Friday, 4 June 2021

उजाला मेहरबाँ हुआ

आफताब को छू कर

आफताब हुआ

अंधेरा था छाया

उजाला मेहरबाँ हुआ

भर ली उड़ान पंछियों ने

मुस्कुराने लगे फूल

चहकने लगी बुलबुल

गुलशन गुलज़ार हुआ

हवा के शीतल झोंको से

सिहर उठा तन मन

आफताब होने से

सारा जहां रौशन हुआ

रेखा जोशी

7 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५ -०६-२०२१) को 'बादल !! तुम आते रहना'(चर्चा अंक-४०८७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. सादर आभार। अनिता जी

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  2. बेहतरीन प्रस्तुति।

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  3. बहुत सुंदर, उम्दा प्रस्तुति।

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  4. सौंदर्य बिखेरती रचना मुग्ध करती है।

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