मुसाफ़िर हो तुम भी, मुसाफिर हैं हम भी
इस जीवन सफर में
शुरू हुआ यह सफर धरा पर आते ही
कितना सुहाने थे वोह बचपन के दिन
माँ की गोद, बाप का प्यार
यही थी दुनिया यही था संसार
संघर्षरत हुआ जीवन जवानी के आते ही
हुआ अहसास सुख दुख, हार जीत का
लेकिन सफर चलता रहा
आई है अब तो जीवन की शाम
बढ़ रहे हैं हम मंजिल की ओर
खत्म हो जाएगा इक दिन सब कुछ
रह जाएगी बस चिता की धूल
यही तो है अंतिम पड़ाव
जीवन के इस सफर का
रेखा जोशी
अंत सभी का यही होना है। 👌👌
ReplyDeleteपधारे- शून्य पार
सादर आभार आपका 🙏 🙏
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