Thursday, 15 June 2023

जीवनक्रम

छंदमुक्त रचना

समय धारा के संग 
बहता रहा जीवन सारा
युगों युगों से 
इस धरा पर रात दिन छलते रहे
और चलता रहा यूहीं
निरंतर जीवनक्रम हमारा 

हर पल हर क्षण यहाँ पर
आते जाते है मुसाफिर
है कहीं पर हास और
रूदन है कहीं पर
गागर ख़ुशी से भरी 
कहीं कलश गम के.भरे
धूप आँगन में खिले 
कहीं छाये बादल धनें
और चलता रहा यूहीं
निरंतर जीवनक्रम हमारा

फिर भी धूप छाँव से 
सजा जीवन यह हमारा
है बहुत अनमोल
आओ जी लें यहाँ
हर ऋतु हर मौसम
हँसने के पल पाकर हँसले
और रोने के रोकर
दो दिन के इस जीवन का
जी लें हर पल हर क्षण 
और चलता रहे यूहीं
निरंतर जीवनक्रम हमारा

रेखा जोशी


Wednesday, 14 June 2023

बन जाओ फिर काले बादल


छंदमुक्त  रचना 

श्वेत बादल
हो नील नभ के 
क्यों खड़े हो आज अविचल
भर कर गहरे रंग 
बन जाओ फिर काले बादल 

झुलस गये पेङ पौधे
गर्म हवाओं से
ठूठ रहा खङा निहारता 
जीने की आस लिए
बरस जाओ फिर इक.बार
भर कर गहरे रंग 
बन जाओ फिर काले बादल 

अंर्तघट तक जहाँ
है प्यासी प्यासी धरा
उड़ जाओ संग पवन के
बरसा दो अपनी
अविरल जलधारा
तृप्त कर दो धरा वहाँ
कर दो अवनी का
आँचल हरा
बिखेर दो खुशियाँ  यहाँ वहाँ
भर कर गहरे रंग 
बन जाओ फिर काले बादल 

रेखा जोशी






Thursday, 8 June 2023

इक छोटू

जाने कहां 
खो गया बचपन 
अक्सर दिख जाता है
किसी ढाबे या चाय की दुकान पर
इक छोटू 

पढ़ने लिखने की बाली उम्र 
गंदे जूठे बर्तन धोते छोटे छोटे हाथ
लाचार, बेबस 
सूनी आंखों से निहारता
डांट खाता हुआ अपने मालिक की
थप्पड़ों की गूँज से आहत
अक्सर दिख जाता है
किसी ढाबे या चाय की दुकान पर
इक छोटू 

नन्हे नन्हें कन्धों. पर
जिम्मेदारियों का बोझ उठा रहा
न जाने किस जुर्म की सजा पा रहा
किसका कर्ज चुका रहा
बेचारा बच्चा
अक्सर दिख जाता है
किसी ढाबे या चाय की दुकान पर
इक छोटू 

रेखा जोशी