Wednesday 19 September 2018

छुप गया न जाने कहाँ


छुप गया
न जाने कहाँ
वोह
भोला सा बचपन
ईंटों और पत्थरों में
खो गया कहीं
पढ़ने लिखने की उम्र में
श्रम का बोझ
क्यों आन पड़ा
नन्हें नन्हें हाथों पर
हथोड़े की  ठक ठक से
है टूट गई जिंदगी
सुकोमल हाथों पर
पड़ गये अनगिनत छाले
गरीबी और लाचारी के मारे
यूँ ही अपना जीवन बिताते
यूँ ही अपना जीवन बिताते

रेखा जोशी

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