मौन देखा उनको दिल तड़पता रह गया
बेबसी देख उनकी निहारता रह गया
चले गये वोह तो काल के आगोश में
मै बस यहाँ अपना हाथ मलता रह गया
रेखा जोशी
मौन देखा उनको दिल तड़पता रह गया
बेबसी देख उनकी निहारता रह गया
चले गये वोह तो काल के आगोश में
मै बस यहाँ अपना हाथ मलता रह गया
रेखा जोशी
प्रदत्त छंद:-मानव (मात्रिक)
नहीं कोई ठिकाना है
जीवन आना जाना है
,
धारा वक्त की बह रही
साथ इसका निभाना है
,
यादों के ही सागर में
हमको गोते खाना है
,
दो दिन के हम जीवन में
बुनते ताना बाना है
,
जन्म मरण का बंधन जग
मौत को यहाँ आना है
रेखा जोशी
संस्मरण
हर रिश्ते की अपनी ही एक गरिमा होती है ,ऐसे ही एक प्यारा रिश्ता होता है नन्द और भाभी का,बात रक्षाबंधन त्यौहार की है जब मेरी नन्द अपने प्यारे भैया को यानी कि मेरे पति को राखी बाँधने हमारे घर आई ।बहुत ही खुशनुमा माहौल था और बहुत ही स्नेह से मेरी नन्द ने अपने भैया को तिलक लगा कर राखी बाँधी और ढेरों आशीर्वाद भी दिए ,मेरे पति ने भी उसे सुंदर उपहार दिएl
काफी दिनों बाद दोनों भाई बहन मिले थे इसलिए वह अपने बचपन और घर परिवार की बाते याद करने लगे ।मै भी रसोईघर में जा कर दोपहर के भोजन की तैयारी में जुट गई ,तभी मुझे दोनों भाई बहन की जोर जोर से बोलने की आवाज़ सुनाई पड़ी ,मै भाग कर वहां पहुंची तो देखा कि मेरी ननद अपने सारे उपहार छोड़ कर जा रही थी और मेरे पति भी बहुत गुस्से में अपनी नाराज़गी जता रहे थे ,मैने अपनी नन्द को मनाने और रोकने की भी बहुत कोशिश की लेकिन वह दरवाज़े से बाहर निकल गई ।पूरे घर का वातावरण गमगीन हो गया था ,मुझे यह सब देख कर बहुत ही दुख हो रहा था कि राखी वाले दिन उनकी बहन रूठ कर बिना कुछ खाये पिये हमारे घर से जा रही थी लेकिन मै ठहरी भाभी , नाज़ुक रिश्ता था मेरा और मेरी ननद के बीच।मैने अपने पति की तरफ देखा, उनकी आँखों में पश्चाताप के आंसू साफ़ झलक रहे थे ,मैने झट से देरी न करते हुए अपनी ननद का हाथ पकड़ लिया ,इतने में मेरे पति भी वहां आ गए और उन्होंने अपनी प्यारी बहना को गले लगा कर क्षमा मांगी ,दोनों की आँखों में आंसू देख मेरी आँखे भी नम हो गई ।
मैने जल्दी से खाने की मेज़ पर उन्हें बिठा कर भोजन परोसा और हम सब ने मिल कर खाना खाया ।सारे गिले शिकवे दूर हो गए और नाराज़गी से भाई बहन के रिश्ते में पड़ी सिलवटें उनकी आँखों से बहते हुए आंसुओं से दूर हो गई थी ।हमारे यहाँ से जाते हुए मेरी ननद ने मुझ से गले मिल कर इस प्यार के रिश्ते की गरिमा बनाये रखने पर अपना आभार प्रकट किया |
रेखा जोशी
