Wednesday, 14 June 2023

बन जाओ फिर काले बादल


छंदमुक्त  रचना 

श्वेत बादल
हो नील नभ के 
क्यों खड़े हो आज अविचल
भर कर गहरे रंग 
बन जाओ फिर काले बादल 

झुलस गये पेङ पौधे
गर्म हवाओं से
ठूठ रहा खङा निहारता 
जीने की आस लिए
बरस जाओ फिर इक.बार
भर कर गहरे रंग 
बन जाओ फिर काले बादल 

अंर्तघट तक जहाँ
है प्यासी प्यासी धरा
उड़ जाओ संग पवन के
बरसा दो अपनी
अविरल जलधारा
तृप्त कर दो धरा वहाँ
कर दो अवनी का
आँचल हरा
बिखेर दो खुशियाँ  यहाँ वहाँ
भर कर गहरे रंग 
बन जाओ फिर काले बादल 

रेखा जोशी






6 comments:

  1. काले मेघा जल्दी आ ! इस धरती की प्यास बुझा!!

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    1. सादर आभार आदरणीया 🙏🙏

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  2. खूबसूरत अभिव्यक्ति

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    1. सादर आभार आपका 🙏🙏

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  3. बहुुतअच्‍छी रचना

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  4. सादर आभार आपका 🙏🙏

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