Thursday, 30 May 2013

दास्तान ए मुहब्बत

दास्तान ए मुहब्बत


दूर जा गिरा  कहीं  जाम ए उल्फत
लब पे आते ही हाथो से फिसल कर
दास्तान ए मुहब्बत अधूरी  रह  गई
जो चले गए तुम हमे तन्हा छोड़ कर
....................................................
हमारे प्यार की जिंदगी थी तुम्ही से
क्यूँ छोड़ दिया डूबने मंझधार में हमे
तकते  रहे हम अधखुली निगाहों से
और तुम कश्ती में सवार चलते बने
.....................................................
 न कोई शिकवा न शिकायत तुमसे
 तुम पे ही यह दिल वार दिया हमने
आईना मुहब्बत का धुंधला  सा गया
देखी थी कभी तस्वीर ए यार जिसमे


ईमान है पैसा

ये कहाँ जा रहे है हम
बंद आँखों से किसके पीछे
तोड़ते रिश्ते छोड़ते संस्कार
ठोकर में हैअब धर्म ईमान
लहू दौड़ता रगों में जो
बनता जा रहा वह  पानी
न माँ अपनी न बाप अपना
खून के प्यासे  भाई भाई
उड़ गई महक प्यार की
सुनाई देती खनक पैसे की
प्यार है पैसा ईमान है पैसा
बस पैसा ,पैसा और पैसा



Tuesday, 28 May 2013

नारी सशक्तिकरण, हमारे धर्म का आधार

नारी सशक्तिकरण, हमारे धर्म का आधार

 घनी झाड़ियों में छुपे वह छ पुरुष थे और वह अकेली लड़की ,वो रो रही थी ,चिल्ला रही थी लेकिन उन वहशी दरिंदों के चुंगल से निकलना उसके लिए असंभव ,वो बलशाली और वह निर्बल अबला नारी ,सिर्फ शारीरिक रूप से अबला लेकिन मन शक्तिशाली ,वह उनके बाल नोच रही थी ,उन भेड़ियों को अपने दांतों से काट रही थी परन्तु उन जंगलियों से अपने तन को बचाने में वह नाकायाब रही ,बुरी तरह से घायल उस लड़की को उन भेड़ियों  ने मरा समझ वही छोड़ भाग गए ,हर रोज़ अखबार ऐसी मार्मिक दुर्घटनाओं से भरा होता है । आज  नारी की सुरक्षा को लेकर हर कोई चिंतित हो उठा ,बलात्कार हो याँ यौन शोषण इससे पीड़ित न जाने कितनी युवतियां आये दिन आत्महत्या कर लेती है और मालूम नही कितनी महिलायें अपने तन ,मन और आत्मा की पीड़ा को अपने अंदर समेटे सारी जिंदगी अपमानित सी  घुट घुट कर काट लेती है क्या सिर्फ इसलिए कि ईश्वर ने उसे पुरुष से कम शारीरिक बल प्रदान किया है |यह तो जंगल राज हो गया जिसकी लाठी उसकी भैंस ,जो अधिक बलशाली है  वह निर्बल को तंग कर सकता है यातनाएं दे सकता है ,धिक्कार है ऐसी मानसिकता लिए हुए पुरुषों पर ,धिक्कार है ऐसे समाज पर जहां मनुष्य नही जंगली जानवर रहतें है |जब भी कोई बच्चा चाहे लड़की हो याँ लड़का इस धरती पर जन्म लेता है तब उनकी  माँ को उन्हें जन्म देते समय एक सी पीड़ा होती है ,लेकिन ईश्वर ने जहां औरत को माँ बनने का अधिकार दिया है वहीं पुरुष को शारीरिक बल प्रदान किया ।
 महिला और पुरुष दोनों ही इस समाज के समान रूप से जरूरी अंग हैं लेकिन हमारे धर्म में तो नारी का स्थान सर्वोतम रखा गया है , नवरात्रे हो या दुर्गा पूजा ,नारी सशक्तिकरण तो हमारे धर्म का आधार है । अर्द्धनारीश्वर की पूजा का अर्थ यही दर्शाता है कि ईश्वर भी नारी के बिना आधा है ,अधूरा है।  । इस पुरुष प्रधान समाज में भी आज की नारी अपनी एक अलग पहचान बनाने में संघर्षरत है । जहाँ  बेबस ,बेचारी अबला नारी आज सबला बन हर क्षेत्र में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही है वहीं अपने ही परिवार में उसे आज भी यथा योग्य स्थान नहीं मिल पाया ,कभी माँ बन कभी बेटी तो कभी पत्नी या बहन हर रिश्ते को बखूबी निभाते हुए भी वह आज भी वही बेबस बेचारी अबला नारी ही है । शिव और शक्ति के स्वरूप पति पत्नी सृष्टि का सृजन करते है फिर नारी को क्यों मजबूर और असहाय समझा जाता है  ।
अब समय आ गया है सदियों से चली आ रही मानसिकता को बदलने का और सही मायने में नारी को शोषण से मुक्त कर उसे पूरा सम्मान और समानता का अधिकार  दिलाने का ,ऐसा कौन सा क्षेत्र है जहां नारी पुरुष से पीछे रही हो एक अच्छी गृहिणी का कर्तव्य निभाते हुए वह पुरुष के समान आज दुनिया के हर क्षेत्र में ऊँचाइयों को छू रही है ,क्या वह पुरुष के समान सम्मान की  हकदार नही है ?तब क्यूँ उसे समाज में दूसरा दर्जा दिया जाता है ?केवल इसलिए कि पुरुष अपने  शरीरिक बल के कारण बलशाली हो गया और नारी निर्बल।
हमे तो गर्व होना चाहिए कि इस देश की धरती पर लक्ष्मीबाई जैसी कई वीरांगनाओं ने जन्म लिया है ,वक्त आने पर जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति भी दी है और जीजाबाई जैसी कई माताएं भी हुई है जिन्होंने कई जाबाजों को जन्म दे कर देश पर मर मिटने की शिक्षा भी दी है ,नारी  की सुरक्षा और सम्मान ही एक स्वस्थ समाज  और मजबूत राष्ट्र का निर्माण कर सकती है ,जब भी कोई बच्चा जन्म लेता है तो वह माँ ही है जो उसका प्रथम गुरु बनती है ,अगर इस समाज में नारी असुरक्षित होगी तो हमारी आने वाली पीढियां भी सदा असुरक्षा के घेरे में रहें गी और राष्ट्र का तो भगवान् ही मालिक होगा |

Monday, 27 May 2013

आईना जिंदगी का

आईना जिंदगी का [गीत]

मन यह मेरा  तो पगला है
पर आईना  वो जिंदगी का
.................................
डूब  जाता  है  कभी तो वो
भावनाओं   के समन्दर में
उमड़  उमड़  आता है प्यार
कोई अंत  नही नफरत का
...............................…
रोता  बिछुड़ने  से तो कभी
गीत खुशियों के गाता कभी
है   आँसू  भी  बहाता  कभी
पर प्याला  भी  है  प्रेम  का
..............................….
छोटा  सा  है  यह  जीवन  रे
हर पल  यूँ  हाथ  से  छूटा  रे
सुन   ओ  पगले  मनुवा  मेंरे
है  मोल बहुत रे इस पल का
...........................……
मन यह मेरा  तो पगला है
पर आईना  वो जिंदगी का

रेखा जोशी








Friday, 24 May 2013

कौन हूँ मै कौन हूँ



लोग मुझसे पूछते है,आज क्यूँ मै मौन हूँ ?

प्रेरणा के स्त्रोत सूखे ,कल्पना है मर गई ,
मौत के साए से यूं ,जिंदगी है डर गई
स्तब्ध सा मै देखता हूँ ,सत्य है या सपन है
पूछता हूँ मै स्वयं से ,कौन हूँ मै कौन हूँ ?

रूप कितने जन्म कितने ,मै बदलता आ रहा ,
ज्ञान का यह बोझ हूँ मै ,व्यर्थ ढोता जा रहा ,
युगों युगों से पूछता आया प्रश्न मै एक ही
न जिसका उत्तर मिल सका कौन हूँ मै कौन हूँ ?

गीत कितने छंद कितने ,मै बदलता जा रहा ,
अस्पष्ट सा जो दीखता ,स्पष्ट न कह पा रहा ,
गीत है लय बदलते ये ,स्वर मगर रहता वही,
हर गीत मेरा पूछता ,कौन हूँ मै कौन हूँ ?

लोग मुझसे पूछते है आज क्यूँ मै मौन हूँ ?

