ग़ज़ल
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
1222 1222 122
काफिया आना
रदीफ़ और ही था
तिरा साजन फ़साना और ही था
न मिलने का बहाना और ही था
..
न जाना छोड़ कर महफ़िल हमारी
तिरा फिर रूठ जाना और ही था
...
रही हसरत अधूरी प्यार में अब
वफ़ा हमसे निभाना और ही था
....
शमा जलती नही है रात भर अब
हमारा वह ज़माना और ही था
...
बदल कर रूप अपना ज़िन्दगी अब
हमारे पास आना और ही था
रेखा जोशी
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteशुक्रिया
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