प्रदत्त छंद:-मानव (मात्रिक)
नहीं कोई ठिकाना है
जीवन आना जाना है
,
धारा वक्त की बह रही
साथ इसका निभाना है
,
यादों के ही सागर में
हमको गोते खाना है
,
दो दिन के हम जीवन में
बुनते ताना बाना है
,
जन्म मरण का बंधन जग
मौत को यहाँ आना है
रेखा जोशी
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