यह कविता मेरे पापा श्री महेन्द्र जोशी की लिखी हुई है ,मुझे पसंद आई इसलिए मै इसे पोस्ट कर रही हूँ |

Thursday, 23 May 2013

छाँव है कही ,कही है धूप जिंदगी ,


शाम का समय था ,न जाने क्यों रितु का मन बहुत बोझिल सा हो रहा था , भारी मन से उठ कर रसोईघर में  जा कर उसने अपने लिए एक कप चाय बनाई और रेडियो एफ एम् लगा कर वापिस आकर कुर्सी पर बैठ कर धीरे धीरे चाय पीने लगी |  चाय की चुस्कियों के साथ साथ वह संगीत में खो जाना चाहती थी कि एक पुराने भूले बिसरे गीत ने उसके दिल में हलचल मचा दी ,लता जी की सुरीली आवाज़ उसके कानो में मधुर रस घोल रही थी ,''घर से चले थे हम तो ख़ुशी की तलाश में ,गम राह में खड़े थे वही साथ हो लिए '', कभी ख़ुशी कभी गम ,कहीं सुख और कहीं दुःख ,इन्ही दोनों रास्तों पर हर इंसान की जिंदगी की गाड़ी चलती रहती है ,कुछ ही पल ख़ुशी के और बाकी दुःख को झेलते हुए ख़ुशी की तलाश में निकल जाते है | रितु अपनी ही विचारधारा  में खो सी गई थी ,क्या तलाश करने पर किसी को भी ख़ुशी मिली है कभी,शायद नही ,ख़ुशी तो अपने अंदर से ही उठती है ,जिस दिन उसके घर में ,उसकी बाहों में एक छोटी सी गुड़िया, नन्ही सी परी आई थी ,तब  उसकी और उसके पति राजेश की खुशियों का पारावार मानो सातवें आसमान को छू रहा था ,और हाँ जिस दिन राजेश की प्रमोशन हुई थी उस दिन भी तो हमारे पाँव जमीन पर ख़ुशी के मारे टिक नही रहे थे |हर छोटी बड़ी उपलब्धी से हमारे जीवन में अनंत खुशियों का आगमन होता है ,चाहे हम अपनी मनपसंद वस्तु की खरीदारी करें यां फिर हमारी किसी इच्छा की पूर्ति हो ,अगर हमारी कोई अभिलाषा पूरी नही हो पाती तो हमे क्रोध  आता है ,आकोश पनपता है और हम  निराशा एवं अपार दुःख में डूब जाते है |वह इसलिए कि जैसा हम चाहते है वैसा हमे मिल नही पाता ,ऐसी परिस्थितियों  से कोई उभर कर उपर उठ जाए ,यां आशा ,निराशा में सामंजस्य स्थापित कर सके तो हमारा दामन सदा खुशियों से भरा रहे पाए गा |अपने अंतर्मन की ऐसी आवाज़ सुन कर अनान्यास ही रितु के मुख से निकल पड़ा ''नही नही .यह तो बहुत ही मुश्किल है ,जब हम उदास होतें है तब तो हम और भी अधिक उदासी एवं निराशा में डूबते चले जाते है ,''|उन भारी पलों में हमारी विचारधारा ,हमारी सोच केवल हमारी इच्छा की आपूर्ति न होने के कारण  उसी के इर्द गिर्द घड़ी की सुई की तरह घूमती रहती है |इन्ही पलों में  अगर हम अपनी विचार धारा को एक खूबसूरत दिशा की ओर मोड़ दें तो जैसे  जलधारा को नई दिशा मिलने के कारण बाढ़ जैसी स्थिति को बचाया जा सकता है ठीक वैसे ही विचारों के प्रवाह की दिशा बदलने से हम निराशा की बाढ़ में डूबने से बच सकतें है |हमारी जिंदगी में अनेकों छोटी छोटी खुशियों के पल आते है ,क्यों न हम उसे संजो कर रख ले ?,जब भी वह पल हमे याद आयें गे हमारा मन प्रफुल्लित हो उठे गा |क्यों न हम अपने इस जीवन में हरेक पल का आनंद लेते हुए इसे जियें ? जो बीत चुका सो बीत चुका ,आने वाले पल का कोई भरोसा नही ,तो क्यों न हम इस पल को भरपूर जियें ?इस पल में हम कुछ ऐसा करें जिससे हमे ख़ुशी मिले ,आनंद मिले |जो कुछ भी हमे ईश्वर ने दिया है ,क्यों न उसके लिए  प्रभु को धन्यवाद करते हुए , उसका उपभोग करें |''हर घड़ी बदल रही है रूप जिंदगी ,छाँव है कही ,कही है धूप जिंदगी ,हर पल यहाँ जी भर जियो ,जो है समां कल हो न हो ''रेडियो पर बज रहे इस गीत के साथ रितु ने भी अपने सुर मिला दिए

Tuesday, 21 May 2013

यह जो मुहब्बत है ..

सावन के अंधे को जैसे सब ओर हरा ही हरा दिखाई देता है वैसे ही जवानी की दहलीज़ पर कदम रखते ही नवयुवक और नवयुवतियाँ दोनों के बीच एक दूसरे के प्रति आकर्षण इस कदर हावी हो जाता है कि जैसे सिवा उनकी मुहब्बत के इस दुनिया में और कुछ है ही नही, अपने आप को लैला मजनू ,रोमियो जुलीयट से कम नही समझते यह लोग |यही हाल था सोनू और अंशु का ,रात दिन एक दूसरे के ख्यालों में खोये हुए ,जैसे सारी की सारी दुनिया उन दोनों के बीच में ही सिमट कर रह गई हो ,कितनी विचित्र बात है माँ बाप ,भाई ,बहन और सारे रिश्ते नाते सभी पराये हो जाते है जब मुहब्बत के आईने में पागल प्रेमी देखने लगते है तब अपने प्रियतम के सिवा उन्हें और कुछ दिखाई ही नही देता,दिखाई देगा भी कैसे, यह उम्र ही ऐसी है, किशोरावस्था का प्यार ,उस समय वह अपने शारीरिक और मानसिक विकास का आपस में सामंजस्य को तो स्थापित कर नही पाते लेकिन प्यार मुहब्बत की रंगीन दुनिया उनकी आँखों में बखूबी बस जाती है |जब अंशु की माँ ने उसे उसके कच्ची उम्र के प्यार के बारे में समझाना चाहा तो उसे अपनी माँ भी दुश्मन नजर आने लगी जो जिंदगी में उसकी खुशियाँ चाहती ही नही ,यह सोच ,भावना में बह कर बरबस अंशु की आँखों में आंसू आ गए ,उसने तो मन में पक्का निश्चय कर लिया कि अब चाहे कुछ भी हो वह शादी करेगी तो सिर्फ सोनू से ,अगर माँ बाप नही मानते तो वह सोनू के साथ भाग कर शादी कर लेगी ,जो भी अंजाम होगा देखा जायेया गा |अंशु के मम्मी पापा ने अपनी रजामंदी दे कर अपनी बच्ची की जिद और प्यार के आगे घुटने टेक दिए लेकिन जिस गाँव में वो रहते थे वहां की पंचायत ही इस रिश्ते के खिलाफ थी,उन दोनों का एक ही गोत्र का होना उनकी शादी में अड़चन पैदा कर रहा था जो सबकी परेशानी का सबब बन चुका था |न जाने कितने ही मासूम बच्चों ने जात पात ,खाप पंचायतों ,माँ बाप व् अन्य रिश्तेदारों की रजामंदी न मिलने के कारण मुहब्बत के आईने में इक दूजे को देखते हुए इस दुनिया से सदा के लिए विदा ले ली,यह सोच सोच कर अंशु के घरवाले बहुत परेशान थे,उसके माँ बाप बहुत दुविधा में पड़ गए ,इधर कुआं तो उधर खाई ,उन्होंने अंशु के बालिग़ होने तक इंतज़ार किया और फिर पुलिस प्रोटेक्शन ले कर उन दोनों की शादी कर दी ,सोनू और अंशु एक दूसरे को पा कर फूले नही समा रहे थे लेकिन अभी भी उन के सिर पर पंचायत की तलवार तो टंगी हुई थी जो इस शादी का लगातार विरोध कर रही थी |किशोरावस्था के इस प्यार के कारण अनगिनत जिन्दगियां बर्बाद हो चुकी है और कई बर्बाद हो रहीं है ,कई नाबालिग लडकियाँ गलत हाथों में पड़ कर अपना जीवन तबाह कर बैठती है ,ऐसे लोगों की कमी नही जो प्यार भरी मीठी मीठी बातें कर इन बच्चियों को बहला फुसला कर शादी का वादा कर के याँ झूठ मूठ की शादी रचा कर उन्हें आगे बेच देते है याँ उन्हें नाजायज़ धंधा करने पर मजबूर कर देतें है ||माँ बाप के लिए भी यह समय किसी परीक्षा से कम नही होता जो सदा अपने बच्चों का हित ही चाहतें है वह कैसे उन्हें गलत रास्ते पर चलने दे सकते है और बच्चे अपने बड़े बूढों की बातों को अनसुना कर अपनी मनमानी करना चाहते है ,वह इसलिए कि हम माँ बाप उन पर जरूरत से ज्यादा दबाव डाल कर अपनी बात मनवाना चाहते है | अपने बच्चों के किशोरावस्था में कदम रखते ही अगर माता पिता उन्हें अपने विशवास में ले कर उनके साथ मित्रतापूर्वक व्यवहार से उनकी हर अच्छी बुरी बात को समझने कोशिश करें और उनकी भावनाओं को समझ कर हर छोटी बड़ी बात को उनके साथ बांटना शुरू कर दें ,उनके दोस्तों और सहपाठियों को भी अपने बच्चों जैसा समझ कर समय समय पर उनके विचारों की भी जानकारी लेते रहें तो इसमें कोई दो राय नही होगी कि उनके बच्चे जिंदगी में कुछ भी करने से पहले एक बार अवश्य ही उनकी बताई हुई बातों को सोचे गे यां यह भी हो सकता है कि वह उनके बताये हुए रास्ते पर ही चलें ,अगर मान लो वह किसी के साथ प्रेम प्रसंग बढायें गे भी तो मुहब्बत के आईने में एक परिपक्व प्रेम ही उभर कर आये गा |

