सात समुद्र पार कर,
आई पिया के द्वार ,
नव नीले आसमां पर,
झूलते इन्द्रधनुष पे ,
प्राणपिया के अंगना ,
सप्तऋषि के द्वार ,
झंकृत हए सात सुर,
हृदय में नये तराने |
.........................
उतर रहा वह नभ पर ,
सातवें आसमान से ,
लिए रक्तिम लालिमा
सवार सात घोड़ों पर ,
पार सब करता हुआ ,
प्रकाशित हुआ ये जहां
अलौकिक , आनंदित
वो आशियाना दीप्त
...............................
थिरक रही अम्बर में ,
अरुण की ये रश्मियाँ,
चमकी धूप सुनहरी सी
अब आई मेरे अंगना ,
है स्फुरित मेरा ये मन ,
खिल उठा ये तन बदन
निभाने वो सात वचन ,
आई अपने पिया के घर |
आई पिया के द्वार ,
नव नीले आसमां पर,
झूलते इन्द्रधनुष पे ,
प्राणपिया के अंगना ,
सप्तऋषि के द्वार ,
झंकृत हए सात सुर,
हृदय में नये तराने |
.........................
उतर रहा वह नभ पर ,
सातवें आसमान से ,
लिए रक्तिम लालिमा
सवार सात घोड़ों पर ,
पार सब करता हुआ ,
प्रकाशित हुआ ये जहां
अलौकिक , आनंदित
वो आशियाना दीप्त
...............................
थिरक रही अम्बर में ,
अरुण की ये रश्मियाँ,
चमकी धूप सुनहरी सी
अब आई मेरे अंगना ,
है स्फुरित मेरा ये मन ,
खिल उठा ये तन बदन
निभाने वो सात वचन ,
आई अपने पिया के घर |
एक अलग है अनुभव इसका, एक अलग एहसास |
ReplyDeleteएक अलग है रिश्ता बनता, रहता दिल के पास ||
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (19-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | अवश्य पधारें |
सूचनार्थ |
आपने मेरी रचना को चर्चा में शामिल किया आपका हार्दिक धन्यवाद ,आभार
Deleteकृपया कॉमेंट से वर्ड वेरिफिकेसन हटा दें |
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति !
ReplyDelete~सादर!!!
अनीता जी ,उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार .धन्यवाद
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