कलरव
सुबह सुबह रीमा की नींद सदा पंछियों की चहचहाहट के साथ खुला करती थी, लेकिन आज उसे उनका कलरव सुनाई नहीं दिया, अलसाई सी रीमा नें आंखें खोली, समय देखते ही चौंक गई वह, इतनी देर तक वह कैसे सोती रह गई, आज वह पंछियों का चहचहाना कैसे नहीं सुन पाई l जल्दी से बिस्तर छोड़ रीमा घर के बाहर लगे शहतूत के पेड़ की ओर गई,जो अनेक प्रकार के पंछियों का रैन बसेरा था, जहाँ सब पंछी सुबह शाम कलरव किया करते थे, उसकी जिंदगी भी उन पंछियों की चहचहाहट के साथ जुड़ी थी l भोर और संध्या को पंछियों का कलरव उसकी दिनचर्या का अटूट हिस्सा बन चुके थे l
बाहर निकलते ही रीमा को कुल्हाड़ी से लकड़ी काटने की आवाज़ सुनाई दी, बाहर का दृश्य देखते ही रीमा चौंक गई, शहतूत का वह बढ़ा सा पेड़ ज़मीन पर गिरा पड़ा था और सभी पंछी अपना बसेरा छोड़ कर जा चुके थे, भारी मन से रीमा घर के भीतर आ गई, उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था, वह ऐसा महसूस कर रही थी जैसे पंछियों की चहचहाहट के साथ उसकी ज़िन्दगी ही चली गई l
रेखा जोशी
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