Friday, 12 April 2013

वंदना


हे ईश
झुकाये अपने शीश
तुझको रहा पुकार
आज तेरा परिवार
............................
हिन्दू ने राम कहा
तो ईसाई ने मसीहा
मुसलमां का मुहम्मद
पर रब तो तू सब का
...............................
मानवता की काया पर
साम्प्रदायिकता की छाया
अपने में लेगी लीन कर
हे प्रभु यह कैसी माया
................................
बुद्धिजीवियों की बुद्धि को
भक्तजनों की भक्ति को
दो अपने प्रेम की दीक्षा
हे राम मत लो यह परीक्षा
................................
हे सर्वव्यापक
जन जन में बसने वाले
बना दो अमृत की धारा
विष जो हम पीने है वाले

18 comments:

  1. भक्ति-भाव पूर्ण बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.

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    1. आपका हार्दिक धन्यवाद ,आभार

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  2. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14-04-2013) के चर्चा मंच 1214 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  3. आभार अरुण बेटा,आशीर्वाद

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    1. आदरणीया मधु जी,प्रोत्साहन हेतु आपका आभार

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  5. बेहतरीन प्रस्तुति...
    पधारें "आँसुओं के मोती"

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    1. आदरणीया प्रतिभा जी,प्रोत्साहन हेतु आपका आभार

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  6. भक्ति प्रेम की सुधा सरिता

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    1. अज़ीज़ जी आपका हार्दिक धन्यवाद ,आभार

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  7. रेखा जी सुंदर प्रार्थना
    सादर
    ''माँ वैष्णो देवी ''

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    1. सरिता जी ,प्रोत्साहन हेतु आभार

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  8. सुंदर प्रस्तुति ......सुंदर रचना

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    1. रंजना जी आपका हार्दिक धन्यवाद ,आभार

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  9. भक्ति भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति !
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