सुमी अपनी ज़िन्दगी में सब कुछ जल्दी जल्दी हासिल कर लेना चाहती थी ,एक सुंदर सा सब सुख सुविधाओं से भरपूर बढ़िया आरामदायक घर ,खूबसूरत फर्नीचर और एक महंगी लम्बी सी कार ,जिसमें बैठ कर वह साहिल के साथ दूर लम्बी सैर पर जा सके ,वहीं साहिल के अपने भी कुछ सपने थे ,इस तकनीकी युग में एक से एक बढ़ कर मोबाईल फोन,लैपटॉप आदि l दोनों पति पत्नी जिंदगी का भरपूर लुत्फ़ उठाना चाहते थे|अन्य लोगों की देखा देखी उपरी चमक धमक से चकाचौंध करने वाली रंग बिरंगी दुनिया उन्हें अपनी ओर ऐसे आकर्षित कर रही थी जैसे लोहे को चुम्बक अपनी तरफ खींच लेती है |
एक अच्छी सी सोसाईटी देख कर साहिल ने बैंक से लोन ले कर फ्लैट खरीद लिया,उसके बाद तो दोनों ने आव देखा न ताव धड़ाधड़ खरीदारी करनी शुरू कर दी ,क्रेडिट कार्ड पर पैसा खर्च करना कितना आसान था ,कार्ड न हुआ जैसे कोई जादू की छड़ी उनके हाथ लग गई ,एक के बाद एक नई नई वस्तुओं से उनका घर भरने लगा l
जब पूरा विवरण पत्र हाथ में आया तो दोनों के होश उड़ गए ,कैसे चुका पायें गे, उधर क्रेडिट कार्ड चलाने वाली कम्पनी मूल धनराशी के साथ साथ ब्याज पर ब्याज की भी मांग करने लगी और अंत में पैसा चुकता करने के चक्कर में उनका घर बाहर सब कुछ बिक गया l
रेखा जोशी
कलरव
सुबह सुबह रीमा की नींद सदा पंछियों की चहचहाहट के साथ खुला करती थी, लेकिन आज उसे उनका कलरव सुनाई नहीं दिया, अलसाई सी रीमा नें आंखें खोली, समय देखते ही चौंक गई वह, इतनी देर तक वह कैसे सोती रह गई, आज वह पंछियों का चहचहाना कैसे नहीं सुन पाई l जल्दी से बिस्तर छोड़ रीमा घर के बाहर लगे शहतूत के पेड़ की ओर गई,जो अनेक प्रकार के पंछियों का रैन बसेरा था, जहाँ सब पंछी सुबह शाम कलरव किया करते थे, उसकी जिंदगी भी उन पंछियों की चहचहाहट के साथ जुड़ी थी l भोर और संध्या को पंछियों का कलरव उसकी दिनचर्या का अटूट हिस्सा बन चुके थे l
बाहर निकलते ही रीमा को कुल्हाड़ी से लकड़ी काटने की आवाज़ सुनाई दी, बाहर का दृश्य देखते ही रीमा चौंक गई, शहतूत का वह बढ़ा सा पेड़ ज़मीन पर गिरा पड़ा था और सभी पंछी अपना बसेरा छोड़ कर जा चुके थे, भारी मन से रीमा घर के भीतर आ गई, उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था, वह ऐसा महसूस कर रही थी जैसे पंछियों की चहचहाहट के साथ उसकी ज़िन्दगी ही चली गई l
रेखा जोशी
सूनी शाखाओं को नव कोपलों का इंतज़ार
आयेगी सूखी डालियों पर फिर से नव बहार
नाचेंगी अरूण की रश्मियाँ फूलों पर फिर से
गाती मुस्कुराती रहेगी ज़िंदगी बार बार
रेखा जोशी
सूनी शाखाओं को नव कोपलों का इंतज़ार
आयेगी सूखी डालियों पर फिर से नव बहार
नाचेंगी अरूण की रश्मियाँ फूलों पर फिर से
गाती मुस्कुराती रहेगी ज़िंदगी बार बार
रेखा जोशी
साक्षर हो सभी जन यहाँ बालक क्या बाला
भंडार है गायन का हमारी पाठशाला
शत शत नमन करते माँ शारदा को हम सब
भर देती जीवन मे उजाला ही उजाला
रेखा जोशी
मिल कर हमें यहाँ पर अब गीत गुनगुनाना
जब प्यार ज़िन्दगी से तो प्रीत है निभाना
कुछ कुछ कहा हवा ने अब कान में हमारे
तुम जान हो हमारी अब छोड़ कर न जाना
रेखा जोशी
