अतिथि रचना
गीत
है जीवन यहाँ बस दो दिन का मेला
पंछी आता अकेला जाता अकेला
...
जीवन मीठा हो या कड़वा करेला
रहा सुलझाता झमेले पे झमेला
दिन को चैन न रात को मिले आराम
जाने कब आ जाये मौत की बेला
.
मनाऊँ किस जीत पर जश्न की बेला
बहाऊँ हार पर आंसुओं का रेला
इक दिन जुदा हो जाना है संसार से
कौन करे गा याद फिर तुझे अलबेला
...
अजब ग़ज़ब जीवन में वक्त का खेला
पास होगा न कोई संगी सहेला
धरा का धरा रह जाएगा यहां सब
साथ न जाए किसी के इक भी धेला
..
है जीवन यहाँ बस दो दिन का मेला
पंछी आता अकेला जाता अकेला
रेखा जोशी
बहुत बढ़िया ।
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