हे ईश
झुकाये अपने शीश
तुझको रहा पुकार
आज तेरा परिवार
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हिन्दू ने राम कहा
तो ईसाई ने मसीहा
मुसलमां का मुहम्मद
पर रब तो तू सब का
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मानवता की काया पर
साम्प्रदायिकता की छाया
अपने में लेगी लीन कर
हे प्रभु यह कैसी माया
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बुद्धिजीवियों की बुद्धि को
भक्तजनों की भक्ति को
दो अपने प्रेम की दीक्षा
हे राम मत लो यह परीक्षा
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हे सर्वव्यापक
जन जन में बसने वाले
बना दो अमृत की धारा
विष जो हम पीने है वाले
भक्ति-भाव पूर्ण बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteआपका हार्दिक धन्यवाद ,आभार
Deleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14-04-2013) के चर्चा मंच 1214 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
ReplyDeleteआभार अरुण बेटा,आशीर्वाद
ReplyDeletesundar bhavpurn prastuti
ReplyDeleteआदरणीया मधु जी,प्रोत्साहन हेतु आपका आभार
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ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति...
पधारें "आँसुओं के मोती"
आदरणीया प्रतिभा जी,प्रोत्साहन हेतु आपका आभार
Deleteभक्ति प्रेम की सुधा सरिता
ReplyDeleteअज़ीज़ जी आपका हार्दिक धन्यवाद ,आभार
Deleteरेखा जी सुंदर प्रार्थना
ReplyDeleteसादर
''माँ वैष्णो देवी ''
सरिता जी ,प्रोत्साहन हेतु आभार
Deleteसुंदर प्रस्तुति ......सुंदर रचना
ReplyDeleteरंजना जी आपका हार्दिक धन्यवाद ,आभार
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ReplyDeleteभक्ति भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति !
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THANKS KALIPAD PRSAAD JI
Deletepyri se prarthna....
ReplyDeleteHARDIK DHNYVAAD MUKESH JI
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