Sunday, 19 May 2013

बहू जो बन गई बेटी

बहू जो बन गई बेटी

आज तो सुबह सुबह ही पड़ोस  के मोहन बाबू के घर से लड़ने झगड़ने की जोर जोर  से आवाजें आने लगी ,लो जी आज के दिन की अच्छी शुरुआत हो गई सास बहू की तकरार से ,ऐसा क्यों होता है जिस बहू को हम इतने चाव और प्यार से घर ले कर आते है फिर पता नही क्यों और किस बात से उसी से न जाने  किस बात से नाराजगी हो जाती है |जब मोहन बाबू के इकलौते बेटे अंशुल की शादी एक ,पढ़ी लिखी संस्कारित परिवार की लड़की रूपा से हुई थी तो घर में सब ओर खुशियों की लहर दौड़ उठी थी ,मोहन बाबू ने बड़ी ईमानदारी और अपनी मेहनत की कमाई से अंशुल को डाक्टर बनाया  ,मोहन बाबू की धर्मपत्नी सुशीला इतनी सुंदर बहू पा कर फूली नही समा रही थी लेकिन सास और बहू का रिश्ता भी कुछ अजीब सा होता है और उस रिश्ते के बीचों बीच फंस के रह जाता है बेचारा लड़का ,माँ का सपूत और पत्नी के प्यारे पतिदेव ,जिसके साथ उसका सम्पूर्ण जीवन जुड़ा  होता है  ,कुछ ही दिनों में सास बहू के प्यारे रिश्ते  की मिठास खटास में बदलने लगी ,आखिर लडके की माँ थी सुशीला ,पूरे घर में उसका ही राज था ,हर किसी को वह अपने ही इशारों पर चलाना जानती थी और अंशुल तो उसका राजकुमार था ,माँ का श्रवण कुमार ,माँ की आज्ञा का पालन करने को सदैव तत्पर ,ऐसे में रूपा ससुराल में अपने को अकेला महसूस करने लगी लेकिन वह सदा अपनी सास को खुश रखने की पूरी कोशिश करती लेकिन पता नही उससे कहाँ चूक हो जाती और सुशीला उसे सदा अपने ही इशारों पर चलाने की कोशिश में रहती  |

कुछ दिन  तक तो ठीक रहा लेकिन रूपा मन ही मन उदास रहने लगी , जब कभी दबी जुबां से अंशुल से कुछ कहने की कोशिश करती तो वह भी यही कहता ,''अरे भई माँ है ''और वह चुप हो जाती ||देखते ही देखते एक साल बीत गया और धीरे धीरे रूपा के भीतर ही भीतर  अपनी सास के प्रति पनप रहा  आक्रोश अब ज्वालामुखी बन चुका था , अब तो स्थिति इतनी विस्फोटक हो चुकी थी कि दोनों में बातें कम और तू तू मै मै अधिक होने लगी |अस्पताल से घर आते ही माँ और रूपा की शिकायतें सुनते सुनते परेशान हो जाता बेचारा अंशुल ,एक तरफ माँ का प्यार और दूसरी ओर पत्नी के प्यार की मार, अब उसके लिए असहनीय हो चुकी थी ,आखिकार एक हँसता खेलता परिवार दो भागों में बंट गया और मोहन बाबू के बुढापे की लाठी भी उनसे दूर हो गई |

बुढापे में पूरे घर का बोझ अब मोहन बाबू और सुशीला के कन्धों पर आ पड़ा |उनका शरीर तो धीरे धीरे साथ देना छोड़  रहा था,कई तरह की बीमारियों ने उन्हें घेर लिया था , उपर से दोनों भावनात्मक रूप से भी टूटने लगे ,दिन भर बस अंशुल की बाते ही करते रहते ओर उसे याद करके आंसू बहाते रहते ,उधर बेचारा अंशुल भी माँ बाप से अलग हो कर बेचैन रहने लगा, यहाँ तक कि अपने माता  पिता के प्रति अपना कर्तव्य पूरा न कर पाने के कारणखुद अपने को ही दोषी समझने लगा और इसी  कारण से पति पत्नी के रिश्ते में भी दरार आ गई | समझ में नही  आ रहा था की आखिकार दोष  किसका है ?रूपा ससुराल से अलग हो कर भी दुखी ही रही ,यही सोचती रहती अगर मेरी सास ने मुझे  दिल से बेटी माना होता तो  हमारे परिवार में सब खुश होते, उधर सुशीला अलग परेशान ,वह उन दिनों के बारे सोचती जब वह बहू बन कर अपने ससुराल आई थी ,उसकी क्या मजाल थी कि वह अपनी सास से आँख मिला कर कुछ कह भी सके ,लेकिन वह भूल गई थी कि उसमे और रूपा में एक पीढ़ी का अंतर आ चुका है ,उसे अपनी सोच बदलनी होगी ,बेटा तो उसका अपना है ही वह तो उससे प्यार करता ही है ,उसे रूपा को माँ जैसा प्यार देना होगा अपनी सारी  दिल की बाते बिना अंशुल को बीच में लाये सिर्फ रूपा ही के साथ बांटनी होगी| उसे रूपा को  अपनाना होगा , शारीरिक ,मानसिक और भावनात्मक रूप से उसका साथ देना होगा ,देर से आये दरुस्त आये ,सुशीला को अपनी गलती का अहसास  हो चुका  था और वह अपने घर से निकल  पड़ी रूपा को मनाने |

रेखा जोशी 

Saturday, 18 May 2013

स्नेहिल साथ


मै हूँ धरती
आसमान पे चाँद
साथ साथ है
....................
शीतल तन
लहराती चांदनी
छटा बिखरी
...................
ठंडी हवाएं
जल रहा बदन
तड़पा जाती
.................
स्नेहिल साथ
अंगडाई प्यार की
बहार आई
..................
रात की रानी
दुधिया चांदनी है
महके धरा

Friday, 17 May 2013

अनन्या[लघु कथा ]


