Tuesday, 17 March 2020

सतरंगी आसमान

कल्पना की सीढ़ी पर
हो कर सवार
छू लिया आज सतरंगी
आसमान
खेलता छुपा छुपी
बादलों से कभी
बन मेघ कभी भिगो देता
आँचल धरा का
चुरा कर इन्द्रधनुष के
रँग कभी
सजाता मांग
अवनी की अपनी
कल्पना के सागर में
गोते लगाता
जमीं आसमान को
रंगीन बनाता
बरसाता ख़ुशी आसमान से
लहराती धरा पर
अमृत ले आता

रेखा जोशी

1 comment:

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 19 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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