Tuesday, 30 April 2024

छंदमुक्त रचना

छंद मुक्त रचना 

हाल ए दिल क्या कहें अपना 
जो हाल तुम्हारा है 
यही हाल इधर भी है 

न दिन को चैन पाते हैं 
तुम से मिलने की
इक हूक सी उठती है
करवटे बदलते राते गुजरती है
हर धड़कन लेती है नाम तुम्हारा 
मेरी सांसों में समाये रहते हो 
उधर बैचैन तुम हो
इधर बैचन हम हैँ 

हाल ए दिल क्या कहें अपना 
जो हाल तुम्हारा है 
यही हाल इधर भी है 

रेखा जोशी 



Sunday, 28 April 2024

भूलना अच्छा लगता है

छंदमुक्त रचना 

बीती बातों को क्या याद करना 
बेहतर है उन्हें भूल जाना 

भूलना  अच्छा  लगता है 
जब उस दर्द को याद कर
बहने लगे आंसू 
जब उस कड़वे सच का 
एहसास कर इक कसक
तड़पा जाए मन को 
बेहतर है उन्हें भूल जाना 

भूलना अच्छा लगता है 
छोड़ गुजरे वक़्त को पीछे 
सिवा पीड़ा के कुछ भी तो 
हासिल होता नहीं 
बेकार के ताने बाने में 
फिर क्यों उलझाएँ दिल को
बेहतर है उन्हें भूल जाना 

रेखा जोशी 



गीत

गीत 

साँझ सवेरे प्रियतम मेरे
है यादें रहीं मुझे घेरें 
..
रात दिन तेरी करूँ पूजा
तेरे सिवा न कोई दूजा 
संग तेरे ले लिए फेरे 
है यादें रहीं मुझे घेरें 
..
जानू न यहाँ रीत प्रीत की
जोगन भई अपने मीत की
मुझे बुला लो अपने डेरे 
है यादें रहीं मुझे घेरें 
..
साँझ सवेरे प्रियतम मेरे
है यादें रहीं मुझे घेरें 

रेखा जोशी 



Wednesday, 24 April 2024

दोस्त

जीवन में कुछ दोस्त 
इस कदर जुड़ जाते हैँ 
और जिंदगी जीना फिर से 
सिखला जाते हैँ 
..
जब गम के अंधेरों में 
भटकते हैं तन्हा 
तब पोंछने को आंसू 
कुछ दोस्त चले आते हैँ 
और फिर से 
मुस्कुराना सिखला जाते हैँ
और जिंदगी जीना फिर से 
सिखला जाते हैँ  
..
खुशनसीब हैँ वो लोग 
जिन्हें मिलते हैँ सच्चे दोस्त
जो कांधे पर रख हाथ अपना 
जीवन के मुश्किल दौर से 
बाहर ले आते हैँ 
अक्सर ऐसे दोस्त सुख दुख में 
सदा साथ निभाते हैँ 
और जिंदगी जीना फिर से 
सिखला जाते हैँ 

रेखा जोशी 

Sunday, 21 April 2024


गीतिका 

दिल मचलता रहा पर उनसे ना मुलाकात हुई बीता दिन इंतज़ार में अब तो सजन रात हुईं

रिमझिम बरसती बूंदों से है नहाया तन बदन
आसमान से आज फिर से जम कर बरसात हुईं

,काली घनी  घटाओं संग चले शीतल हवाएँ उड़ने लगा मन मेरा ना  जाने क्या बात हुई

झूला झूलती सखियाँ है पिया आवन की आस आए ना  सजन  मेरे  बीती  रैन  प्रभात  हुई 

चमकती दामिनी गगन धड़के हैं मोरा जियरा
गर आओ मोरे बलम तो  बरसात सौगात हुईं

रेखा जोशी

Friday, 12 April 2024

ज़िन्दगी की तूलिका

छंद मुक्त रचना 

यह जो है ज़िन्दगी की तूलिका
अक्सर बिखेरती रहती अनेकानेक रंग 
हमारे जीवन के केनवस पर 

हार जीत के रंग 
ख़ुशी गम लिए रंग 
सुख दुख से भरे रंग 
ये रंग बिरंगी ज़िन्दगी हमारी 
अक्सर बिखेरती रहती अनेकानेक रंग
हमारे जीवन के केनवस पर 

खो जाते विभिन्न रंगों में हम 
अक्सर बह जाते 
भावना के रंगों संग हम 
देती है पीड़ा दर्द भी हमें 
ख़ुशी के संग संग 
रुलाती भी बहुत है 
हंसी के संग संग हमें 
ये रंग बिरंगी ज़िन्दगी हमारी 
अक्सर बिखेरती रहती अनेकानेक रंग
हमारे जीवन के केनवस पर 

यह जो है ज़िन्दगी की तूलिका
अक्सर बिखेरती रहती अनेकानेक रंग 
हमारे जीवन के केनवस पर 

रेखा जोशी 


Sunday, 7 April 2024

आईना झूठ नहीं बोलता

विधा --छंदमुक्त 

आईना जो कहे 
वह सदा सच नहीं होता 
है दिखलाता वही तुम्हें 
जो देखना चाहते हो तुम 
छुपा कर सच 
है झूठ बोलता वोह 
धुंधला गया है वोह शायद 
गर देखना चाहते हो सच को
है देखना तुम्हें 
साफ साफ अक्स अपना 
तो पोंछ लो अच्छे से उसे 
और अपने मन को भी
तब आईना सच बतायेगा 
क्योंकि वह कभी झूठ नहीं बोलता 

रेखा जोशी 



Wednesday, 3 April 2024

भयानक काली रात

वोह खौफ़नाक मंजर आते ही याद
केदारनाथ धाम की वोह शाम 
थी भयानक  काली रात 
जब तबाही ही तबाही थी हर ओर 
कांप उठती है रूह अभी भी  
जब था दिखलाया महादेव नें 
रौद्र रूप अपना 
थे बिखर गए सब ताश के पत्तों से 
भवन, पुल गाड़िया सब कुछ 
उस महा जलप्रलय में 
भयंकर गर्जना करती मन्दाकिनी
अपने प्रबल वेग से बहा ले गई संगअपने 
सोते लोगों को पानी में 
बह गए प्रवेग धारा में क्या बच्चे क्या बूढ़े 
सब के सब लीन हुए जल समाधि में 
मन्दाकिनी के  भारी शोर में खामोश हुआ 
चीखों का शोर 
पत्नी का हाथ पति से छूटा
बिछड़ गए अपने अपनों से 
परिवार के परिवार लुप्त हो गए 
क्षण भर में विलिप्त हो गए
वक़्त वो तो गुजर गया 
लेकिन कैसे भर पाएंगे 
वो गहरे ज़ख्म, जो छोड़ गए 
दुख भरी दास्तां पीछे अपने 

रेखा जोशी