Friday, 24 May 2019

भाजपा की जीत पर

बजने लगे ढोल नगाड़े खुशियाँ आई द्वार
पहली बार किया भाजपा ने तीन सौ को पार
कमल के खिलने पर है हर्षित भारत की जनता
मोदी के नाम की सुनामी आई अब की बार

रेखा जोशी

Tuesday, 21 May 2019

तमसो मा ज्योतिर्गमय

तमसो मा ज्योतिर्गमय

मेरे पड़ोस में एक बहुत ही बुज़ुर्ग महिला रहती है ,उम्र लगभग अस्सी वर्ष होगी ,बहुत ही सुलझी हुई ,मैने न तो आज तक उन्हें किसी से लड़ते झगड़ते देखा और न ही कभी किसी की चुगली या बुराई करते हुए सुना है ,हां उन्हें अक्सर पुस्तकों में खोये हुए अवश्य देखा है| गर्मियों के लम्बे दिनों की शुरुआत हो चुकी थी ,चिलचिलाती धूप में घर से बाहर निकलना मुश्किल सा हो गया था ,लेकिन एक दिन,भरी दोपहर के समय मै उनके घर गई और उनके यहाँ मैने एक छोटा सा सुसज्जित पुस्तकालय ,जिसमे करीने से रखी हुई अनेको पुस्तकें थी ,देखा |

उस अमूल्य निधि को देखते ही मेरे तन मन में प्रसन्नता की एक लहर दौड़ने लगी ,”आंटी आपके पास तो बहुत सी पुस्तके है ,क्या आपने यह सारी पढ़ रखी है,”मेरे पूछने पर उन्होंने कहा,”नही बेटा ,मुझे पढने का शौंक है ,जहां से भी मुझे कोई अच्छी पुस्तक मिलती है मै खरीद लेती हूँ और जब भी मुझे समय मिलता है ,मै उसे पढ़ लेती हूँ ,पुस्तके पढने की तो कोई उम्र नही होती न ,दिल भी लगा रहता है और कुछ न कुछ नया सीखने को भी मिलता रहता है ,हम बाते कर ही रहे थे कि उनकी बीस वर्षीय पोती हाथ में मुंशी प्रेमचन्द का उपन्यास’ सेवा सदन’ लिए हमारे बीच आ खड़ी हुई ,दादी क्या आपने यह पढ़ा है ?आपसी रिश्तों में उलझती भावनाओं को कितने अच्छे से लिखा है मुंशी जी ने |

आंटी जी और उनकी पोती में पुस्तकों को पढ़ने के इस शौक को देख बहुत अच्छा लगा | अध्ययन करने के लिए उम्र की कोई सीमा नही है उसके लिए तो बस विषय में रूचि होनी चाहिए |मुझे महात्मा गांधी की लिखी पंक्तियाँ याद आ गयी ,” अच्छी पुस्तके मन के लिए साबुन का काम करती है ,”हमारा आचरण तो शुद्ध होता ही है ,हमारे चरित्र का भी निर्माण होने लगता है ,कोरा उपदेश या प्रवचन किसी को इतना प्रभावित नही कर पाते जितना अध्ययन या मनन करने से हम प्रभावित होते है ,कईबार महापुरुषों की जीवनियां पढने से हम भावलोक में विचरने लगते है और कभी कभी तो ऐसा महसूस होने लगता है जैसे वह हमारे अंतरंग मित्र है |

अच्छी पुस्तकों के पास होने से हमें अपने प्रिय मित्रों के साथ न रहने की कमी नही खटकती |जितना हम अध्ययन करते है ,उतनी ही अधिक हमें उसकी विशेषताओं के बारे जानकारी मिलती है | हमारे ज्ञानवर्धन के साथ साथ अध्ययन से हमारा मनोरंजन भी होता है |हमारे चहुंमुखी विकास और मानसिक क्षितिज के विस्तार के लिए अच्छी पुस्तकों ,समाचार पत्र आदि का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है |ज्ञान की देवी सरस्वती की सच्ची आराधना ,उपासना ही हमे अज्ञान से ज्ञान की ओर ले कर जाती है |

