Friday, 26 April 2019

टेढ़ा है पर मेरा है

यह जिंदगी भी कितनी अजीब होती है खासतौर पर लड़कियों के लिए ,जन्म देने वाले माता पिता ,पालपोस और पढ़ा लिखा कर अपनी बेटी को अपने ही हाथों किसी पराये पुरुष के हाथ सौंप कर निश्चिन्त हो जाते है ,बस उनका कर्तव्य पूरा हुआ ,बेटी अपने घर गई गंगा नहाए |

मीनू ने भी अपने माँ बाप का घर छोड़ कर अपने ससुराल में जब कदम रखा तो उसका स्वागत करने उसकी सासू माँ दरवाज़े पर खड़ी थी हाथ में आरती की थाली लिए ,उसकी आरती उतारी गई ,अपने पाँव से चावल से भरे लोटे को उल्टाने के बाद मीनू ने आलता भरे पावों से घर के दरवाज़े के अंदर कदम रखा ,घर के भीतर कदम रखते ही उसने दरवाज़े की तरफ देखा ,”अरे यह क्या घर का मुख्य दरवाज़ा टेढ़ा ”उसे क्या पता था कि उसका अब कितने टेढ़े लोगों से पाला पड़ने वाला है ,ख़ैर जब शादी के बाद की सारी रस्मे पूरी हो गई तो प्रेम उसे घुमाने मनाली की सुंदर वादियों में ले गया ,अल्हड़ जवान लडकी की भाँती कल कल करती ब्यास नदी ने उसका मन मोह लिया और उपर से शहद से भी मीठा प्रेम का प्रेम रस ,ऐसा लगने लगा जैसे अनान्यास ही सारी खुशियाँ उसकी झोली में आन पड़ी हो ,परन्तु यह सब खुशियाँ कुछ ही दिनों की मेहमान थी ,ससुराल में पतिदेव ,सास ससुर के साथ साथ बड़े भैया , भाभी ,नन्द ,छोटा देवर ,सबको खुश रख पाना मीनू के लिए एक चुनौती भरा कार्य था ,एक जन खुश होता तो दूसरा नाराज़ ,सब की सोच अलग ,खानपान अलग,उसे कभी किसी के ताने सुनने पड़ते तो कभी किसी की डांट फटकार ,लेकिन एक बात तो थी उसके पति प्रेम सदा एक मजबूत ढाल बन कर उसके आगे खड़े हो जाते,और बंद हो जाती सबकी बोलती ,किन्तु मीनू के लिए इस सबसे भी कठिन था अपने प्यारे पतिदेव प्रेम को समझना ,उसे पता ही नही चल पाता कि उसकी किस बात से उसके पिया रूठ जाते और उन्हें मनाना तो और भी मुश्किल ,ख़ैर दिन महीने साल गुजर गए अब मीनू इस घर के हर सदस्य को अच्छी तरह जान चुकी थी ,बहुत मुश्किलों से गुजरना पड़ा था उसे अपने ससुराल में सबके साथ सामंजस्य स्थापित करने में ,लेकिन अपने पतिदेव को समझ पाना उफ़ माँ अभी तक उसके लिए टेढ़ी खीर थी , भगवान् ही जाने ,सीधे चलते चलते कब किस दिशा करवट मोड़ ले ,मीनू इसे कभी समझ नही पाई ,चित भी अपनी और पट भी अपनी ,खुद ही अपना सामान रख कर भूल जाना तो उनकी पुरानी आदत है ,चलो आदत है तो मान लो ,लेकिन नहीं प्रेम जैसा सम्पूर्ण व्यक्तित्व वाला इंसान गलती करे ,ऐसा तो कभी हो ही नही सकता ,पूरी दुनिया में कुछ भी घटित हो जाए उस सबके लिए ज़िम्मेदार है तो सिर्फ और सिर्फ मीनू ,लेकिन दुनिया में जो सबसे प्यारी है तो वह भी तो सिर्फ और सिर्फ मीनू ,अपने पतिदेव के ऐसे व्यवहार के कारण न जाने कितनी राते रो रो कर गुजारी थी मीनू ने ,न जाने क्यों प्रेम मीनू की हर बात को उल्टा क्यों ले लेता ,वह कुछ भी कहती तो प्रेम ठीक उसके विपरीत बात कहता ,कहीं से भी वह उसके साथ तालमेल नहीं बिठा पाती ,हार कर चुप हो जाती ,शायद यह उसका अहम था यां फिर कुछ और , परन्तु जैसा जिसका स्वभाव होता है उसे शायद ही कोई बदल पाता हो

