जीना चाह रही
पर जी नही पा रही ज़िंदगी
निराशा के चक्रव्यूह से
निकलना चाह रही
पर निकल नही पा रही ज़िंदगी
घेर लिया उसे घोर निराशा ने
है छाया अन्धकार चहुँ ओर
किरण आशा की कहीं से भी
नज़र नहीं आ रही
पर यह तो है ज़िंदगी जियेगी
चीर सीना कालिमा का
बादलों की ओट से
निकले गा रथ अरुण का
सात घोड़ों पर सवार
विलुप्त होगा तब अंधकार
बिखरेंगी उसकी रश्मियाँ तब
आने वाला कल होगा खुशहाल
जी उठेगी ज़िंदगी फिर से इक बार
रेखा जोशी
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