चाहती हूँ तुम्हें लेकिन
प्यार न हमसे हो पायेगा
…
बहुत प्यारी है सूरत और सीरत तेरी, लेकिन
क्या करूँ उस दिल का
जकड़ा हुआ जो कर्त्तव्य की जंजीरों में
भूख के मारों को
भरपेट खाना खिलाएं गे
निभाना है यह फ़र्ज़ भी मुझे, फिर
प्यार न हमसे हो पायेगा
….
आओ बन जाओ साथी मेरे
हाथ बटाना तुम भी मेरा
मिल कर दोनों इक बनायें गे स्वर्ग यहां
गिरे हुओं को उठा कर
नव राह उन्हें दिखायेंगे
उनके उदास चेहरों पर
मुस्कान लेकर आयेंगे
उनके वीरान
आंगन में स्नेह का दीप जलाना
देख ऐसी उनकी हालत अभी तो
प्यार न हमसे हो पायेगा
रेखा जोशी
No comments:
Post a Comment