मैं जल रही हूँ जिंदा
रो रही हूँ चीख रही हूँ
कहाँ हो तुम
माँ डर लगता है
बहुत बहुत डर लगता है
मन आहत, तन आहत आत्मा भी आहत
नहीं सुन रहा मेरी पुकार कोई
सो गया है आज ईश्वर भी
राक्षसों का संहार करने वाला कोई नहीं
टूट पड़ा है कहर मुझ पर
एक नहीं दो नहीं
चार चार वहशी दरिंदों ने किया
हरण मेरे तन का, लड़ी बहुत लड़ी मैं
नहीं बचा पाई अपनी अस्मिता
माँ मैं हार गई, नहीं बता सकती व्यथा अपनी
कैसा जीवन मिला है मुझे
अंग अंग जल रहा है आज मेरा
दर्द दर्द दर्द बस दर्द ही दर्द की
असहनीय पीड़ा से गुजर रही
लाडो तेरी
जा रही हूँ दूर बहुत दूर तुझसे
जानती हूँ तुम भी तड़प रही हो दर्द से
और तुम रोती रहोगी सारी उम्र
याद कर के मुझे
याद रखना सदा मेरी दर्दनाक मौत को
करना संघर्ष तुम इसके लिए
कोई भी बेटी इस देश की
न गुजरे इस पीड़ा से कभी
न गुजरे इस पीड़ा से कभी
रेखा जोशी
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