अंधेरे सुनसान रास्ते
कोई भी नहीं संग हमारे
किसे पुकारें
ये रात बहुत भारी है
..
शांत मौन पर्वत
डूबता सूरज
धड़कन बढ़ाती ख़ामोशियाँ
दूर कहीं झोंपड़ी में
जलती लालटेन
रुक गया हो वक्त जैसे
कैसे कटे
ये रात बहुत भारी है
…
सुबह की इंतजार में
गुम हुई चांदनी
पेड़ों के पीछे आहट सी
किसी जंगली जानवर का एहसास
इस डर के माहौल में
ये रात बहुत भारी है
ये रात बहुत भारी है
रेखा जोशी
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