|प्रेम दिल का बहुत अच्छा इंसान होते हुए भी पता नही क्यों मीनू के जज़्बात को नही समझ पाया ,वह मीनू से बहुत प्यार करता था लेकिन अपने ही तरीके से |काश प्रेम मीनू को समझ पाता,उसके मन में उमड़ते प्रेम के प्रति बह रहे प्यार के सैलाब को देख पाता,यह सब सोचते सोचते मीनू की आँखे फिर से भर आई |आज पच्चीस साल हो गए उनकी शादी को, वैसा ही प्रेम और वैसा ही उसका स्वभाव ,अबतो घर में बहू भी आ गई जिसने भी आते ही प्रेम से कहा ,”पापा इस घर के टेढ़े दरवाज़े को बदलवा दो ,यह देखने में अच्छा नही लगता ,”|चौंक पड़ी मीनू ,हंस कर कहा ,”बेटा,कोई बात नही ,यह टेढ़ा है पर हमारा अपना है ”l

रेखा जोशी

Monday, 22 April 2019

जादुई चिराग

अलादीन का जादुई चिराग कहीं खो गया ,कहाँ खो गया ,मालूम नहीं ,कब से खोज रहा था बेचारा अलादीन ,कभी अलमारी में तो कभी बक्से में ,कभी पलंग के नीचे तो कभी पलंग के उपर ,सारा घर उल्ट पुलट कर रख दिया ,लेकिन जादुई चिराग नदारद ,उसका कुछ भी अता पता नहीं मिल पा रहा था आखिर गया तो कहाँ गया, धरती निगल गई या आसमान खा गया ,कहां रख कर वह भूल गया |”शायद उसका वह जादुई चिराग उसके किसी मित्र या किसी रिश्तेदार के यहाँ भूल से छूट गया है”|यह सोच वह अपने घर से बाहर निकल अपने परिचितों के घरों में उस जादुई चिराग की खोज में निकल पड़ा ,लेकिन सब जगह से उसे निराशा ही हाथ लगी

|थक हार ,निराश हो कर अलादीन एक पार्क के बेंच पर बैठ गया ,अपने जादुई चिराग के खो जाने पर वह बहुत दुखी था, रह रह कर उसे अपने जादुई चिराग और उसमे बंद जिन्न की याद सता रही थी ,|,”कही उसका जादुई चिराग चोरी तो नहीं हो गया ,”|यह सोच वह और भी परेशान हो गया ,”अगर किसी ऐरे गेरे के हाथ लग गया तो ,बहुत गडबड हो जाए गी ,अनर्थ भी हो सकता है ,नहीं नहीं मुझे अपना वह जादुई चिराग वापिस पाना ही होगा ”|भारी कदमो से अलादीन बेंच से उठा और धीरे धीरे बाहर की ओर चलने को हुआ ही था कि सामने से एक भद्रपुरुष हाथ में जादुई चिराग लिए उसके पास आये |उसे देखते ही अलादीन उछल पड़ा ,”अरे मेरा यह जादुई चिराग आप के पास कैसे ? मैने इसे कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा ,मै इसके लिए कितना परेशान था ,कही आपने इससे कुछ माँगा तो नही ?”अच्छा तो आप ही अलादीन है ,आपका यह जादुई चिराग तो सच में बहुत कमाल का है ,मैने इसे अपडेट कर दिया है और इसने कितने ही घरों के बुझते चिरागों को रौशन कर दिया है ,तुम भी देखना चाहो गे ,”यह कहते हुए उस भद्रपुरुष ने अपने हाथ से उस जादुई चिराग को रगडा और उसमे से जिन्न ने निकलते ही बोला, ”हुकम मेरे आका”| ”कौन हो तुम ?”भद्रपुरुष ने पूछा |