स्पर्श
सात दिन बीत चुके थे ,माला अभी तक कौमा में थी ,अस्पताल में जहाँ डाक्टर जी जान से उसे होश में लाने की कोशिश कर रहे थे वहीँ माला का पति राजेश अपने एक साल के बेटे अंकुर के साथ ईश्वर से माला की सलामती की दुआ कर रहा था । उसके लिए हर दिन काली रात सा था l नन्हा अंकुर अपनी माँ का सानिध्य पाने को बेचैन था ,लेकिन उस नन्हे के आँसू राजेश के नयन भी सजल कर देते थे ,आखिर हार कर राजेश उसे अस्पताल में माला के पास ले गया और रोते हुये अंकुर को माला के सीने पर रख दिया ,''लो अब तुम्ही सम्भालो इसे ,इस नन्हे से बच्चे का रोना मुझसे और नहीं देखा जाता ,''यह कहते ही वह फूट फूट कर रोने लगा । इधर रोता हुआ अंकुर माँ का स्नेहिल स्पर्श पाते ही चुप हो गया और उधर अपने लाडले के मात्र स्पर्श ने माँ की ममता को झकझोर कर उसे मौत के मुहँ से खींच लिया ,माला कौमा से बाहर आ चुकी थी । उनके जीवन में नई सुबह का आगमन हो गया था l
रेखा जोशी
है प्रिय जीवन
उतना ही
मूक प्राणी को
जितना प्रिय इंसान को
प्रेम और वफादारी
सदा चाहे इंसान
कहाँ मिलेगा
साथी ऐसा
बेहतर है जो मानव से
न करता कोई सवाल
न करे आलोचना कभी
लुटाता है जो प्रेम सदा
क्यों न लुटाएं हम
उन पर अपनी करुणा
मिले उन्हें भी गर्मी
ठंडी शीतल हवाओं से
छुपा कर ओढ़नी में अपनी
उसे बचाएं सर्दी से
करें प्रेम उतना ही
जितना वह करता हमसे
रेखा जोशी
तुम मिले ज़िन्दगी को मुस्कुराना आ गया
हमें भी अब ख़ुशी से खिलखिलाना आ गया
छाई बहार बाग में फूल भी महक उठे
गीत खुशी के सजना गुनगुनाना आ गया
रेखा जोशी
महिला शक्ति
वाराणसी में एक छोटा सा गांव शंकरपुर और उसमें रहने वाली शन्नो जिसने प्रसव के समय एक साहूकार से दस प्रतिशत की दर से पांच सौ रूपये कर्ज लिए थे। ब्याज ज्यादा होने के कारण दस साल बाद वो रकम सात हजार हो गई, पैसा चुकता न करने के कारण वो साहूकार उसे बंधुआ मंजदूर बनाना चाहता था। तभी उसके जीवन में मधु आई, जिसने शन्नो और कर्ज से दबी कई महिलाओं के साथ मिलकर "महिला शक्ति " नामक संस्था बनाईl
जिसके माध्यम से गरीबों और किसानों का जीवन बेहतर हो lसके।"
हर महिला के सहयोग से हर महीने थोड़े थोड़े पैसे जमा होने लगे, धीरे धीरे आस पास के गावों में भी महिला शक्ति के समूह बढ़ने लगे, साहूकारों से ली गई उधारी चुकता होने लगी, किसानों को कम ब्याज पर पैसा मिलने लगा l अब महिला शक्ति लोगों को उनकी जरूरत के हिसाब से पैसा देती हैं। पैसा भी वह यह जांचने के बाद देती हैं कि कौन कब कितना पैसा लौटा सकता है, अब तो यह हाल है कि साहूकार भी संस्था से जरूरत पड़ने पर पैसा उधार लेते हैं l
रेखा जोशी
धूम मचाता गाता नाचता नव वर्ष आया
खुशियों से झूम झूम झूमता नव वर्ष आया
नये वर्ष का कर रहे हैं स्वागत सभी मिलकर
है ठंड से ठिठुरता कांपता नव वर्ष आया
रेखा जोशी