जगदंबिका जगत जननी
समझ सकती हूँ पीड़ा तेरी
इक दूजे के खून के प्यासे
दो भाईयोँ को देख
दर्द से तिलमिला उठी कोख मेरी
.
ममतामयी माँ हो तुम
रचना जो की जग की
महसूस कर सकती हूँ मै
तड़प तुम्हारे मन की
क्या गुज़रती होगी सीने में तुम्हारे
रक्त से सनी लाल धरा देख कर
बमों के धमाको से जब गूँजता आसमान
दम तोड़ती जब तेरी सन्तान
.
हे माँ अब सुन पुकार
आज अपने गर्भ की दिखा दे ममता
आँसू पोंछ उनके खून बन जो टपक रहे
सुख की साँस ले सकें सब
फिर नीले अम्बर तले
घृणा आपस की मिटा कर
दिखा शक्ति अपने प्रेम की
रेखा जोशी
सुन्दर
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी.
पधारें- अंदाजे-बयाँ कोई और
सादर आभार आपका 🙏
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ReplyDeleteसुन्दर लेख
ReplyDeleteसादर आभार आपका Onkar जी
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