''ट्रिग ट्रिन ''दरवाज़े की घंटी के बजते ही मीता ने खिड़की से  झाँक कर देखा तो वहां उसने अपनी ही पुरानी इक छात्रा अनन्या को दरवाज़े के बाहर खड़े पाया ,जल्दी से मीता  ने दरवाज़ा खोला तो सामने खड़ी वही मुधुर सी  मुस्कान ,खिला हुआ चेहरा और हाथों में मिठाई का डिब्बा लिए अनन्या खड़ी थी । ''नमस्ते मैम ''मीता को सामने देखते ही उसने कहा ,''पहचाना मुझे आपने।  ''हाँ हाँ ,अंदर आओ ,कहो कैसी हो ''मीता ने उसे अपने घर के अंदर सलीके से सजे ड्राइंग रूम में बैठने को कहा । अनन्या ने टेबल पर मिठाई के डिब्बे को रखा और बोली ,''मैम आपको एक खुशखबरी देने आई हूँ मुझे आर्मी में सैकिड लेफ्टीनेंट की नौकरी मिल गई है ,यह सब आपके आशीर्वाद का फल है ,मुझे इसी सप्ताह जाईन करना है सो रुकूँ गी नही ,फिर कभी फुर्सत से आऊं गी ,''यह कह कर उसने मीता के पाँव छुए और हाथ जोड़ कर उसने विदा ली । अनन्या के जाते ही मीता के मानस पटल पर भूली बिसरी तस्वीरे घूमने लगी, जब एक दिन वह बी एस सी अंतिम वर्ष की कक्षा को पढ़ा रही थी तब उस दिन अनन्या क्लास में देर से आई थी और मीता  ने उसे देर से कक्षा में आने पर डांट  दिया था और क्लास समाप्त होने पर उसे मिलने के लिए बुलाया था । पीरियड खत्म होते ही जब मीता स्टाफ रूम की ओर जा रही थी तो पीछे से अनन्या ने आवाज़ दी थी ,''मैम ,प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो ,''और उसकी आँखों से मोटे मोटे आंसू टपकने लगे । तब मीता उसे अपनी प्रयोगशाला में ले गई थी ,उसे पानी पिलाया और सांत्वना देते हुए उसके रोने की वजह पूछी ,कुछ देर चुप रही थी वो ,फिर उसने अपनी दर्द भरी दास्ताँ में उसे भी शरीक कर लिया था  उसकी कहानी सुनने के बाद मीता की आँखे भी नम  हो उठी थी ।उसके पिता  का साया उठने के बाद उसके सारे रिश्तेदारों ने अनन्या की माँ और उससे छोटे दो भाई बहनों से मुख मोड़ लिया था ,जब उसकी माँ ने नौकरी करनी चाही तो उस परिवार के सबसे बड़े बुज़ुर्ग उसके ताया  जी ने उसकी माँ के सारे सर्टिफिकेट्स फाड़ कर फेंक दिए,यह कह कर कि उनके परिवार की बहुएं नौकरी नही करती। हर रोज़ अपनी आँखों के सामने अपनी माँ  और अपने भाई बहन को कभी पैसे के लिए तो कभी खाने के लिए अपमानित होते देख अनन्या का खून खौल  उठता था ,न चाहते हुए भी कई बार वह अपने तथाकथित रिश्तेदारों को खरी खोटी भी सुना दिया करती थी और कभी अपमान के घूँट पी कर चुप हो जाती थी ।पढने  में वह एक मेधावी छात्रा  थी  ,उसने पढाई के साथ साथ एक पार्ट टाईम नौकरी भी कर ली थी ,शाम को उसने कई छोटे बच्चों को  ट्यूशन भी देना शुरू कर दिया था और वह सदा अपने छोटे भाई ,बहन की जरूरते पूरी करने  की कोशिश में रहती थी ,कुछ पैसे बचा कर माँ की हथेली में भी रख दिया करती थी ,हां कभी कभी वह मीता के पास आ कर अपने दुःख अवश्य साझा कर लेती थी ,शायद उसे इसी से कुछ मनोबल मिलता हो । फाइनल परीक्षा के समाप्त होते ही मीता को पता चला कि उनका परिवार कहीं और शिफ्ट कर चुका है ।धीरे धीरे मीता भी उसको भूल गई थी ,लेकिन आज अचानक से उसके आने से मीता को उसकी सारी बाते उसके आंसू ,उसकी कड़ी मेहनत सब याद आगये और मीता  का सिर  गर्व से ऊंचा हो गया उस लडकी ने अपने नाम को सार्थक कर दिखाया अपने छोटे से परिवार के लिए आज वह अनपूर्णा देवी से कम नही थी |

Thursday, 16 May 2013

पापा आई लव यू


उस दिन माँ बाप की ख़ुशी सातवें आसमान पर होती है ,जिस दिन उनके परिवार में एक नन्हें से बच्चे का आगमन होता है ,जैसे किसी ने उनकी गोद में दुनिया भर की खुशियाँ बिखेर  दी  हो |राजीव  और गीता का भी यही हाल था आज ,गीता की गोद में अपना ही नन्हा सा रूप देख राजीव चहक उठा ''देखो गीता इसके हाथ कितने छोटे है''यह कहते ही राजीव ने अपनी उंगली उस नन्हे से हाथ पर रख दी  ,अरे अरे यह क्या, देखो इसने तो मेरो ऊँगली ही पकड़ ली |ख़ुशी के मारे राजीव के पाँव धरती पर टिक ही नहीं  पा रहे  थे ,यही हाल गीता का था ,इतनी पीड़ा  सहने के बाद भी गीता की आँखों की चमक देखते ही बनती थी ,बस टकटकी लगाये उस नन्ही सी जान को मुस्कुराते हुए देखती ही जा  रही थी|  राजीव उसे गोद में उठाते हुए बोला , ''यह तो हमारा सचिन है ,बड़ा हो कर यह भी सचिन की तरह छक्के मारे गा ''अनेकों सपने राजीव की आँखों में तैरने लगे ,अपने इन्ही सपनो को पूरा करने की चाह लिए हुए कब उनके बेटे  सचिन ने अपनी जिदगी के पन्द्रहवें वर्ष में कदम रख लिया,इसका राजीव और गीता को अहसास ही नहीं हुआ ,उनकी आँखों का तारा सचिन उनकी नजर में अभी भी  एक छोटा सा बच्चा ही था ,लेकिन सचिन  तो  अब किशोरावस्था  में पदार्पण कर चुका था, घंटों अपने चेहरे को शीशे  में निहारना,कभी  बालों को  बढ़ा लेता ,तो कभी  दाढ़ी को ,अपने को किसी हीरो से कम नही समझता था वो ,सारी की सारी दुनिया अपनी जेब में लिए घूमता था |उसमे आये  शारीरिक परिवर्तन और उसके मानसिक विकास ने उसे जिन्दगी के कई अनदेखी राहों के रास्ते दिखाने शुरू कर दिए | राजीव और गीता दोनों पढ़े लिखे थे ,वह सचिन को आज की इस दुनिया में क्या सही ,और क्या गलत है ,जब भी बताने यां समझाने  की कोशिश करते तो सचिन यां तो बहस करता यां मजाक में टाल देता ,वैसे बहस करना उसकी आदत सी बनती जा रही थी |गीता भी रोज़ की इस चिक चिक से परेशान सी रहने लगी ,फिर सोचती ,''यह उम्र ही ऐसी है ,बच्चों की किशोरावस्था के इस नाज़ुक दौर  के चलते अभिभावकों के लिए यह उनके धैर्य एवं समझदारी की परीक्षा की घड़ी है  |किशोरों के शरीर  में हो रही हार्मोंज़ की  उथल पुथल जहां उन्हें व्यस्क के रूप में नवजीवन प्रदान करने जा रही है ,वही उनका बचकाना व्यवहार ,उन्हें स्वयं की और माँ बाप की नजर में अजनबी सा बना देता है |माँ बाप से उनका अहम टकराने लगता है ,हर छोटी सी बात पर अपनी प्रतिक्रिया देना ,उनकी आदत में शामिल हो जाता है |किशोरों को  इस असमंजस की स्थिति से माँ बाप अपने विवेक और धेर्य से ही बाहर निकालने में मदद कर सकते है ,उनकी हर  छोटी बड़ी बात को महत्व दे कर ,उनका मित्रवत व्यवहार अपने लाडले बच्चों को जहां गुमराह होने से बचाते है वहीँ उनमे विशवास कर के उन्हें एक अच्छा  नागरिक बनने में भी सहायता भी करते है ''|राजीव और गीता किशोरावस्था की इन सब समस्याओं से अनजान नहीं थे लेकिन फिर क्यों नहीं उन्हें सचिन का विशवास ,और प्यार जिसकी वह उससे उम्मीद करते थे ,नहीं मिल पा रहा था |तभी अचानक राजीव के मोबाईल फोन की घंटी बजी ,,''पापा जल्दी रेलवे प्लेट्फार्म पर आ जाओ ,''|राजीव जल्दी से कार में बैठ सचिन  पास पहुंच गया ,यह क्या ,उसका सचिन रेलवे प्लेटफार्म पर  रेलवे पुलिस के इंस्पेक्टर  के साथ खड़ा था |सचिन क्या बात है ?राजीव ने हैरानी से पूछा |जवाब मिला पुलिस इंस्पेक्टर से ,''बदतमीजी की है इसने ,गाली दी है एक बुज़ुर्ग  रेलवे कर्मचारी को ,सचिन के  चेहरे का रंग उड़ा हुआ था  |राजीव ने प्यार से सचिन के काँधे पर हाथ रखा और सचिन से माफ़ी मांगने को कहा,उसे भी अपनी गलती का अहसास हो रहा था ,सचिन ने उस बुजुर्ग के पाँव छू क़र माफ़ी मांगी ,उस बुजुर्ग कर्मचारी ने उसे माफ़ करते हुए समझाया कि जिंदगी में जो  काम हम प्यार के करवा सकते है वह अकड़ से नहीं |सारा मामला सुलझा क़र राजीव सचिन को घर ले आया ,माँ का चेहरा देखते ही सचिन की आँखों में आंसू आ गये ,माँ ने उसका हाथ थाम लिया ,इतने में राजीव भी उनके पास आ गया और सचिन उससे लिपट गया ,भर्राई आवाज़ से उसने कहा ''पापा आई लव यू |

