Monday, 24 September 2018

संस्मरण


संस्मरण

बात लगभग बीस वर्ष पहले की है,जून का महीना था और चिलचिलाती धूप, ऐसे में घर से बाहर निकलना मुश्किल सा हो गया था l एक दिन,भरी दोपहर के समय मै  अपनी पड़ोसन के घर गई और उनके यहाँ मैने एक छोटा सा  सुसज्जित  पुस्तकालय देखा,जिसमे करीने से रखी हुई अनेक पुस्तकें थी   |उस अमूल्य निधि को देखते ही मेरे तन मन में प्रसन्नता की एक लहर दौड़ने लगी ,''आंटी आपके पास तो बहुत सी पुस्तके है ,क्या आपने यह सारी पढ़ रखी है,''मेरे  पूछने पर उन्होंने कहा,''नही बेटा ,मुझे पढने का शौंक है ,जहां से भी मुझे कोई अच्छी पुस्तक मिलती है मै खरीद लेती हूँ और जब भी मुझे समय मिलता है ,मै उसे पढ़ लेती हूँ ,पुस्तके पढने की तो कोई उम्र नही होती न ,दिल भी लगा रहता है और कुछ न कुछ नया सीखने को भी मिलता  हैl
मुझे महात्मा गांधी की  लिखी पंक्तियाँ याद आ गयी ,'' अच्छी पुस्तके मन के लिए साबुन का काम करती है ,''हमारा आचरण तो शुद्ध होता ही है ,हमारे चरित्र का भी निर्माण होने लगता है ,कोरा उपदेश या प्रवचन किसी को इतना प्रभावित नही कर पाते जितना अध्ययन या मनन करने से हम प्रभावित होते है l तब से मैं अपनी पड़ोसन आंटी जी के घर के प्रकाश पुँज रूपी पुस्तकालय  में से हर रोज पुस्तक रूपी अनमोल रत्न अपने घर लेकर आने लगी और  लम्बी दोपहर में उन्हे पढ़ना शुरू कर दिया, पुस्तकें पढ़ने की आदत तब से आज तक  बरकरार है l

रेखा जोशी

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