Monday 29 January 2018

प्रदत्त छंद:-मानव (मात्रिक)


प्रदत्त छंद:-मानव (मात्रिक)

नहीं कोई  ठिकाना  है
जीवन  आना  जाना है
,
धारा वक्त की बह रही
साथ  इसका निभाना है
,
यादों के  ही  सागर में
हमको  गोते  खाना है
,
दो दिन के हम जीवन में
बुनते   ताना   बाना   है
,
जन्‍म मरण का बंधन जग
मौत  को  यहाँ  आना है

रेखा जोशी

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