Wednesday, 15 May 2013

ओ मेरे हमसफर ओ हमदम मेरे


ओ मेरे हमसफर ओ हमदम मेरे 

मेरी आँखों में देख तस्वीर अपनी 

जो बन चुकी है अब तकदीर मेरी 

बह चली मै अब बहती हवाओं में 

उड़ रही हूँ हवाओं में संग तुम्हारे 

इस से पहले कि रुख हवाओं का 

न बदल जाये कहीं थाम लो मुझे 

कहीं ऐसा न हो शाख से टूटे हुये

पत्ते सी भटकती रहूँ दर बदर मै

जन्म जन्म के साथी बन के मेरे 

ले लो मुझे आगोश में तुम अपने 

ओ मेरे हमसफर ओ हमदम मेरे

Monday, 13 May 2013

पराया धन

मेरी जानकी मौसी  के घर जब तीसरी बेटी ने जन्म लिया था ,तब  उस समय अड़ोस पड़ोस,रिश्तेदार सब ने उनके पास आ कर उनके यहाँ तीसरी लडकी केपैदा  होने पर अफ़सोस जताया था ,लेकिन जानकी मौसी ने उन सबका यह कह कर मुंह बंद कर दिया था  ,''यह  मेरी बेटी है मैने इसे पैदा किया है और इसे पालूं गी भी मै ही ,किसी को भी इसकी चिंता करने की कोई जरूरत नही ,''और उन्होंने कर के भी  दिखाया ,आज उनकी वही बेटी एक डाक्टर है और अपने मम्मी पापा का नाम रोशन कर रही है ,केवल वही नही उसकी दोनों बड़ी बहने यानि मेरी मौसी की दोनों बड़ी बेटिया कालेज में लेक्चरार है |बेटी हो या बेटा ,एक माँ को उन्हें पैदा करने में एक जैसा दर्द सहना पड़ता है |माता पिता के लिए बेटा और  बेटी दोनों बराबर होते  है ,उन दोनों को एक जैसे ही पालते है ,अपने समर्थ में रह कर ऊँची से ऊँची शिक्षा भी देते है ,फिर एक दिन आँखों में आंसू भर कर ,अपनी प्यारी बेटी को ,अपने दिल के टुकड़े को,अपने ही हाथों अपने दिल पर पत्थर रख कर उसे किसी और के साथ विदा कर देते है |इस पुरुष प्रधान समाज ने सदा औरत को दूसरा दर्जा दिया है और हमारे ही समाज ने बेटी को पराया कर दिया ,यह रीत बना ली गई कि बेटी पराया धन है  उसे शुरू से ऐसे संस्कार दिए जाते है ,उसे शादी के बाद माता पिता का घर छोड़ अपने पति के घर को अपनाना है और वह उस घर को पूरे तन मन से अपनाती भी है लेकिन अफ़सोस ज्यादातर उसके ससुराल वाले उसे हमेशा बेगानी लड़की ही समझते है ,उसकी नन्द ,उसके पति की बहन उनकी अपनी बेटी और बहू परायी ,इस अपने पराये के चक्कर में पिस कर रह जाती है बेचारी लड़की |कई परिवारों में तो बचपन से ही उसके साथ परायों सा व्यवहार किया जाता है और ससुराल में तो वह है ही परायी ,जबकि हमारी बेटियाँ दोनों ही परिवारों में प्यार ही बांटती है |समय के चलते जागरूक हुए माँ बाप अपनी बेटियों को शिक्षित कर समाज में कुछ बदलाव तो ला  रहें है लेकिन यह अभी भी  बहुत कम दिखाई दे रहा है |अक्सर नौकरीपेशा लड़कियों को लडके इस लिए पसंद करते है क्योंकि उनके घर में  दहेज के साथ साथ अतिरिक्त आमदनी भी  आने लगे गी |आज जब बेटियाँ नौकरी करती है तब भी कई पढ़े लिखे माँ बाप अपनी बेटी के तथाकथित घर यानी कि उसके ससुराल जो उसके पति का घर है ,वहां खाना तो दूर पानी तक नही पीते ,भला उनसे पूछो जब उन्होंने अपनी बेटी को बेटो जैसा पढ़ाया लिखाया तो फिर वह अपनी बेटी के घर को  क्यों पराया मान रहें है ,शायद इसलिए की वहां उनकी बेटी के सास ससुर रहते है फिर तो वह सास ससुर का घर हुआ ,उनकी बेटी का कौन सा घर है ?अगर बेटी का एकल परिवार है और  वह अपने पति के साथ रहती है तो फिर वह उसके पति का घर है ,ऐसा क्यों है कि लड़की के माँ बाप उस बेटी के यहाँ कुछ भी खा ,पी नही सकते जो उनकी अपनी है ,अगर मजबूरी में कुछ खा भी लेते है तो वह अपनी बेटी के हाथ में पैसे रख कर उसकी कीमत चुका देते है |हमारे कानून ने तो बेटा बेटी को बराबर का दर्जा दे रखा है ,अगर बेटा किसी कारणवश अपने माँ बाप के साथ नही रह सकता तो बेटी अपने परिवार सहित अपने माँ बाप के पास यां माँ बाप अपनी बेटी के पास क्यों नही रह सकते ?क्यों जकड़े हुए है हम समाज के ऐसे संस्कारों से कि बेटा ही उनकी मुक्ति का दुवार है ? अगर हम और हमारा समाज  बेटी को पराया न समझ अपना कहता है तो  हमे बेटा और बेटी दोनों के साथ बचपन से ले कर उनकी शादी और उसके के बाद भी एक जैसा व्यवहार करना चाहिए और अगर हम बेटा और बेटी के साथ एक जैसा व्यवहार नही रख सकते तो हमारी बेटियां अब भी  परायी है औरआगे भी परायी ही रहें गी |

Friday, 10 May 2013

शुभ प्रभात


शुभ प्रभात

आंसुओं में डूबी तन्हा ये रात ,
साथी है पास फिर भी तन्हा है रात ।
कभी उड़े थे आकाश में ,सोचती ये बात 
मायूस हो नीचे गिरे ,पंख कटे है आज।

वह बीते हुए लम्हे जब आते है याद ,
भीग जाती है पलकें और रोती है रात
टूटे हुए सपनो को आँखों में समेटे ,
बिस्तर पर करवटे बदलती ये रात ।

दर्दे दिल में है अब भी भरे जज्बात ,
मचलते हुए लब पे आने को है बेताब ।
पर सुनी सुनी सी कट गयी ये रात ,
सोचते हुए कब आये गी शुभ प्रभात ।

Thursday, 9 May 2013

धरती हमारी गोल गोल[बाल कथा ]

धरती हमारी गोल गोल[बाल कथा ]

स्कूल से आते ही राजू ने अपना बस्ता खोला और लाइब्रेरी से ली हुई पुस्तक निकाल कर अपनी छोटी बहन पिंकी को बुलाया ,तभी माँ ने राजू को आवाज़ दी ,बेटा पहले कपड़े बदल कर ,हाथ मुह धो कर ना खा लो ,फिर कुछ और करना ,तभी पिंकी ने अपने भाई के हाथ में वह पुस्तक देख ली |ख़ुशी के मारे वह उछल पड़ी ,''आहा ,आज तो मजा आ जाये गा ,भैया मुझे इसकी कहानी सुनाओ गे न ''| ''हाँ पिंकी ,यह बड़ी ही मजेदार  कहानी है '' ,पुस्तक वही रख कर राजू बाथरूम में चला गया |हाथ मुह धो कर ,दोनों ने जल्दी जल्दी खाना खाया और अपने कमरे में बिस्तर पर बैठ कर पुस्तक उठाई  |

