Saturday, 20 June 2020

पापा जैसा कोई नही --फादर्स डे पर [मेरी पुरानी पोस्ट ]

आज मेरे पापा हमारे साथ नहीं है वह हमें छोड़ कर परमात्मा में लीन हो चुके हैं l बस अब तो हमारी यादो में ही रह गए l वो जहां कहीं भी हो खुश रहें और अपना आशिर्वाद हमें देते रहें l. 
           
अमृतसर के रेलवे स्टेशन पर गाड़ी से उतरते ही मेरा दिल खुशियों से भर उठा ,झट से ऑटो रिक्शा पकड़ मै अपने मायके पहुंच गई,अपने बुज़ुर्ग माँ और पापा को देखते ही न जाने क्यों मेरी आँखों से आंसू छलक आये , बचपन से ले कर अब तक मैने अपने पापा के घर में सदा सकारात्मक उर्जा को महसूस किया है ,घर के अन्दर कदम रखते ही मै शुरू हो गई ढेरों सवाल लिए ,कैसो हो?,आजकल नया क्या लिख रहे हो ?और भी न जाने क्या क्या ,माँ ने हंस कर कहा ,”थोड़ी देर बैठ कर साँस तो ले लो फिर बातें कर लेना ”| अपनी चार बहनों और एक भाई में से मै सबसे बड़ी और सदा अपने पापा की लाडली बेटी रही हूँ ,शादी से पहले कालेज से आते ही घर में जहाँ मेरे पापा होते थे मै वहीं पहुंच जाती थी और जब तक पूरे दिन का लेखा जोखा उन्हें बता नही देती थी तब तक मुझे चैन ही नही पड़ता था | मै और मेरे पापा न जाने कितने घंटे बातचीत करते हुए गुज़ार दिया करते थे ,समय का पता ही नहीं चलता था और मेरी यह आदत शादी के बाद भी वैसे ही बरकरार रही ,ससुराल से आते ही उनके पास बैठ जाती थी लेकिन मेरी मम्मी हमारी इस आदत से बहुत परेशान हो जाती थी ,वह बेचारी किचेन में व्यस्त रहती और मै उनके साथ घर के काम में हाथ न बंटा कर अपने पापा के साथ गप्प लगाने में व्यस्त हो जाती थी ,लेकिन आज अपने पापा के बारे में लिखते हुए मुझे बहुत गर्व हो रहा है कि मै एक ऐसे व्यक्ति की बेटी हूँ जिसने जिंदगी की चुनौतियों को अपने आत्मविश्वास और मनोबल से परास्त कर सफलता की ओर अपने कदम बढ़ाते चले गए |

मात्र पांच वर्ष की आयु में उनके पिता का साया उनके सर के ऊपर से उठ गया था और मेरी दादी को अपने दूधमुहें बच्चे ,मेरे चाचा जी के साथ अपने मायके जा कर जिंदगी की नईशुरुआत करनी पड़ी थी जहां उन्होंने अपनी अधूरी शिक्षा को पूरा कर एक विद्धालय में प्रचार्या की नौकरी की थी और मेरे पापा अपने दादा जी की छत्रछाया में अपने गाँव जन्डियाला गुरु ,जो अमृतसर के पास है ,में रहने लगे | उस छोटे से गाँव की छोटी छोटी पगडण्डीयों पर शुरू हुआ उनकी जिंदगी का सफर ,मीलों चलते हुए उनकी सुबह शुरू होती थी ,वह इसलिए कि उनका स्कूल गाँव से काफी दूर था ,पढ़ने में वह सदा मेधावी छात्र रहे थे और इस क्षेत्र में उनके मार्गदर्शक रहे उनके चाचाजी जी जो उस समय एक स्कूल में अध्यापक थे | दसवी कक्षा से ले कर बी ए की परीक्षा तक उनका नाम मेरिट लिस्ट में आता रहा था ,बी ए की परीक्षा में उन्होंने पूरी पंजाब यूनिवर्सिटी में तृतीय स्थान प्राप्त कर अपने अपने गाँव का नाम रौशन किया था |धन के अभाव के कारण,पढ़ने के साथ साथ वह ट्यूशन भी किया करते थे ताकि मेरी दादी और चाचा जी की जिंदगी में कभी कोई मुश्किलें न आने पाए | दो वर्ष उन्होंने अमृतसर के हिन्दू कालेज में भौतिक विज्ञान की प्रयोगशाला में सहायक के पद पर कार्य किया और आगे पढ़ाईज़ारी रखने के लिए धन इकट्ठा कर अपने एक प्राध्यापक प्रो आर के कपूर जी की मदद से आदरणीय श्री हरिवंशराय बच्चन के दुवारा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के भौतिकी विभाग में एम् एस सी पढ़ाई के लिए प्रवेश लिया |

