात है यह ,जो अभी घटित हुआ ही नही है उसका आभास पहले कैसे हो सकता है ।क्या हमारी जिंदगी की किताब पहले से ही लिखी जा चुकी और हम अपने आने वाले कल का केवल पन्ना पलट कर पढ़ रहें है । ''सपनो की दुनिया भी कितनी अजीब होती है ,सपने में सपना जैसा कुछ लगता ही नही ,बिलकुल ऐसा महसूस होता है जैसे सब सचमुच में घटित हो रहा हो । 

अपने विचारों में खोई सीमा की कब आँख लग गई उसे पता ही नही चला '',उफ़ ,कितना भयानक सपना था ,अच्छा हुआ नींद खुल गई ''डरी हुई सीमा बिस्तर छोड़ ,बाथरूम में जा कर मुहं धोने लगी ,उसके सीने में अभी भी दिल जोर जोर से धडक रहा था और सांस फूली हुई थी |अक्सर हम सब के साथ ऐसा ही कुछ होता है जब भी हम कभी कुछ ऐसा ही भयानक सा सपना देखतें है ,और जब कभी बढ़िया स्वप्न आता है तो नींद से जागने की इच्छा ही नही होती ,हम जाग कर भी आँखे मूंदे उसका आनंद लेते रहते है 

|सीमा बार बार उसी सपने के बारे में सोचने लगी ,तभी उसे अपनी साइकालोजी की टीचर की क्लास याद आ गई ,जब वह बी .एड कर रही थी ,सपनो पर चर्चा चल रही थी,''हमारी जागृत अवस्था में हमारे मस्तिष्क में लगातार विभिन्न विभिन्न विचारों का प्रवाह चलता रहता है ,और जब हम निंदिया देवी की गोद में चले जातें तो वह सारे विचार आपस में ठीक वैसे ही उलझ जाते है जैसे अगर ऊन के बहुत से धागों को हम इकट्ठा कर एक स्थान पर रख दें और बहुत दिनों बाद देखें तो हमें वह सारे धागे आपस में उलझे हुए मिलें गे , ठीक वैसे ही जब हम सो जाते है हमारे सुप्त मस्तिष्क के अवचेतन भाग में वह उलझे हुए विचार एक नयी ही रचना का सृजन कर स्वप्न का रूप ले कर हमारे मानस पटल पर चलचित्र की भांति दिखाई देते हैl 

 फ्रयूड के अनुसार हम अपनी अतृप्त एवं अधूरी इच्छायों की पूर्ति सपनो के माध्यम से करते है ,लेकिन दुनियां में कई बड़े बड़े आविष्कारों का जन्म सपनो में ही हुआ है ,जैसे की साइंसदान कैकुले ने छ सांपो को एक दूसरे की पूंछ अपने मूंह में लिए हुए देखा,और बेन्जीन का फार्मूला पूरी दुनिया को दिया | अनेकों साईकालोजिस्ट्स ने सपनो की इस दुनिया में झाँकने की कोशिश की, लेकिन इस रहस्यमयी दुनिया को जितना भी समझने की कोशिश की जाती रही है ,उतनी ही ज्यादा यह उलझाती रही है |हमें सपने क्यों आते है ?कई बार सपने आते है और हम उन्हें भूल जातें है ?हमारी वास्तविक दुनिया में सपनो का कोई योगदान है भी या नही ,और कई बार तो हमारे सपने सच भी हो जाते है |अनगिनत सवालों में एक पहलू यह भी है ,जब हम सो जाते है तब हमारा जागृत मस्तिष्क आराम की स्थिति में चला जाता है और उस समय मस्तिष्क तरंगों का कम्पन जिसे फ्रिक्युंसी कहते है ,जागृत अवस्था की मस्तिष्क तरंगो की अपेक्षा घट कर आधी रह जाती है ,उस समय हमारी बंद आँखों की पुतलिया घूमने लगती है जिसे आर ई एम् कहते है ,मस्तिष्क की इसी स्थिति में हमे सपने दिखाई देते है |एक मजेदार बात यह भी उभर के आई कि जब हम ध्यान की अवस्था में होते है तो उस समय भी मस्तिष्क तरंगों की कम्पन कम हो जाती है और हम जागृत अवस्था में भी आर ई एम की अवस्था में पहुंच सकते है ,अगर उस समय हम जागते हुए भी कोई सपना देखते है तो उसे हम पूरा कर सकते है |

 सीमा के मानस पटल पर बार बार रेनू का चित्र उभर कर आ रहा था ,शायद वह हमेशा ध्यानावस्था में ही रहती हो ,इसी कारण उसके मस्तिष्क के तरंगों की फ़्रिक्युएन्सी कम ही रहती हो और वह जो भी सपना देखती है वह सच हो जाता हो । सीमा के मस्तिष्क में भी अनेक विचार घूम रहे थे और वह बिस्तर पर लेट कर ध्यान लगाते हुए अपने सपनो के संसार में पहुंचना चाह रही थी ताकि वह भी अपने सपनो को सच होते देख सके ।

रेखा जोशी