अपनी तीन वर्षीय ,छोटी बहन का हीरो भाई राजू उस किताब को लेकर बहुत ही उत्साहित था  ''पिंकी यह कहानी हमारी धरती की है '' ,उसने जोर जोर से पढना शुरू किया ,''बात पन्द्रहवी सदी के अंत की है ,जब भारत को खोजते खोजते क्रिस्टोफर कोलम्बस अपने साथियों  सहित सुमुद्री मार्ग से अमरीका महाद्वीप में ही भटक कर रह गया था |उस समय सुमुद्रीय यात्राएं बहुत सी मुसीबतों से भरी हुआ करती थी ,ऐसी ही एक ऐतिहासिक यात्रा ,सोहलवीं सदी के आरम्भ में स्पेन की सेविले नामक बंदरगाह से एक व्यापारिक जहाजी बेड़े ने प्रारंभ  की |इस बेड़े की कमान मैगेलान नामक कमांडर के हाथ में थी |राजू पिंकी को यह कहानी सुनाते सुनाते उस जहाज में  पिंकी के संग सवार हो यहां वहां घूमने लगा |''मजा  तो आ रहा है न पिंकी , देखो हमारे चारो ओर सुमुद्र  ही सुमुद्र ,इसका पानी कैसे शोर करता हुआ हमारे जहाज से टकरा कर वापिस जा रहा है ,अहा चलो अब हम  दूसरी तरफ से सुमुद्र को देखतें है ,अरे यहाँ तो बहुत सर्दी है''राजू ख़ुशी के मारे झूम रहा था | ,''हाँ भैया देखो न ,मै तो ठंड के मारे कांप रही हूँ भैया वापिस घर चलो न  ,''पिंकी ठिठुरती हुई बोली | ''उस तरफ देखो ,वहां दिशासूचक लगा हुआ है, हमारा जहाज दक्षिण  ध्रूव की तरफ बढ़ रहा है ,तभी तो इतनी सर्दी है यहाँ ,''राजू ने पिंकी का हाथ पकड़ लिया,''चलो हम  नीचे रसोईघर में चलते है ,कुछ गर्मागर्म खाते है थोड़ी ठंड भी कम लगे गी ,''रसोईघर में पहुंचते ही राजू परेशान हो गया वहां मोटे मोटे चूहे घूम रहे थे और वहां खाने  का सारा सामान खत्म हो चुका था यहाँ तक की भंडारघर भी खाली हो चुका था ,मैगेलान के सारे साथी भुखमरी के शिकार हो रहे थे ओर मैगेलान उन्हें हिम्मत देने की कोशिश कर रहा था  ,राजू और पिंकी की आँखों में उन बेचारों की हालत देख कर आंसू आरहे थे ,मालूम नही और कितने दिनों तक यह भूखे रहे गे ,तभी किसी ने आ कर बताया कि कुछ दूरी पर छोटे छोटे टापू दिकाई दे रहें है ,मैगेलानने झट से नक्शा निकाला  और यह पाया कि वह फिलिपिन्ज़ के द्वीप समूहों कि तरफ बढ़ रहे है   यह समाचार सुनते ही पूरे जहाज में ख़ुशी की लहरें उठने लगी ,सब लोग जश्न मनाने लगे ,लेकिन वहां पहुंचते ही वहां  के रहने वाले आदिवासियों ने उन सब को घेर लिया और उनके कई साथियों को  मार गिराया  |मरने वालो में उनका नेता मैगेलान भी  शामिल था ,बचे खुचे लोग बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचा कर ,अपने एक मात्र बचे हुए जहाज विक्टोरिया में बैठ ,एक बार फिर से सुमुद्र के सीने को चीर अपनी यात्रा पर निकल पड़े |लगभग तीन वर्ष बाद वह जहाज अपनी ऐतिहासिक यात्रा पूरी कर उसी बन्दरगाह पर पहुंचा जहां से वह यात्रा प्रारम्भ हुई थी |

 धरती हमारी गोल गोल ,यह कहते हुए राजू नींद से जाग गया और पिंकी उसे जोर जोर से हिला रही थी ,''भैया पूरी कहानी तो सुनाओ ,आगे क्या हुआ ? , मेरी प्यारी बहना पहली बार इस अमर यात्रा ने प्रमाणित कर दिखाया कि हमारी धरती गोल है |

रेखा जोशी 

Tuesday, 7 May 2013

मृत्यु से साक्षात्कार


 कहते है जिंदगी जिंदादिली का नाम है मुर्दा दिल क्या ख़ाक जीते है ,जी हाँ जिंदा दिल इंसान तो भरपूर जिंदगी का मज़ा लेते हुए उसे जीते है लेकिन वह लोग जिन्हें अपने सामने केवल मृत्यु ही  नजर आती है वह कैसे अपने जीवन का एक एक पल सामने खड़ी मौत को देख कर जीतें है |हर क्षण करीब आ रही  मौत की उस घड़ी का वह अहसास किसी को भी भयभीत कर  सकता है | मेरी मुलाकात कई ऐसे बुजुर्गों  से हुई है जो अपनी जिंदगी असुरक्षा से घिरी हुई , सिर्फ मौत की  इंतजार में गुज़ार रहें है,कुछ लोग तो ऐसे है जिनका हर पल हर क्षण मौत से साक्षात्कार होता है |ऐसे असंख्य लोग है जो किसी  न किसी गंभीर या लाइलाज रोग से ग्रस्त हो कर पल पल  रेंग रही  ज़िन्दगी के दिन काटने पर मजबूर है |ऐसे ही कैंसर से पीड़ित एक सज्जन से मेरी हाल ही में मुलाकात हुई जिनका कुछ महीने पहले  राजीव गाँधी अस्पताल में इलाज  चल रहा था |उनकी तबियत कुछ ज्यादा ही खराब होने पर डाक्टर ने उन्हें आई सी यू में दाखिल कर दिया था ,वहां उनके साथ तीन और मरीज़ भी आई सी यू में थे ,उसी रात की बात है कि वहां उन सज्जन के पास वाले बिस्तर पर एक कैंसर से पीड़ित मरीज़ की  मौत हो गई जो उनके भीतर तक एक ठंडी सी मृत्यु की सिहरन पैदा कर गई ,अभी वह उस मौत की सोच से उभरे भी न थे कि अगली रात एक दूसरे बिस्तर वाले सज्जन पुरुष भी परलोक सिधार गए ,और तीसरी रात तीसरा मरीज भी भगवान को प्यारा हो गया |एक के बाद एक लगातार तीन दिनों में उनके सामने उसी कमरे में हुयी तीन तीन मौतों ने उन्हें अंदर से झकझोर कर  रख दिया और वह चौथी रात मृत्यु से भयभीत अकेले बिस्तर पर करवटें बदलते हुए पूरी रात जागते रहे ,हर क्षण यही सोचते हुए कि शायद वह रात उनकी जिंदगी की आखिरी रात न बन जाए |मौत को इतने करीब से देखने के बाद वह हर पल असुरक्षित रहने लगे है और मौत के  भय ने उन्हें रात दिन चिंतित कर रखा है| हम सब जानते है ,मृत्यु एक शाश्वत सत्य है और हम सब धीरे धीरे उसकी ओर बढ़ रहें है| किसी की ओर मृत्यु तेज़ी से  बढ़ रही है तो कोई मृत्यु की ओर बढ़ रहा है ,एक न एक दिन हम सबको इस दुनिया से जाना ही है फिर भी जिस किसी का भी  ता है वह इस शाश्वत सत्य से भयभीत हो उठता है वह मरना नही चाहता परन्तु उसके चाहने से तो कुछ हो नही सकता फिर वह क्यों भयभीत हो जाता है ?शायद उनके दुवारा जानेमृत्यु से साक्षात्कार हो अनजाने किये गये पाप कर्म ही उसके डर का कारण होते है यां सदा के लिए अपनों से बिछड़ने का गम उन्हें डराता है यां फिर अज्ञात से वह भयभीत है |उनके डर का कारण चाहे कुछ भी हो लेकिन एक न एक दिन इस दुनिया को छोड़ कर सब ने जाना ही है ,फिर विस्मय इस बात पर होता है कि क्यों इंसान इतने उलटे सीधे धंधे कर पैसे के पीछे सारी जिंदगी भागता रहता है,मोह माया की दल दल में फंस कर रह जाताहै , जब कि सब कुछ तो यही रह जाता है |जीवन और मृत्यु  एक ही सिक्के के दो पहलू है ,आज जीवन है तो कल मृत्यु ,क्यों न हम ईश्वर से प्रार्थना करें जब भी हमारी जिंदगी की अंतिम घड़ी आये तो वह सबसे खूबसूरत और सुंदर अनुभूति लिए हुए हो |