हमारी भारतीय संस्कृति के मूल धरोहर , एक उपनिषिद से लिए गए मंत्र ,”तमसो मा ज्योतिर्गमय ”,अर्थात हे प्रभु हमे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो ,और अच्छी पुस्तकें हमारे ज्ञान चक्षु खोल हमारी बुद्धि में छाये अंधकार को मिटा देती है | इस समय मै अपनी पड़ोसन आंटी जी के घर के प्रकाश पुँज रूपी पुस्तकालय में खड़ी पुस्तको की उस अमूल्य निधि में से पुस्तक रूपी अनमोल रत्न की खोज में लगी हुई थी ताकि गर्मियों की लम्बी दोपहर में मै भी अपने घर पर बैठ कर आराम से उस अनमोल रत्न के प्रकाश से अपनी बुद्धि को प्रकाशित कर सकूं |

रेखा जोशी

Thursday, 16 May 2019

एक कप चाय का प्याला और सौगंध बाप की

एक कप चाय का प्याला और सौगंध बाप की

शर्मा जी ने हाल ही में सरकारी नौकरी का कार्यभार संभाला था,अपनी प्रभावशाली लेखन शैली के कारण वह बहुत जल्दी अपने ऑफ़िस में प्रसिद्ध हो गए। जिस किसी को भी अपनी रिपोर्ट उपर के ऑफ़ीसर को भेजनी होती थी, वह एक बार उनसे  राय जरूर ले लेता था। उसी ऑफ़िस में कार्यरत एक कर्मचारी हर रोज़ शाम के समय शर्मा जी के कमरे में आकर मित्रता  के नाते बैठने लगा,और धीरे धीरे अपनी रिपोर्ट भी उनसे बनवाने लगा। जब शर्मा जी उसकी रिपोर्ट लिख रहे होते वह उनके लिए एक कप चाय मंगवा देता ,कुछ दिन तक यह सिलसिला चलता रहा और एक दिन  शर्मा जी को ऐसा लगा जैसे वह उन्हें चाय रिपोर्ट लिखने के बदले में पिला रहा है तो उसी क्षण उन्होंने उसके लिए लिखना बंद कर दिया।

शर्मा जी के मना करने पर वह कर्मचारी गुस्से से लाल पीला हो गया ,आव देखा न ताव एक घूंसा शर्मा जी की तरफ बढ़ा दिया जिसे उन्होंने  ने बीच में ही  काट उस कर्मचारी के मुख पर जोर से घूंसा जड़ दिया। आग की तरह जल्दी ही बात पूरे ऑफ़िस में फैल गई। दोनों को बड़े साहब ने बुलाया ,चोट लगे कर्मचारी के साथ पूरे स्टाफ की सहानुभूति थी और उसने भी रोते हुए बड़े साहब से अपने बाप की सौगंध खाते हुए कहा कि वह बिलकुल निर्दोष है ,नतीजतन शर्मा जी से लिखित स्पष्टीकरण माँगा गया। उस रात शर्मा जी सो न सके,सुबह उठते ही इस्तीफा लिख कर जेब में रखा और ऑफ़िस पहुंच गए।

वहां पहुंचते ही पता चला कि रात को उस कर्मचारी के पिता जी परलोक सिधार गए।

रेखा जोशी

Wednesday, 8 May 2019

उनको शिकायत है

उनको शिकायत है

रितु और नीलांश का अभी हाल ही में विवाह हुआ है और वह भी प्रेम विवाह लेकिन माता पिता की मर्ज़ी से ,जहाँ प्यार होता है वहां एक दूसरे से गिले ,शिकवे और शिकायत तो होती ही रहती है ,आजकल यही कुछ उन दोनों के साथ भी हो रहा है ,हर सुबह शुरू होती है प्यार की मीठी तकरार से और हर रात गुजरती है ढेरों गिले, शिकवे और शिकायते लिए हुए ,यही अदायें तो जिंदगी को रंगीन बनाती है पहले रूठना और फिर मनाना ,मान कर फिर रूठ जाना l

