प्रकृति का मधुर गीत है पर्यावरण
वनसम्पदा का प्रतीक है पर्यावरण
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चहकते पंछी कुहुकती कोयलिया
छलकते झरने औ महकती बगिया
वसुधा का ये सँगीत है पर्यावरण
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अटकी हैं सांसे शहर धुआँ धुआँ
प्रदूष्ण के जाल में लिपटी धरा
आओ बचाएँ धरती का आवरण
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कटे पेड़ सूना अंगना धरा का
है छलनी हुआ ह्रदय धरती माँ का
है पंछी भटक रहे धूमिल गगन
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आओ रूप वसुधा का मिल निखारें
सूनी धरा में खुशियाँ नई बो दें
खेत खलिहान गुनगुनाता पर्यावरण
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प्रकृति का मधुर गीत है पर्यावरण
वनसम्पदा का प्रतीक है पर्यावरण
रेखा जोशी
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद Onkar जी
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