जिन्न ने बोलना शुरू किया ,”मै अभी ,इसी समय का एक अनमोल पल हूँ ,वह क्षण हूँ मै जो तुम्हारी दुनिया बदल सकता है ,मै वर्तमान का वह पल हूँ जो एक सुदृढ़ पत्थर है तुम्हारे सुनहरे भविष्य की ईमारत का ,तुम चाहो तो अभी इसी पल से उसे सजाना शुरू कर सकते हो ,इस पल कि शक्ति को पहचानो ,व्यर्थ मत गंवाओ इस कीमती क्षण को ,तुम अपनी जिन्दगी की वह सारी की सारी खुशियाँ पा सकते हो इस क्षण में ,वर्तमान के इस क्षण के गर्भ में विद्यमान है हमारे आने वाले कल की बागडोर ,वर्तमान का यह पल हमारे आने वाले हर पल का वर्तमान बनने वाला है ,जीना सीखो वर्तमान के इसी पल में ,जिसने भी इस पल के महत्व को जान लिया उनके घर खुशियों से भर जाएँ गे ,जगमगा उठे गी उनकी जिंदगी ”|इतना कहते ही जिन्न वापिस उस जादुई चिराग में चला गया”| अलादीन अवाक सा खड़ा देखता रह गया ,कभी वह अपने जादुई चिराग को देखता तो कभी मुस्कराते हुए उस भद्रपुरुष को |हाथ आगे बड़ा के उसने उस भद्रपुरुष से अपना वह जादुई चिराग ले लिया और उसी पल उसने फैसला कर लिया कि वह निकल पड़ा अपने जादुई चिराग के साथ पूरी दुनियां को उसका उसका चमत्कार दिखाने l

रेखा जोशी

Friday, 19 April 2019

हम सब देश के चौकीदार

हम सब देश के चौकीदार

जन्‍म लिया जिस माटी में
बीता गोद में  जिसके बचपन
वहाँ कर रहे अत्याचार
शूरवीरों की इस धरती पर
जयचंदो की है भरमार
भरे हुए है देश में दुश्मन
अपने ही भाई बंधु गद्दार
किस लालच में अंधे होकर
भूल गए अपने संस्कार
भारत की गरिमा मर्यादा का
कर रहे हैं तिरस्कार
जा मिल बैठे दुश्मन के संग
लगाए बैठा जो पहले से घात
कैसी सोच कैसी नीति
है धिक्कार है धिक्कार

धरम अपना जो निभा रहे
देश के हैं वह पहरेदार
देश की है खाते सौगंध
सबक सिखाएंगे गद्दारों को अब
सबसे ऊपर राष्ट्र हमारा
बढ़ाएँ गे इसकी शान
रक्षा करेंगे भारत की अब
हम सब देश के चौकीदार

रेखा जोशी

Friday, 12 April 2019

खून की कीमत बहुत सस्ती है

गरीब की यहां अजब हस्ती हैं
खून की कीमत बहुत सस्ती है
,
कहती दर्द ओ ग़म की दास्तां
ग़म की बस्ती अजीब बस्ती है
,
बहुत रुलाते भूख के आंसू
पेट की ज्वाला नहीं बुझती है
,
जीवन की नाव पार लगे कैसे
टूटी पतवार और टूटी कश्ती है
,
मिलती उन्हे दर दर की ठोकरें
बार बार चोट  यहां रिसती है

रेखा जोशी

राष्ट्र प्रेम

मिटा सके जो यहाँ भ्रष्टाचार
सपने  आवाम के हों साकार
देश  की  करे  जो चौकीदारी
आनी  चाहिए  ऐसी  सरकार
..
छिपे  हुए  घर में  कई गद्दार
आओ बनें हम सब पहरेदार
देश  के  दुश्मन हैं जो  हमारे
सबक सिखा दे उन्हें सरकार

रेखा जोशी

Wednesday, 10 April 2019

इक दूजे से आज आओ साथी बातें करें


इक दूजे से आज
आओ साथी बातें करें

करें बात नेह प्यार की
पोथी पढ़ि पढ़ि तो जग मुआ
पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम के
पढ़े सो पंडित होए
प्रेम ही  है जीवन
प्रेम ही है इक दूजे का सहारा
आओ प्रिय प्रेम से मिलें गले

इक दूजे से आज
आओ साथी बातें करें

मधुर पल ये जाए न बीत
थाम लें इक दूजे का हाथ
दो दिन का है खेल सारा
प्यारा यह जीवन हमारा
चाहे कितने भी गम  मिलें
सुख दुख बांटे दिल खोल के

इक दूजे से आज
आओ साथी बातें करें

रेखा जोशी

Wednesday, 3 April 2019

मै बांसुरी बन जाऊं  प्रियतम


मै बांसुरी बन जाऊं  प्रियतम
और फिर अधर धरो इसे तुम
...
मधुर बांसुरी की मैं धुन सुन
पाऊं कान्हा को राधिका बन 
.....
रोम रोम यह कम्पित हो जाए
तन मन में कुछ ऐसा भर  दे
.....
प्रेम नीर आये नयनों में भर
शांत करे ज्वाला अंतर  मन
...
फैले कण कण में उजियारा
और हर ले मन का अँधियारा
...
मै बांसुरी बन जाऊं  प्रियतम
और फिर अधर धरो इसे तुम
....

रेखा जोशी