Wednesday, 19 December 2012

मानव न बन सका मनुज


यह कविता मेरे पापा प्रोफसर महेंद्र जोशी ने लिखी है |
मै ही तो एक नही हूं ऐसा,
मुझ से पहले भी लोग बड़े थे :
जिन को तो था संसार बदलना ,
अंधेरों में जो लोग खड़े थे :
उन लोगों में मेरी क्या गिनती ,
मुझ से तो वे सब बहुत बड़े थे :
खा कर भी हत्यारे की गोली ,
गांधी जी कितने मौन पड़े थे :
और अहिंसा हिंसा ने खाई ,
था नफरत ने ही प्यार मिटाया :
प्यार दिया इस जग को जिसने ही ,
क्रास पर गया था वह लटकाया :
पर मानव न बन सका मनुज अभी ,
पशुता उसकी उसके साथ रही |

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