जाने कहां
खो गया बचपन अक्सर दिख जाता है
किसी ढाबे या चाय की दुकान पर
इक छोटू
पढ़ने लिखने की बाली उम्र
गंदे जूठे बर्तन धोते छोटे छोटे हाथ
लाचार, बेबस
सूनी आंखों से निहारता
डांट खाता हुआ अपने मालिक की
थप्पड़ों की गूँज से आहत
अक्सर दिख जाता है
किसी ढाबे या चाय की दुकान पर
इक छोटू
नन्हे नन्हें कन्धों. पर
जिम्मेदारियों का बोझ उठा रहा
न जाने किस जुर्म की सजा पा रहा
किसका कर्ज चुका रहा
बेचारा बच्चा
अक्सर दिख जाता है
किसी ढाबे या चाय की दुकान पर
इक छोटू
रेखा जोशी
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