बार बार
पुकारती हूँ तुम्हे
कहाँ छुपे हो त्रिपुरारि
...
कभी तो सुध लो मेरी
कभी तो जानो मेरा प्यार
बार बार
क्यों ले रहे हो
तुम मेरा इम्तिहां
...
समा गए हो
तुम मुझ में इस तरह
खत्म हो गया अब वजूद मेरा
तुम ही तुम हो
तन मन में बसे
बिन तेरे
कुछ नहीं हूँ मैं
कर दिया अर्पण खुद को
चरणों में तेरे
होना है तुम्हें शिव शंकर
खुद पर मेहरबान
होना है तुम्हें शिव शंकर
खुद पर मेहरबान
रेखा जोशी
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार आपका 🙏 🙏
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