Friday, 4 May 2018

मजदूर दिवस पर

खून पसीना कर
अपना एक
दो जून की रोटी 
खाते  हैं
जिस दिन मिलता
कोई काम नहीं
भूखे ही सो जाते है

रहने को मिलता
कोई घर नहीं
सर ऊपर कोई
छत नहीं
श्रम दिवस
मना कर इक दिन
भूल हमें सब जाते हैं

किसे सुनाएँ इस दुनिया  में
हम दर्द अपना कोई भी नहीं
इस जहां में हमदर्द  अपना
गिरता है जहाँ पसीना अपना
पहन मुखौटे नेता यहां पर
सियासत
अपनी करते हैं
हमारे पेट की अग्नि पर
रोटियाँ अपनी सेकते  हैं

मेहनत कर
हाथों से अपने
जीवन यापन करते हैं
नहीं फैलाते हाथ अपने
अपने दम पर जीते हैं

रेखा जोशी

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