छंदमुक्त रचना
हो नील नभ के
क्यों खड़े हो आज अविचल
भर कर गहरे रंग
बन जाओ फिर काले बादल
झुलस गये पेङ पौधे
गर्म हवाओं से
ठूठ रहा खङा निहारता
जीने की आस लिए
बरस जाओ फिर इक.बार
भर कर गहरे रंग
बन जाओ फिर काले बादल
अंर्तघट तक जहाँ
है प्यासी प्यासी धरा
उड़ जाओ संग पवन के
बरसा दो अपनी
अविरल जलधारा
तृप्त कर दो धरा वहाँ
कर दो अवनी का
आँचल हरा
बिखेर दो खुशियाँ यहाँ वहाँ
भर कर गहरे रंग
बन जाओ फिर काले बादल
रेखा जोशी
काले मेघा जल्दी आ ! इस धरती की प्यास बुझा!!
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुुतअच्छी रचना
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