अपने प्यार की तुम
सदा करते हो
हम पर बरसात
कैसे समझ जाते हो तुम
हमारी खामोश
पुकार को
नहीं कहते जो
अपनी जुबां से हम
पूरी कर देते हो तुम
हे मेरे प्रभु
हाँ मौन का रिश्ता
है तेरे मेरे बीच
एक अटूट बंधन
मेरे हिय को
भर देते हो प्रेम से
बस मै और तुम
दोनों खामोश
लेकिन
होती है अनगिनत बाते
हम दोनों के बीच
अच्छी लगती है
वह खामोशी
जब होते हो तुम
पास मेरे
और
घंटों करते है हम
खामोश रहते हुए
बातें
इक दूजे से
रेखा जोशी
बहुत सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteशुक्रिया Meena जी
Deleteसही कहा। मुकम्मल इश्क की सच्ची दास्तान खामोशी में ही बयां होती है। बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteसादर आभार आपका
Deleteख़ामोशी प्रेम का सबसे उच्चतम संभाषण है। बहुत सुंदर रचना। सादर
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteसादर आभार आपका अपर्णा जी
ReplyDeleteसादर आभार आपका Onkar जी
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