Thursday 3 September 2015

है विश्वास तुम्हे खुद पर

है होता दुःख
देख तुम्हे कैद दीवारों में
जो बना रखी खुद तुमने
क्यों दे रहे  हो पीड़ा
खुद को
अपने ही हाथों
क्यों  कैद कर लिया
खुद को
क्यों पिंजरे में
मुहँ छिपाये बैठे तुम 
अपने पँख लपेटे
कब तक बुनते रहोगे जाल
अपने इर्द गिर्द
तोड़ दो अब बंधन सब
भर लो उड़ान
फैला कर अपने पँख
उन्मुक्त
दूर ऊपर आकाश में
है विश्वास तुम्हे खुद पर
जानते हो तुम
है मंज़िल तुम्हारी उड़ान
है उड़ना तुम्हे
उठो फैलाओं  पँख अपने
और
निकल पड़ो फिर से
ज़िंदगी की
इक लम्बी उड़ान भरने

रेखा जोशी

No comments:

Post a Comment