मुश्किलों का
जिंदगी के सफर में
और
मैं चलता ही गया
रुका नहीं, झुका नहीं
ऊँचे पर्वत गहरी खाई
मैं लांघता गया
और
मैं चलता ही गया
कभी राह में मिली खुशी
मिला गले उसके
कभी दुखों का टूटा पहाड़
रोया बहुत पर
खुद को संभालता गया
और
मैं चलता ही गया
जीवन के सफर में
कई साथी मिले चल रहे हैं साथ कुछ
यादें अपनी देकर कुछ छोड़ चले गए
और
बंधनों से घिरा
मैं चलता ही गया
चलता ही जा रहा हूँ
और
चलता ही रहूँगा
जीवन के सफर में
अंतिम पड़ाव आने तक
अंतिम पड़ाव आने तक
रेखा जोशी