काल का पहिया निरंतर चलता जा रहा है
शाम ए ज़िंदगी में अब अँधेरा छा रहा है
लम्हा लम्हा फिसलती जा रही यह ज़िंदगी
बीत गई जवानी अब बुढ़ापा आ रहा है
शाम ए ज़िंदगी में अब अँधेरा छा रहा है
लम्हा लम्हा फिसलती जा रही यह ज़िंदगी
बीत गई जवानी अब बुढ़ापा आ रहा है
रेखा जोशी
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