Monday, 6 May 2013

किसानो की दुर्दशा


आंध्रप्रदेश में एक छोटा सा गाँव अनंतपुर ,गरीबी रेखा के नीचे रहते कई किसान भाई ,जिनका जीवन सदा उनके खेत और उसमे लहलहाती फसलों के इर्द गिर्द ही घूमता रहता है ,आज शोक में पूरी तरह डूबा हुआ है ,पता नही किसकी नजर लग गई जो आज सुबह घीसू भाई , शहर में किसी के साथ अपनी जवान बेटी रधिया को बेचने का सौदा कर के आया है , सुबह से किसी के पेट में खाने का एक निवाला तक नही गया ,क्योकि वहां कई घरों में चूल्हा ही नही जला , सवेरे से ही रधिया और उसकी छोटी बहन रमिया ने अपने आप को पीछे की छोटी कोठरी में बंद कर रखा हुआ है tघीसू की पत्नी गुलाबो का तो रो रो कर बुरा हाल हो गया ,''क्या इसी दिन के लिए उसने अपनी जान से भी प्यारी बेटी को पाल पोस कर बड़ा किया था ,चंद नोटों के बदले अपने ही जिस्म के टुकड़े को बेचने के लिए ,नही नही ,वह मर जाए गी पर ऐसा  अनर्थ नही होने देगी ,वह अपनी रधिया को कभी भी अपने से दूर नही जाने देगी ,हे भगवान अब केवल तेरा ही आसरा है ,किसी भी तरह से इस अनहोनी को होने से रोक लो ,''यह सब सोच सोच कर गुलाबो का दिल बैठा जा रहा था |उधर घीसू के दिल का हाल शायद ही कोई समझ पाता,उपर से पत्थर बने बुत की भांति अपना सर हाथों में थामे ,घर के बाहर एक टूटी सी चारपाई पर वह निर्जीव सा पड़ा हुआ था ,लेकिन उसके भीतर सीने में जहाँ दिल धडकता रहता है ,उसमे एक ज़ोरदार तूफ़ान ,एक ऐसी सुनामी आ चुकी थी जिसमें उसे अपना  घर बाहर सब कुछ बहता दिखाई दे रहा था ,''कोई उसे क्यों नही समझने की कोशिश करता ,अपने बच्चे को क्यों कोई  बेचे गा ,मै उसका बाप आज कितना मजबूर हो गया हूँ  जो अपने कलेजे के टुकड़े को ,कैसे अपने दिल पर पत्थर रख कर उसे सिर्फ पैसे के लिए अपने से दूर इस अंधी दुनिया में धकेल रहा हूँ ,पता नही उसकी किस्मत में क्या लिखा है परन्तु वह कर भी क्या सकता है ,आज उसके खेतों ने भी उसका साथ नही दिया ,फसल ही नही हुई ,लेकिन उसके सर पर सवार  क़र्ज़ की मोटी रकम कैसे चुकता हो पाए गी ,उपर से भुखमरी ,घर गृहस्थी का बोझ ,जी तो करता है कि जग्गू की तरह नहर में कूद कर अपनी जान ही दे दूँ ,लेकिन गुलाबो और रमिया कि खातिर वह ऐसा भी तो नही कर सकता ,जग्गू के परिवार का उसके मरने के बाद हुई दुर्गति से वह भली भाँती  परिचित था ''|आज घीसू अपने आप को बहुत असहाय ,बेबसऔर निर्बल महसूस कर रहा था ,उसकी आँखों के आगे बार बार भोली भाली रधिया का चेहरा घूम रहा था और दिल में उठ रही सुनामी आँखों से अश्रुधारा बन फूट पड़ी ,''काश कोई रधिया को मुझ से बचा ले ,''फूट फूट कर रो उठ घीसू | रधिया ,जो गरीबी की सूली पर चढ़ चुकी थी , अपने पिता की बेबसी को बखूबी समझ चुकी थी , खामोश सी ,अपनी आँखे बंद कर उस घड़ी का इंतज़ार कर रही थी ,जब किस्मत के बेरहम हाथ उसे उठा कर ,अपनों से दूर किसी अनजानी दुनिया में पटक देंगे ,लेकिन  अनचाहे विचार उसके मानस पटल पर उमड़ते हुए उसे व्यथित कर रहे थे ,''कब तक हम लड़कियों को अपने परिवार की खातिर बलि देते रहना होगा ,मेरे बापू ने तो जी तोड़ मेहनत की थी ,जग्गू चाचा का क्या कसूर था जो उन्हें आत्महत्या करनी पड़ी  | कभी सोने की चिड़िया कहलाने वाला  हमारा भारत देश , जिसकी  सोंधी सी महक लिए माटी में सदा लहलहाते  रहे है ,हरे भरे खेत खलिहान,किसानो के इस देश में ,उनके साथ  आज क्या हो रहा है ?  उनके सुलगते दिलों से निकलती चीखे कोई क्यों नही सुन पा रहा ,संवेदनहीन हो चुके है लोग यां सबकी अंतरात्मा मर चुकी है ,इस देश को चलाने वाली सरकार भी शायद बहरी हो चुकी है ,भारत के किसान अपनी अनथक मेहनत से दूसरों के पेट तो भरते आ रहें है ,लेकिन वह आज अपनी  ही जिंदगी का बोझ स्वयम नही ढो पा रहे और अब हालात यह हो गए है की वह  यां तो आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहें है यां उनकी, मेरी जैसी अनगिनत बेटियाँ अपने ससुराल न जा कर ,अपनों के ही  हाथों एक अनजानी ,निर्मम और अँधेरी दुनिया में पैसों की खातिर धकेल दी जाती है |'' तभी शहर से आई एक लम्बी सी गाड़ी घीसू के घर के सामने आ कर रुक गई और घीसू ने अपने घर की प्यारी सी अधखिली कली, रधिया को गाड़ी में बिठा कर,उसे किसी अंधी गली में भटकने के लिए ,सदा सदा के लिए विदा कर दिया |

Sunday, 5 May 2013

क्रोधाग्नि

क्रोधाग्नि
पत्थर भी पिधल जाते है धरा के ,
ज्वालामुखी की धधकती आग में।
 महाकाल ने जब भी रौद्र रूप धरा,
भस्म किया सब खोल नेत्र तीसरा।
तुम्हारी क्रोधाग्नि की ज्वाला भी ,
तन मन जला राख सब कर देगी ।
तेरी ही दिव्यता का कर के संहार
मानवता तेरी पर होगा प्रबल प्रहार।
करके तेरी सम्पूर्ण शक्ति का ह्रास ,
दुश्मन तेरी है वह कर देगी विनाश।
हर क्षण मरते रहो गे  क्षीण हो कर ,
संभल जाओ न आने देना पास इसे 

Saturday, 4 May 2013

अंधाधुंध पाश्चात्य सभ्यता के पीछे


अंधाधुंध पाश्चात्य सभ्यता के पीछे

 बचपन में जब मै छोटी थी तब एक मूवी ,'यह रास्ते है प्यार के 'रीलिज़ हुई थी ,मेरे बहुत जिद करने पर भी मेरी माँ ने  मुझे वह  पिक्चर नहीं दिखाई क्योकि उस समय व्यस्क न होने पर  सिनेमा हाल के अंदर  घुसने भी नही दिया जाता था | वक्त के चलते जब टेलीविजन का जमाना आया ,तब एक दिन वही पिक्चर छोटे पर्दे पर आ गई ,मैने भी अपने अवयस्क बेटे को उसे देखने से मना कर दिया ,लेकिन उसने वह मूवी चुपके से देख ली और हैरानी से मुझसे पूछा ,''इस मूवी में ऐसा था ही क्या जो इसे सेंसर बोर्ड ने ऐ सर्टिफिकेट दिया था |'' उसकी बात सुन  कर मै भी सोच में पड़ गई ,ठीक ही तो  कह रहा था वह ,उसमे आजकल की  फिल्मों तुलना में ऐसा कुछ आपतिजनक तो था ही नही ,जिसे फैमिली के साथ देखा न जा सके |हर पल, हर दिन ,बदलते समय के साथ साथ टेक्नोलोजी भी तेज़ी से बदल रही है ,इंटरनेट के इस जमाने में हमारे बच्चे हमसे बहुत आगे निकल चुके है ,टी वी पर समाचार बाद में आता है जबकि इंटरनेट पर वह पुराना हो चुका होता है, इस बदलते दौर में हम कहां तक अपने बच्चों  पर अंकुश लगा सकते है |आजकल आधुनिकता की इस अंधी दौड़ में जहां हमारे देश की नई पीढ़ी  अंधाधुंध पाश्चात्य सभ्यता के पीछे भाग रही है,वहां हम अभी भी अपने संस्कारों और परम्पराओं में बंधे हुए है ,उनका दुनिया के साथ चलना तो हमे अच्छा लगता है लेकिन अपने संस्कारों और परम्पराओं के घेरे में रहते हुए | जवानी  की दहलीज़ पर कदम रखते ही हमारे बच्चों में बढ़ती उत्सुकता के चलते उन्हें कई अनदेखे रास्ते अपनी और आकर्षित करने लगते है ,यही वह समय होता है जब वह जिंदगी के किसी अनदेखे मोड़  पर भटक सकते है |माता पिता और बच्चों के बीच का आपसी विशवास ही उनका मार्गदर्शक बन उन्हें गुमराह होने से रोक सकता है| सेंसर बोर्ड की रिवाइज्ड समिति का यह फैसला ,जिन फिल्मों को रिलीज से पहले ‘ए’ सर्टिफिकेट दिया गया है उन्हें थोड़ी कांट-छांट करने के बाद रात ग्यारह बजे के पश्चात छोटे पर्दे अर्थात टेलीविजन पर प्रसारित किया जा सकता है। इस निर्णय के पीछे सेंसर बोर्ड समिति का यह कहना है कि रात ग्यारह बजे तक  कम आयु के बच्चे सो जाते है ,लेकिन आजकल  तो बच्चों में देर रात तक जागने का चलन बढ़ रहा है ,कई घरों में तो रात को किचन में मैगी पार्टीज़ भी चलती है  ,बच्चों पर  वातावरण का बहुत जल्दी प्रभाव पड़ता है ,ऐसे में देर रात में  टी वी पर उन्हें आसानी से उपलब्ध अडल्ट फ़िल्में देखने की खुली छूट मिल सकती है ,जो  उनकी मानसिकता पर गहरा  प्रभाव डाल उन्हें पथभ्रष्ट कर सकती है ,ऐसी ही एक खबर मैने समाचारपत्र में पढ़ी थी जब देर रात में माँ बाप गहरी नींद सो रहे थे उस समय टेलीविजन पर कोई  अंग्रेजी फिल्म देखते देखते उनके बच्चों  ने जो सगे भाई बहन थे, वह आपस में शारीरिक सम्बन्ध  स्थापित कर बैठे ,यह संस्कारों का अभाव था यां छोटे पर्दे द्वारा फैलाया गया मानसिक प्रदूष्ण ,सेंसर बोर्ड की रिवाइज्ड समिति को अपने इस निर्णय पर एक बार फिर से विचार करना चाहिए ,कही देर रात में फैलता यह मानसिक प्रदूष्ण परिवार और समाज के शर्मसार होने का कारण न जाए |

