Sunday, 5 May 2013

क्रोधाग्नि

क्रोधाग्नि
पत्थर भी पिधल जाते है धरा के ,
ज्वालामुखी की धधकती आग में।
 महाकाल ने जब भी रौद्र रूप धरा,
भस्म किया सब खोल नेत्र तीसरा।
तुम्हारी क्रोधाग्नि की ज्वाला भी ,
तन मन जला राख सब कर देगी ।
तेरी ही दिव्यता का कर के संहार
मानवता तेरी पर होगा प्रबल प्रहार।
करके तेरी सम्पूर्ण शक्ति का ह्रास ,
दुश्मन तेरी है वह कर देगी विनाश।
हर क्षण मरते रहो गे  क्षीण हो कर ,
संभल जाओ न आने देना पास इसे 

No comments:

Post a Comment