Sunday, 6 December 2015

लम्बी होती परछाईयाँ [पूर्व प्रकाशित रचना ]

लम्बी होती परछाईयाँ  
दिला रही एहसास 
शाम के ढलने का 
उदास हूँ पर शांत 
ज़िंदगी की ढलती शाम 
आ रही करीब 
धीरे धीरे 
लेकिन 
पा रहीं हूँ सुकून 
मिला जो मुझे
तुम्हारा साथ 
लेकर 
हाथों में हाथ 
रहेंगे चलते 
साथ साथ 
जब तक किस्मत 
रखेगी हमे 
साथ साथ 


रेखा जोशी 

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