खून पसीना कर
अपना एक
दो जून की रोटी
खाते हैं
जिस दिन मिलता
कोई काम नहीं
भूखे ही सो जाते है
रहने को मिलता
कोई घर नहीं
सर ऊपर कोई
छत नहीं
श्रम दिवस
मना कर इक दिन
भूल हमें सब जाते हैं
किसे सुनाएँ इस दुनिया में
हम दर्द अपना कोई भी नहीं
इस जहां में हमदर्द अपना
गिरता है जहाँ पसीना अपना
पहन मुखौटे नेता यहां पर
सियासत
अपनी करते हैं
हमारे पेट की अग्नि पर
रोटियाँ अपनी सेकते हैं
मेहनत कर
हाथों से अपने
जीवन यापन करते हैं
नहीं फैलाते हाथ अपने
अपने दम पर जीते हैं
रेखा जोशी
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