ह रूठने और मनाने का सिलसिला जब तक यूं ही चलता रहे तो समझ लो उनकी शादी को ईश्वर का वरदान मिला हुआ है ,ऐसे झगड़े हमेशा उनकी शादी की ताजगी बनाये रखते है|वैसे तो हमारे शास्त्रों में लिखा हुआ है कि शादी के बाद पति और पत्नी का मिलन ऐसे होना चाहिए जैसे दो जगह का पानी मिल कर एक हो जाता है फिर उस पानी को पहले जैसे अलग नही किया जा सकता ,लेकिन ऐसा होना बहुत ही मुश्किल है क्योंकि दो व्यक्ति अलग अलग विचारधारा लिए अलग अलग परिवेश में बड़े हुए जब एक दूसरे के साथ रहने लगते है तो यह सम्भाविक है कि उन दोनों की सोच भी एक दूसरे से भिन्न ही होगी ,उनका खान पान ,रहन सहन, बातचीत करने का ढंग ,कई ऐसी बाते है जो उनके अलग अलग व्यक्तित्व को दर्शाती है | पति पत्नी के इस खूबसूरत रिश्ते में और भी निखार लाता है उनकी एक दूसरे के प्रति नाराज़गी का होना और फिर उसकी वह नारजगी को दूर कर एक दूसरे के और करीब आना

|रितु को अगर घर का खाना पसंद आता है तो नीलांश को बाहर खाना अच्छा लगता है ,रितु को यदि घर सजाना अच्छा लगता है तो नीलांश को घर फैलाना ,बस इन छोटी छोटी बातों से वह दोनों एक दूसरे पर खीजते रहते है और शिकवे शिकायतों का यह सिलसिला यूँ ही चलता रहता है ,कभी रितु नाराज़ ,तो कभी नीलांश लेकिन वह ऐसी नोक झोंक का भी लुत्फ़ लेते हुए आनंदित रहते है ,वह इसलिए कि उनका प्रेम एक दूसरे के प्रति विश्वास और मित्रता पर आधारित है,वह दोनों आपस में खुल कर एक दूसरे से अपने विचार अभिव्यक्त करते है ,लेकिन जब वैवाहिक जिंदगी में एक दूसरे के प्रति अविश्वास पनपने लगे या पति पत्नी का अहम आड़े आने लगे तो ऐसे में असली मुद्दा तो बहुत पीछे छूट कर रह जाता है और शुरू हो जाता है उनके बीच न खत्म होने वाली शिकायतों का दौर ,पति पत्नी दोनों को एक दूसरे की हर छोटी बड़ी बात चुभने लगती है ,इसके चलते उन दोनों का बेचारा कोमल दिल शिकवे शिकायतों के बोझ तले दब कर रह जाता है और बढ़ा देता है उनके बीच न खत्म होने वाली दूरियाँ ,जो उन्हें मजबूर कर देती है कोर्ट कचहरी के चक्कर काटने पर और खत्म होती है उनके वैवाहिक जीवन की कहानी तलाक पर जा कर ,अगर किसी कारणवश वह तलाक नही भी लेते और सारी जिंदगी उस बोझिल शादी से समझौता कर उसे बचाने में ही निकाल देतें है l
पति पत्नी का आपस में सामंजस्य दुनिया के हर रिश्ते से प्यारा हो सकता है ,अगर पति पत्नी दोनों इस समस्या को परिपक्व ढंग से अपने दिल की भावनाओं को एक दूसरे से बातचीत कर सुलझाने की कोशिश करें तो इसमें कोई दो राय नही होगी कि उनके बीच हो रहे शिकवे और शिकायतों का सिलसिला उन्हें भी रितु और नीलांश कि तरह आनंद प्रदान करेगा और एक दिन वह अपनी शादी की सिल्वर जुबली या गोल्डन जुबली अवश्य मनाएं गे |

रेखा जोशी

Monday, 6 May 2019

माँ

हाथ जोड़  झुकाये मस्तक
उर में भाव हृदय में वंदन
पूछा भक्त ने भगवन से
पूजा करूँ निस दिन तिहारी
कब दोगे  दरस अपने
कब  मिलोगे हे प्रभु
शीश झुकाये करूँ नित वंदन
हे करुणानिधान
अंतरघट  तक प्यासे  नैना
दरस तेरा पाने को
अलौकिक चमत्कार
हुआ इक फिर
आकाशवाणी से गूंजे
प्रभु के स्वर मधुर
मै तो रहता साथ तेरे
हर घड़ी हर पल
देख माँ के नैनों में
ममता दिखेगी मेरी
पूरी करती  इच्छायें  तेरी
लूटा कर
अपना सब कुछ तुम पर
तेरे लिए प्रार्थना  करती
जीती वह तेरे लिये
खुद को स्वाहा कर
तेरे लिये मरती
माँ ही भगवान माँ ही ईश्वर
दिल न कभी दुखाना उसका
माँ की पूजा जो करता
वह है मुझे प्रिये
वह है मुझे प्रिये

रेखा जोशी