धरती से सोना उगाता
धरतीपुत्र कहलाता
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मेहनत करता जी तोड़
दो बैलों की जोड़ी ही
संगी साथी उसके
कड़ी धूप या हो फिर सर्द हवायें
धरती से सोना उगाता
धरतीपुत्र कहलाता
..
भर कर वह पेट सबका
खुद भूखा सो जाता
फिर भी नहीं घबराता
देख फसल खड़ी खलिहान में
मन ही मन हर्षाता
धरती से सोना उगाता
धरतीपुत्र कहलाता
...
लेकिन नही सह पाता
गरीबी सूखा और क़र्ज़ की मार
लाचार असहाय दुखी
आखिर थक हार कर
जीवन से वह छोड़
सबका साथ थाम लेता
अंत में फिर मौत का हाथ
धरती से सोना उगाता
धरतीपुत्र कहलाता
रेखा जोशी
अनेकों बार ऐसे ही विचार किसान के बारे में पढ़े हैं।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है- लोकतंत्र
सादर आभार आपका
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