Sunday, 7 April 2013

मै बांसुरी बन जाऊं प्रियतम

मै बांसुरी बन जाऊं  प्रियतम
और फिर इसे तुम अधर धरो
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.धुन मधुर बांसुरी की सुन मै
 पाऊं कान्हा को राधिका बन
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रोम रोम यह कम्पित हो जाए
तन मन में कुछ ऐसा भर दो
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प्रेम नीर भर आये नयनों में
शांत करे जो ज्वाला अंतर की
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फैले कण कण में उजियारा
और हर ले मन का अँधियारा
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मै बांसुरी बन जाऊं  प्रियतम
और फिर इसे तुम अधर धरो

14 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर वंदना,आभार.

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    1. धन्यवाद राजेन्द्र जी

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  2. प्यार हो तो राधा-कृष्ण सा निश्छल ...बहुत सुन्दर रचना

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    1. आपका हार्दिक आभार ,धन्यवाद

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  3. यशोदा जी ,आपका हार्दिक आभार ,नई पुरानी हलचल में मेरी रचना शामिल करने पर हार्दिक धन्यवाद

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  4. सुन्दर रचना ..........प्रेमरस की अनुभूति

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  5. संध्या जी ,मेरी साईट पर आने के लिए और रचना पसंद करने पर आपका हार्दिक आभार

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  6. मैं बांसुरी ......अधर धरो --बहुत सुन्दर
    LATEST POSTसपना और तुम

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  7. आपका हार्दिक आभार

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  8. हृदयस्पर्शी स्तुति .....

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    1. मोनिका जी ,उत्साहवर्धन हेतु आपका आभार ,मेरीsite पर आने के लिए हार्दिक धन्यवाद

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  9. बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें

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  10. मदन मोहन जी आपका हार्दिक आभार ,ऐसे ही उत्साह बढ़ाते रहिये

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  11. ब्रिजेश जी ,आपका हार्दिक धन्यवाद ,ऐसे ही उत्साह बढाते

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