अपने घर से दूर एम् एस सी की पढ़ाई उनके लिए एक कठिन चुनौती थी,यहा आ कर मेरे पापा का स्वास्थ्य बिगड़ गया ,किसी इन्फेक्शन के कारण वह ज्वर से पीड़ित रहने लगे और उप्पर से धन का आभाव तो सदा से रहता रहा था ,इसलिए यहाँ पर भी वह पढ़ने के साथ साथ ट्यूशन भी करते रहे जिसका सीधा असर उनकी पढ़ाई पर पड़ा ,जैसे तैसे कर के वह प्रथम वर्ष के पेपर दे कर वापिस अमृतसर आगये |इसी समय मेरी मम्मी इनकी जिंदगी सौभाग्य ले कर आई .मेरे चाचा जी बैंक में नौकरी लगने के कारण पापा घर परिवार कि ज़िम्मेदारी माँ पर छोड़ कर अपनी पढ़ाई का द्वितीय वर्ष पूरा करने वापिस इलाहाबाद चले गए,उसके बाद अमृतसर के हिन्दू कालेज में लेक्चरार के पद पर आसीत हुए ,उसी कालेज में हेड आफ फिजिक्स डिपार्टमेंट बने ओए वाइस प्रिंसिपल के पद से रिटायर्ड हुए |उसके बाद वह लेखन कार्य से जुड़ गए ,हिंदी साहित्य में उनकी सदा से ही रूचि रही है ,उन्होंने श्रीमद्भागवत गीताका पद्धयानुवाद किया,उनके दुवारा लिखी गई पुस्तके , मै तुम और वह ,तुम ही तुम ,आनंद धाम काफी प्रचलित हुई और उन्हें कई पुरुस्कारों से भी सम्मानित किया गया |

पापा हम सभी बहनों और भाई के गुरु ,पथप्रदर्शक और मित्र रहें है ,उन्ही की दी हुई शिक्षा ,प्रेरणा और संस्कार है जिसके चलते हम सभी ने नौकरी के साथ साथ बहुत सी उपल्ब्दियाँ भी हासिल की है |इस वृद्धावस्था में भी उनका मनोबल बहुत ऊंचा है ,आज भी अपने कार्य वह स्वयम करना पसंद करते है ,मेरी ईश्वर प्रार्थना है वह सदा स्वस्थ रहे और अपना लेखन कार्य करते रहे |

रेखा जोशी
फरीदाबाद

Friday, 19 June 2020

मुक्तक

पहले पूरे जगत में फैलाई कोरोना महामारी
है भारत से ले लिया अब पंगा पड़ेगा तुमको भारी
अपनी औकात में रह बहुत कर ली तूने चालबाजियां
बन कर दोस्त घोंपता छुरा पीठ में करे सदा गद्दारी 

रेखा जोशी 
फरीदाबाद 




Friday, 12 June 2020

मुक्तक प्यार का बंधन

प्यार का बंधन संग संग हम निभाया करेंगे 
बच्चों को गोदी में हम  झूला झुलाया करेंगे 
जियेंगे  उनके संग संग फिर बचपन दोबारा 
अपने  बचपन  की बातें  उन्हें बताया करेंगे

रेखा जोशी 

Thursday, 11 June 2020

छोड़ के मोह माया को यहाँ से जाना इक दिन

अपने प्यारे रिश्तों का साथ हमने निभाना है 
जब तक तन में जान कर्म अच्छे करते जाना है
छोड़ के मोह माया को यहाँ से जाना इक दिन 
जीवन सफर में जो मिले प्यार से अपनाना है 
..
परिंदे  कब तलक रहते  कैद बंद पिंजरों  में 
उड़ान भरना फितरत ना कोई आशियाना है 
..
चार दिन की चाँदनी है जी भर के जी ले यहाँ 
सब छूट जायेगा बन्दे, दो दिन का ठिकाना है 
अकेले आए दुनिया में जाना हमें अकेले  
है झूठे सब बंधन मौत को गले लगाना है 

रेखा जोशी 









किस मोड़ पर जिंदगी ले आई

कैसी मैंने किस्मत है पाई

मेरी वफा तुझे रास न आई

.

सिवाय दर्द के मिला कुछ नहीं

तू तो बालम निकला हरजाई.

.

तूने बेदर्दी प्यार न जाना

फ़ितरत तेरी मैं न समझ पाई

.

काश न मिलते मुझे जिंदगी में

दिल लगा कर सजन मैं पछताई

..

जाओ तुमको माफ किया मैंने

किस मोड़ पर जिंदगी ले आई

रेखा जोशी

Tuesday, 9 June 2020

सुबह लाती फिर खुशियों की माला सजन

जब  रात में सिमट जाता उजाला सजन
सुबह लाती फिर खुशियों की माला सजन
,
देख   तेरे   नैन  हम  देखते  रह गये
भूल गये फिर सदा  मधुशाला  सजन
,
हर कर्म हम करेंगे साजन साथ साथ
रंग में अपने हमें  रंग डाला सजन
,
सुन्दर सलोना  बनायेंगे घर अपना
संग संग खायेंगे फिर निवाला सजन
,
साथी हाथ बढ़ा कर देना साथ सदा
संग जो तुम हो बना घर शिवाला सजन

रेखा जोशी

Monday, 8 June 2020

गीतिका

गीतिका 

तड़पते  रहे  लेने  को साँस ज़िन्दगी में
जी रहे  जीने के लिये आस ज़िन्दगी में
....
बुझ गये दिये जले थे जो पलकों में कभी
टूटते रहे   मेरे   एहसास  ज़िन्दगी में
...
उड़ गये पत्ते शाख से टूट कर यहाँ वहाँ
ठूठ  खड़ा  निहार रहा उदास ज़िन्दगी में
...
खो गये जज़्बात है  जीवन आधा अधूरा
जी रहे लेकर अनबुझी प्यास ज़िन्दगी में
....
रुकने को है साँस देख ली दुनिया यहाँ
नैन बिछाये मौत खड़ी पास ज़िन्दगी में
...

रेखा जोशी

Monday, 1 June 2020

है जीवन यहाँ बस दो दिन का मेला

है जीवन यहाँ बस दो दिन का मेला
रहता सुलझता झमेले पे झमेला
न दिन को चैन न रात को ही आराम 
पंछी आता अकेला जाता अकेला 
रेखा जोशी