भारत का लाल -श्री लाल बहादुर शास्त्री की याद में
सन 1965 ,जब जम्मू कश्मीर में भारत पाक सीमा पर युद्ध का शंखनाद बज चुका था ,एक रात अमृतसर में अपने घर के आंगन में मै अपने परिवार के संग गहरी नींद में सोई हुई थी तब उपर आसमान को चीरते हुए दो लड़ाकू विमान एक के पीछे दूसरा तेजी से रात की नीरवता भंग करते हुए निकल गए लेकिन नीचे जमीन पर हम सब के दिलों की धडकने बढ़ा गए ,चौंक कर हम सब अपने बिस्तरों से उठ कर बैठ गए , कुछ ही देर बाद जोर से रुक रुक कर खतरे का साइरन बज उठा तभी मेरे पापा ने कहा ,''जंग शुरू हो गई '',हम सब जल्दी से अंदर कमरों की तरफ भागे और तत्काल सारे घर की बत्तिया बंद कर दी |
अमृतसर जो भारत और पकिस्तान की सीमा रेखा पर स्थित है, वहां सीमा पर दोनों देशों की ओर से दनादन चल रही गोलियों के धमाकों से थर्रा उठा था ,उसकी धमक हमारे घर की खिड़कियाँ और दरवाजों तक पहुंच रही थी ,वह काली रात देखते ही देखते आँखों ही आखों में कट गई | सुबह हर रोज़ की तरह मै तैयार हो कर कालेज पहुंची तो वहाँ का नजारा देखने लायक था , छात्रों में देशभक्ति का जोश हिलोरे मार रहा था ,,''भारत माता की जय , शास्त्री जी अमर रहें 'के नारे चारो ओर गूँज रहे थे ,तभी किसी ने हमे यह समाचार सुनाया ,''भारतीय फौजे आगे बढ़ रहीं है ''यह सुनते ही हम सबके चेहरों पर ख़ुशी की लहर दौड़ उठी ,''अरे वाह अब तो दोपहर का भोजन लाहौर में करेंगे ''किसी एक छात्र की आवाज़ कानों में पड़ी | ऐसी एकता ,ऐसा देश भक्ति का जस्बा था उस समय लोगों में ,लाल बहादुर शास्त्री जी हम सब भारतवासियों के आदर्श नेता बन चुके थे ,उनकी एक आवाज़ पर लोग अपनी जान तक नौछावर करने को तैयार थे ,इस देख की रक्षा करने वाले फौजी भाइयों को देश की नारियाँ राखियाँ बाँध कर जंग के लिए विदा किया करती थी और हँसते हँसते अपने आभूषण उतार कर इस देश की सुरक्षा पर वार दिया करती थी |
उन दिनों टी वी नही हुआ करता था इसलिए हम सब रेडियो पर कान लगाये अपने देश के सिपाहियों के वीरता के किस्से सुना करते थे और पकिस्तान के झूठे किस्सों की पोल खोलता ,''ढोल की पोल ''कार्यक्रम हम सबका पसंदीदा कायर्क्रम हुआ करता था |उस समय देश भक्ति से ओत प्रोत देशवासियों को लाल बहादुर शास्त्री जी ने एक नारा दिया ,''जय जवान जय किसान '' तब देश में गेहूँ की आपूर्ति से निबटने के लिए उनके एक आव्हान पर समूचे देशवासियों ने सोमवार को एक वक्त का भोजन खाना बंद कर दिया था ,हम भी उन दिनों सोमवार की रात को भोजन नही किया करते थे ,कई लोगों ने अपने घरों में ,छोटी छोटी जगह पर भी गेहूँ की फसल लगानी शुरू कर दी थी | देखने में भले ही उनका कद छोटा था लेकिन उनके व्यक्तित्व के प्रभाव में पूरा देश था ,कहते है यथा राजा तथा प्रजा ,उस कहावत की वह एक जीती जागती मिसाल थे ,उनकी ही तरह जनता नैतिकता और ईमानदारी की कद्र किया करती थी l
जंग समाप्त होने के पश्चात जब मैने समाचारपत्र में पढ़ा था कि वह संधि पर हस्ताक्षर करने ताशकंद जाने वाले है तब उनके ताशकंद जाने से दो दिन पूर्व मेरी छोटी बहन को ,जो अब एक डाक्टर है ,भयानक सपना आया , जिसे उसने सुबह होते ही मुझे सुनाया , ,''उसने सपने में देखा था कि शास्त्री जी का ताशकंद में निधन हो गया '',सपने तो सपने होते है और और ऐसा कहते भी है अगर ऐसा स्वप्न देखो तो उस शख्स कि आयु बढ़ जाती है, यह सोच हमने उस सपने पर ज्यादा गौर नही किया लेकिन 11 जनवरी 1966 सुबह सात बजे के समाचार सुनते ही हम दोनों बहने बिस्तर से उछल कर बैठ गई और एक दूसरे का मुख देखने लगी ,जितनी रहस्यमय शास्त्री जी की मौत थी उतना ही रहस्यमय मेरी बहन का वह स्वप्न था जो आज भी रहस्य बना हुआ है ,उसे उनकी मृत्यु का पूर्वाभास कैसे हो गया था ?
शास्त्री जी के महान व्यक्तित्व ने हमारे दिलों पर उस समय जो गहरी छाप छोड़ी थी उसके निशान आज भी बरकरार है |
जय भारत जय हिन्द
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