आवारा हूँ मै बादल
हवा के संग संग घूमता रहता हूँ मैं
आज यहां कल कहीं और
चला जाता हूँ मैं
नहीं कोई मंजिल नहीं कोई राह
मन हुआ जहां
बरस जाता हूँ वहाँ
लेकिन
खत्म हो जाता है अस्तित्व मेरा
जल की धारा बन कर
आवारा हूँ तो क्या हुआ
भिगोकर आँचल अवनी का
हरियाली चहुँ ओर
फैलाता हूँ मैं
खेत खलियान, पेड़ पौधे
आशीष सबका पाता हूँ मैं
आवारा हूँ मै बादल
खुशियां धरा पर
बरसाता हूँ मैं
रेखा जोशी
मेरी खुशियां सब इस आवारगी से
ReplyDeleteमेरा मान सम्मान सब इस आवारगी के नाम।
बहुत ही सुंदर रचना।
कुछ पंक्तियां आपकी नज़र 👉👉 ख़ाका
सुन्दर रचना
ReplyDeleteआभार आपका
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