Tuesday, 16 April 2013

इंतज़ार

चाँद से आज मै पूछती  हूँ सवाल ?
विरहन को तड़पाते  हो तुम  जहां ,
प्रिय  मिलन को रिझाते क्यों  वहां?
चांदनी से मिले जहां ठंडक किसी को ,
जलाती  वही ठंडक  क्यों विरहन को ?
प्रिय मिलन की आस में बैठी चकोरी ,
निशब्द निहारे एकटक सी ओर तेरी ,
कैसा फैलाया है तूने यह माया जाल 
चाँद से आज मै पूछती हूँ सवाल ?

17 comments:

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    1. राजेंद्र जी , आपका हार्दिक आभार

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  2. प्रेम की गहन अनुभूति
    सुंदर रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बधाई और शुभकामनायें

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    1. आपका हार्दिक आभार

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (17-04-2013) के "साहित्य दर्पण " (चर्चा मंच-1210) पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
    सूचनार्थ...सादर!

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    1. शशि जी ,मेरी रचना पसंद करने पर और मेरी साईट ज्वाइन करने पर हार्दिक धन्यवाद ,इस रचना को चर्चा मंच पर शामिल करने के लिए हार्दिक आभार

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  5. यह सवाल मन से पूछिये न!

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    1. प्रतिभा जी ,मन में तो अनेक सवाल है जिसका जवाब पाना कठिन होता है ,आभार

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  6. चाँद कहां कुछ बोलेगा ... ये तो खुद के मन की स्थिति है ...
    प्रेम में ऐसा ही होता है ...

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    1. धन्यवाद दिगम्बर जी

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  7. रेखा जी कविता के माध्यम से प्रेम से उसे(चाँद को ) काठघड़े खड़ा कर दिया ,बहुत अच्छा .आपभी मेरे ब्लॉग का अनुशरण करें रचनायों का विनिमय आसान होंगा, अच्छा लगेगा ,मैंने आपका किया है.
    latest post"मेरे विचार मेरी अनुभूति " ब्लॉग की वर्षगांठ

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    1. कालिपद जी मेरी साईट ज्वाइन करने और उत्साह वर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार ,धन्यवाद

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  8. बहुत सुंदर .बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.

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    1. मदनजी आपका हार्दिक आभार ,धन्यवाद

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  9. सुन्दर रसमय काव्य |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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    1. उत्साह वर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार ,धन्यवाद

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