Sunday, 7 February 2021

कोरोना का कहर

कोरोना का कहर 
न जाने कितने दिनों से नीलू की आँखे दरवाज़े पर ही टिकी हुई थी , कोरोना काल में पता नहीं कितने मील दूर पैदल चल कर उसकी आँखों का तारा, उसका प्यारा बेटा अमर घर वापिस आ रहा था, चिट्ठी में तो यही लिखा था कि वह जल्दी ही घर आने वाला है, लेकिन कब? "हे प्रभु मेरे बेटे की रक्षा करना, न जाने वह किस हाल में होगा, उसकी अपनी बस्ती में ही अनगिनत परिवार कोरोना की भेंट चढ़ चुके थे और कई लोग इस खतरनाक बीमारी से ग्रस्त हो रहे हैं,आज महामारी के इस दौर में, जब लाखों की संख्या में लोग काल का ग्रास बन रहे हैं, भगवान से प्रार्थना करने के सिवा वह कर भी क्या सकती है l " मन ही मन नीलू ईश्वर से अमर की सलामती की प्रार्थना करने लगीl.

मई का गर्म महीना, टीन की टूटी फूटी छत पर उसने चादर डाल दी थी ताकि झोंपड़ी में झाँकती तेज़ धूप से कुछ राहत मिल सके l गर्मी की इस भरी दोपहर में पूरी बस्ती सुनसान पड़ी थी, कोरोना के कहर के कारण कोई भी घर से बाहर नहीं निकल रहा था l जिंदगी जैसे थम सी गई थी, न जानें कितने दिनों से अनगिनत घरों के चूल्हे ठंडे पड़े हुए थे , ऊपर से पैसों की किल्लत, घर में राशन के नाम पर दो तीन मुट्ठी चावल ही बचे थे, क्या बना कर खिलाए गी अमर को, उसे कुछ भी सूझ ही नहीं रहा था l 

सूरज की तपिश से टीन की छत आग बरसा रही थी,गर्मी और घबराहट के कारण उसका गला सूख रहा था, झोंपड़ी के कोने में रखे घड़े से पानी पी कर उसने अपने गले को थोड़ा सा तर किया, पसीने से तरबतर नीलू एक ठंडी साँस ले कर दरवाज़े पर खड़ी हो गई ताकि बाहर से कुछ ठंडक मिल सके, तभी उसे दूर से कुछ लोग आते दिखाईं दिए, उसकी धुंधली थकी आँखों में कुछ चमक आ गई, शायद इनके साथ अमर भी हो, अमर के पिता के गुजरने के बाद उसने कितनी मुश्किलों का सामना करते हुए अमर को पाल पोस कर बड़ा किया था, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उसे घर से दूर रहना पड़ा था l 

आते हुए लोगों का काफिला दूर वहीं पर रुक गया था, तभी उसे वहाँ से पड़ोसी कालू आता नज़र आया, "अरे काकी अमर का रास्ता देख रही हो क्या?" कालू ने नीलू से पूछा l"हाँ बेटा उसी की राह देख रही हूँ,, उसकी चिट्ठी आई थी, आज कल में पहुंच जाएगा " नीलू ने एक ही साँस में ज़वाब दिया l" काकी, खुश हो जा, अमर आ गया है, गांव के बहुत से लोगों का जत्था अभी अभी पहुँचा है लेकिन उन सब को क्वारनटाईन सेंटर में पन्द्रह दिन के लिए भेज रहे हैं ताकि गाँव में कोरोना फैल न पाए, हाँ तुम उसे दूर से देख सकती हो," कालू ने नीलू को बताया l

नीलू ने झटपट अपनी टूटी हुई चप्पल पहनी और अमर से मिलने क्वारनटाईन सेंटर की तरफ निकल पड़ी l

रेखा जोशी 

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