Wednesday 2 September 2015

है आज भरा जीवन मुझ में

आदरणीय श्री हरिवंशराय बच्चन जी की रचना मधु कलश से

मै  थिर होकर कैसे बैठूँ
जब हो उठते पाँव चपल
मे मौन खड़ी किस भांति रहूँ
जब है बज उठते पग पायल

जब मधुघट के आधार बने
कर क्यों न झुकें झूमें घूमें
किस भांति रहूँ मै मुख मूँदें
जब उड़ उड़ जाता है अंचल
....
मै नाच रही मदिरालय में
मै और नहीं कुछ कर सकती
है आज गया कोई मेरे
तन में प्राणों में यौवन भर

है आज भरा जीवन मुझ में
है आज भरी मेरी गागर

 हरिवंशराय बच्चन


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