Sunday, 23 September 2012

ख्वाहिशें


आवारा कदम,आधी अधूरी खंडहर जैसी पहाड़ सी ख्वाहिशें
उन्ही यादों में भटकते रहते है रात भर अकेले तन्हाईयों में
वो लम्हा लम्हा पिरोई अरमानो से मोतियों की माला हमने
 सुबह होते होते खुद ही तोड़ देते है कल बुनने को वही यादें
यूं लगता है सुबह होने से पहले तुम आती हो मेरी नींदों में
क्योंकि महक उठता है सुबह सुबह कई बार आशियाना मेरा

3 comments:

  1. यूं लगता है सुबह होने से पहले तुम आती हो मेरी नींदों में
    क्योंकि महक उठता है सुबह सुबह कई बार आशियाना मेरा
    वाह वाह क्या बात है माँ बेहद गहरी अभिव्यक्ति, बधाई स्वीकारें

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद अरुण बेटा


      Delete



  2. धन्यवाद सुशील जी

    ReplyDelete