हम सब देश के चौकीदार
जन्म लिया जिस माटी में
बीता गोद में जिसके बचपन
वहाँ कर रहे अत्याचार
शूरवीरों की इस धरती पर
जयचंदो की है भरमार
भरे हुए है देश में दुश्मन
अपने ही भाई बंधु गद्दार
किस लालच में अंधे होकर
भूल गए अपने संस्कार
भारत की गरिमा मर्यादा का
कर रहे हैं तिरस्कार
जा मिल बैठे दुश्मन के संग
लगाए बैठा जो पहले से घात
कैसी सोच कैसी नीति
है धिक्कार है धिक्कार
धरम अपना जो निभा रहे
देश के हैं वह पहरेदार
देश की है खाते सौगंध
सबक सिखाएंगे गद्दारों को अब
सबसे ऊपर राष्ट्र हमारा
बढ़ाएँ गे इसकी शान
रक्षा करेंगे भारत की अब
हम सब देश के चौकीदार
रेखा जोशी
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (21-04-2019)"सज गई अमराईंयां" (चर्चा अंक-3312) को पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
- अनीता सैनी
सादर आभार आपका 🙏 अनिता जी
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसादर आभार आपका 🙏 अनुराधा जी
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteसादर आभार आपका 🙏 onkar जी
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