Thursday, 2 May 2013

कितने ईमानदार है हम


कितने ईमानदार है हम ?इस प्रश्न से मै दुविधा में पड़ गई ,वह इसलिए क्योकि अब ईमानदार शब्द पूर्ण तत्त्व न हो कर तुलनात्मक हो चुका है कुछ दिन पहले मेरी एक सहेली वंदना के पति का बैग आफिस से घर आते समय कहीं खो गया ,उसमे कुछ जरूरी कागज़ात ,लाइसेंस और करीब दो हजार रूपये थे ,बेचारे अपने जरूरी कागज़ात के लिए बहुत परेशान थे |दो दिन बाद उनके  घर के बाहर बाग़ में उन्हें अपना बैग दिखाई पड़ा ,उन्होंने उसे जल्दी से उठाया और खोल कर देखा तो केवल रूपये गायब थे बाकी सब कुछ यथावत उस  बैग में वैसा ही था ,उनकी नजर में चोर तुलनात्मक रूप से ईमानदार था ,रूपये गए तो गए कम से कम बाकी सब कुछ तो उन्हें मिल ही गया ,नही तो उन्हें उन कागज़ात की वजह से काफी परेशानी उठानी पड़ती|वह दिन दूर नही जब हमारा देश चोरों का देश बन कर रह जाए गा ,कोई छोटा चोर तो कोई बड़ा चोर ,कोई अधिक ईमानदार तो कोई कम ईमानदार ,लेकिन अभी भी हमारे भारत में ईमानदारी पूरी तरह मरी नही ,आज भी समाज में ऐसे लोगों की कमी नही है जिसके दम पर सच्चाई टिकी हुई है | वंदना अपनी नन्ही सी बेटी रीमा की ऊँगली थामे जब बाज़ार जा रही थी तभी उसे रास्ते में चलते चलते एक रूपये का सिक्का जमीन पर पड़ा हुआ मिल गया,उसकी बेटी रीमा ने  झट से उसे उठा कर ख़ुशी से उछलते हुए  वंदना से कहा ,''अहा,मम्मी मै तो इस रूपये से टाफी लूंगी,आज तो मज़ा ही आ गया ''| अपनी बेटी के हाथ में सिक्का देख वंदना उसे समझाते हुए बोली  ,''लेकिन बेटा यह सिक्का तो तुम्हारा नही है,किसी का इस रास्ते पर चलते हुए गिर गया होगा  ,ऐसा करते है हम  मंदिर चलते है और इसे भगवान जी के चरणों में चढ़ा देते है ,यही ठीक रहे गा ,है न मेरी प्यारी बिटिया |''वंदना ने अपनी बेटी को  ईमानदारी का पाठ तो पढ़ा दिया लेकिन आज अनेक घोटालों के पर्दाफाश हो रहे इस देश में ईमानदारी और नैतिकता जैसे शब्द खोखले,  निरर्थक और अर्थहीन हो चुके है,एक तरफ तो हम अपने बच्चों से  ईमानदारी ,सदाचार और नैतिक मूल्यों की बाते करते है और दूसरी तरफ जब उन्हें समाज में पनप रही अनैतिकता और भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है तब  हमारे बच्चे ,इस देश के भविष्य निर्माता टूट कर बिखर जाते है ,अपने परिवार  से मिले आदर्श संस्कार उन्हें अपनी ही जिंदगी में आगे बढ़ कर समाज एवं राष्ट्र हित के लिए कार्य करने में मुश्किलें पैदा कर देते है ,उनकी अंतरात्मा उन्हें बेईमानी और अनैतिकता के रास्ते पर चलने नही देती और घूसखोरी ,भ्रष्टाचार जैसे भयानक राक्षस मुहं फाड़े  इस देश के भविष्य का निर्माण करने वाले नौजवानों को या तो निगल जाते है या उनके रास्ते में अवरोध पैदा कर  उनकी और देश की प्रगति पर रोक लगा देते है ,कुछ लोग इन बुराइयों के साथ समझौता कर ऐसे भ्रष्ट समाज का एक हिस्सा बन कर रह जाते है और जो लोग समझौता नही कर पाते वह सारी जिंदगी घुट घुट कर जीते है | रीमा की ही एक सहेली के भाई ने सिविल इंजिनीयरिंग की डिग्री प्राप्त कर बहुत उत्साह से कुछ कर दिखाने का जनून लिए पूरी लग्न और निष्ठां से  एक सरकारी कार्यालय में नौकरी से अपनी नई जिंदगी की शुरुआत की ,लेकिन उसकी वही निष्ठां और लग्न सरकारी कार्यालयों के  भ्रष्ट तंत्र में उसकी एक स्थान से दूसरे स्थान पर हो रही तबादलों का कारण बन गई ,उसे एक जगह पर टिक कर कुछ करने का मौका ही नही मिल पाया और आज यह हाल है की बेचारा अवसाद की स्थिति में पहुंच चुका  है |एक होनहार युवक का अपने माँ बाप दुवारा दी गई नैतिकता और ईमानदारी की शिक्षा के कारण उसका ऐसे भ्रष्ट वातावरण में  दम घुट गया |यह केवल एक युवक का किस्सा नही है ,हमारे देश में हजारों , लाखों युवक और युवतिया बेईमानी ,अनैतिकता ,घूसखोरी के चलते क्रुद्ध ,दुखी और अवसादग्रस्त हो रहे है ,लेकिन क्या नैतिकता के रास्ते पर चल ईमानदारी से जीवन यापन करना पाप है ?,याँ फिर हम इंतज़ार करें उस दिन का जब सच्चाई की राह पर चलने वाले इस भ्रष्ट वातावरण के चलते हमेशा हमेशा  के लिए खामोश हो जाएँ और यह  देश चोरों का देश कहलाने लगे|

Wednesday, 1 May 2013

जूठन


एक सुसज्जित  भव्य पंडाल में सेठ धनीराम के बेटे की शादी हो रही थी ,नाच गाने के साथ पंडाल के अंदर अनेक स्वादिष्ट व्यंजन ,अपनी अपनी प्लेट में परोस कर शहर के जाने माने लोग उस लज़ीज़ भोजन का आनंद  उठा रहे थे |खाना खाने के उपरान्त वहां  अलग अलग स्थानों पर रखे बड़े बड़े टबों में वह लोग अपना बचा खुचा जूठा भोजन प्लेट सहित रख रहे थे ,जिसे वहां के सफाई कर्मचारी उठा कर पंडाल के बाहर रख देते थे |पंडाल के बाहर न जाने कहाँ से मैले कुचैले फटे हुए चीथड़ों में लिपटी एक औरत अपनी गोदी में भूख से रोते बिलखते नंग धडंग बच्चे को लेकर एक बड़े से टब के पास आ गई और  उस बची खुची जूठन से खाना निकाल कर अपने बच्चे के मुहं में डालने लगी |उसके पास खड़ा एक कुत्ता भी  टब में मुहं डाल कर प्लेटें चाट रहा था |