मै बांसुरी बन जाऊं प्रियतम
और फिर इसे तुम अधर धरो
.............................................
.धुन मधुर बांसुरी की सुन मै
पाऊं कान्हा को राधिका बन
..........................................
रोम रोम यह कम्पित हो जाए
तन मन में कुछ ऐसा भर दो
............................................
प्रेम नीर भर आये नयनों में
शांत करे जो ज्वाला अंतर की
..........................................
फैले कण कण में उजियारा
और हर ले मन का अँधियारा
.........................................
मै बांसुरी बन जाऊं प्रियतम
और फिर इसे तुम अधर धरो
और फिर इसे तुम अधर धरो
.............................................
.धुन मधुर बांसुरी की सुन मै
पाऊं कान्हा को राधिका बन
..........................................
रोम रोम यह कम्पित हो जाए
तन मन में कुछ ऐसा भर दो
............................................
प्रेम नीर भर आये नयनों में
शांत करे जो ज्वाला अंतर की
..........................................
फैले कण कण में उजियारा
और हर ले मन का अँधियारा
.........................................
मै बांसुरी बन जाऊं प्रियतम
और फिर इसे तुम अधर धरो
बहुत ही सुन्दर वंदना,आभार.
ReplyDeleteधन्यवाद राजेन्द्र जी
Deleteप्यार हो तो राधा-कृष्ण सा निश्छल ...बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार ,धन्यवाद
Deleteयशोदा जी ,आपका हार्दिक आभार ,नई पुरानी हलचल में मेरी रचना शामिल करने पर हार्दिक धन्यवाद
ReplyDeleteसुन्दर रचना ..........प्रेमरस की अनुभूति
ReplyDeleteसंध्या जी ,मेरी साईट पर आने के लिए और रचना पसंद करने पर आपका हार्दिक आभार
ReplyDeleteमैं बांसुरी ......अधर धरो --बहुत सुन्दर
ReplyDeleteLATEST POSTसपना और तुम
आपका हार्दिक आभार
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी स्तुति .....
ReplyDeleteमोनिका जी ,उत्साहवर्धन हेतु आपका आभार ,मेरीsite पर आने के लिए हार्दिक धन्यवाद
Deleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें
ReplyDeleteमदन मोहन जी आपका हार्दिक आभार ,ऐसे ही उत्साह बढ़ाते रहिये
ReplyDeleteब्रिजेश जी ,आपका हार्दिक धन्यवाद ,ऐसे ही उत्साह बढाते
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