गीतिका
जी रहे जीने के लिये आस ज़िन्दगी में
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बुझ गये दिये जले थे जो पलकों में कभी
टूटते रहे मेरे एहसास ज़िन्दगी में
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उड़ गये पत्ते शाख से टूट कर यहाँ वहाँ
ठूठ खड़ा निहार रहा उदास ज़िन्दगी में
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खो गये जज़्बात है जीवन आधा अधूरा
जी रहे लेकर अनबुझी प्यास ज़िन्दगी में
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रुकने को है साँस देख ली दुनिया यहाँ
नैन बिछाये मौत खड़ी पास ज़िन्दगी में
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रेखा जोशी
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