अनभिज्ञ
दिल और दिमाग
नही पहचानते
अलग अलग दोनों
इक दूजे से
.
दिल और दिमाग में
शुरू हुई तकरार
खींच रहे मानव को
सोचना काम दिमाग का
लेकिन
दिल है कि मानता नही
खेलअपना दिखाता
डाल पर्दा सोच पर
भावना में बहा ले जाता
अपनी बात मनवाता
अनजान रहा दिमाग
बेबस हुई सोच
दिल और दिमाग
अलग अलग दोनों
इक दूजे से
.
उलझन ही उलझन
सुलझती नहीं
किया वार फिर दिल ने
घेर लिया सोच को
जज़्बातों ने
धुंधुला गये नयन
बेबस हुई सोच
सुन्न हुआ दिमाग
न जाने रहेगी कब तक
तकरार जारी दोनों में
दिल और दिमाग
अलग अलग दोनों
इक दूजे से
.
रेखा जोशी
कुछ उलझनें दिल और दिमाग की कश्मकश में अनसुलझी ही रह जाती है...।
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १७ अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
शुक्रिया जी 🙏🙏
Deleteअति सुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया जी 🙏🙏
Deleteदिल और दिमाग की ये रस्साकस्सी मानव के साथ सदा चलती रही है।
ReplyDeleteसुंदर यथार्थ चित्रण।
शुक्रिया जी 🙏🙏
Deleteशुक्रिया जी 🙏🙏
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया जी 🙏🙏
Deleteअति सुन्दर रचना उलझनों का कोई अंत नहीं
ReplyDeleteशुक्रिया जी 🙏🙏
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